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प्राचीन इतिहास – 101 तथ्यों में – QUICKEST REVISION SERIES

 जिस समय के मनुष्यों के जीवन की जानकारी का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलता उसे प्राक् इतिहास या प्रागैतिहास कहा जाता है प्राप्त अवशेषों से ही हम उस काल के जीवन को जानते है इस समय उपलब्ध प्रमाण उनके औजार है जो प्राय: पत्थरों से निर्मित है

रुद्रदामन के जूनागढ अभिलेख से पता चलता है कि उसने संस्कृत भाषा को संरक्षण प्रदान किया

कुजुल कडफिसेस ने भारत में ताँबे का सिक्का चलवाया

अजंता की गुफाओं के चित्र प्रथम शताब्दी ई.पू. से लेकर सातवी शताब्दी तक है इनमें गुप्त कालीन अत्युत्कृष्ट है बाघ की गुफाओं के चित्र गुप्तकालीन है

जातक ग्रंथों में बुध्द तथा बोधिसत्वों के जीवन की चर्चा है कथावस्तु में बुध्द के जीवन से सम्बंधित कथानकों का विवरण मिलता है

भारत की मूलभूत एकता के लिए भारतवर्ष नाम सर्वप्रथम पाणनी के अष्टाध्यायी से आया हैनव पाषाणकाल में आग तथा पहिए का आविष्कार हुआ इस समय की प्रमुख विशेषता खाध उत्पादन, पशुओं के उपयोग की जानकारी तथा स्थिर ग्राम्य जीवन का विकास था

आदमगढ की गुफाओ से गुफा चित्रकारी काप्रमाण मिला है जिनमें आखोट नृत्य तथा युध्द गतिविधियों को चित्रित किया गया है

होमोसैपियंस का आविर्भाव तीस चालीस हजार वर्ष पूर्व माना जाता है उस समय मनुष्य जंगल में निवास करता था

उत्तर प्रदेश के बेलन घाटी में स्थित कोल्डीहवा नामक स्थान से चावल की कृषि का साक्ष्य मिला जो 7000-6000 ई.पू. का है

मनुष्य ने सबसे पहले जिस धातु का उपयोग किया वह ताँबा थी ताँबे से जिस युग में औजार अथवा हथियार बनाए जाने लगे उसे ताम्र पाषाणकाल कहा जाता है

मानव द्वारा बनाया जाने वाला प्रथम औजार कुल्हाडी था

मेहरगढ प्रसिध्द नव पाषाण कालीन स्थल है जहाँ 7000 ई. पू. में कृषि कार्य का साक्ष्य प्राप्त हुआ है यहाँ से गेहूँ तथा जौ की खेती के प्रमाण मिले है

रेडियो कार्बन  सी-14 जैसी नवीन विश्लेषण पध्दति के  द्वारा हडप्पा सभ्यता का सर्वमान्यकाल2350 ई. पू. से 1750 ई. पू. को माना जाता है

उत्खनन से प्राप्त बहुसंख्यक नारी मूर्ति के कारण अनुमान लगाया जाता है कि समाज मातृ सत्तात्मक था हडप्पा से मातृ देवी की प्रतिमा मिली है मोहनजोदडों से नृत्यांगना की एक कास्य आकृति प्राप्त हुई है

मछली पकडना तथा शिकार करना हडप्पा सभ्यता के निवासियों का दैनिक क्रिया-कलाप था शतरंज जैसा खेल यहाँ प्रचलित था यहाँ के निवासी आमोद प्रमोद प्रेमी थे

कूबड वाला बैल तथा श्रृंगयुक्त पशु पवित्र पशु थे गाय का अंकन मुहरों पर नहीं दिखता, किंतु उसकी पवित्रता भी निविवाद रुप से रही होगी

वैदिक मंत्रों तथा सहिंताओं की गध टीकाओं को ब्राह्मण कहा जाता था

पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय,शतपथ,पंचविश,तैतरीय आदि बहुत महत्वपूर्ण है

उपनिषदों में ‘बृहदारण्यक’ तथा ‘छांदोन्य’ सर्वाधिक प्रसिध्द है

युगांतर में वैदिक अध्ययन के लिए 6 विधाओं की शाखाओं का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते है

वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग तथापि इस साहित्य के पौरुषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है

वैदिक शाखाओ के अंतर्गत ही पृथक प्रथक वर्ग स्थापित हुआ और इन्हीं वर्गो के पाठय  ग्रंथों के रुप में सूत्रों का निर्माण हुआ

वैदिक साहित्य के उत्तर मे रामायण और महाभारत नामक दो महाकाव्य साहित्य का प्रणयन हुआ

सती प्रथा का सर्वप्रथम साहित्य साक्ष्य ‘माहाभारत’ में मिलता है

प्राचीनकाल में नालंदा, वल्लभी व विक्रमशिला शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे

 

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