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क्या थी नई औद्योगिक नीति 1991? जिसने बदल दी थी भारत की अर्थव्यवस्था

 नई औद्योगिक नीति 1991(New Industrial Policy 1991)

भारत में औद्योगिक नीति में व्यापक परिवर्तन की घोषणा सरकार द्वारा 24 जुलाई 1991 को की गई| इसके अंतर्गत औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति एकत्रीकरण तथा प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार सार्वजनिक क्षेत्र विदेशी निवेश आदि के संबंध में व्यापक बदलाव किए गए |

1. MRTP द्वारा निर्धारित परिसंपत्ति सीमा समाप्त (Asset limit determined by MRTP)

नई औद्योगिक नीति में एकाधिकार एवं प्रतिबंधक व्यापार व्यवहार अधिनियम के अंतर्गत आने वाली कंपनियों की परिसंपत्ति सीमा को समाप्त कर दिया गया| इसलिए अब नई इकाइयों की स्थापना, विस्तार, बिलियन, समामेलन तथा आधुनिकरण के लिए तथा निदेशकों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक नहीं रहा |

2. विदेशी निवेश एवं विदेशी प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने की नीति (Policy to encourage foreign investment and foreign technology)

घरेलू औद्योगिक निवेश के तहत ही भारत में विदेशी निवेश पर भी नियंत्रण लगाए जाते रहे हैं भारतीय फार्मों द्वारा विदेशी प्रौद्योगिकी की खरीद का प्रश्न हो अथवा विदेशी निवेश की हर परियोजना के लिए सरकारी अनुमति लेना अनिवार्य शर्त रही है|

इस नीति के विरोध में यह कहा जाता है कि इसके परिणाम स्वरुप परियोजनाओं को लागू करने में बेवजह देर होती थी और व्यावसायिक निर्णय समय पर लेने में कठिनाई होती थी|

इसलिए नई औद्योगिक नीति में उच्च प्रौद्योगिकी एवं उच्च निवेश के आधार पर कुछ प्राथमिक उद्योगों की सूची बनाई गई इन उद्योगों में बिना सरकार की अनुमति लिए 51% तक विदेश इक्विटी की इजाजत दी गई|

वर्तमान में अधिकतम सेक्टरों में स्वत: अनुमोदन के आधार पर 100% तक विदेशी प्रत्यक्ष विनिमय करने का अधिकार है |


 

किंतु निम्नलिखित सेक्टरों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर प्रतिबंध है – परमाणु ऊर्जा,लॉटरी का व्यवसाय तथा जुआ एवं सट्टा

3. उदारीकृत औद्योगिक स्थल निर्धारण नीति (Liberalized industrial site fixing policy) 

नई औद्योगिक नीति के अंतर्गत उद्योग की स्थापना की स्थान निर्धारण नीति में भी परिवर्तन किया गया है |

इस नीति में कुछ उद्योग जिन्हें अनिवार्य रूप से लाइसेंस देने की आवश्यकता है उनको छोड़कर अन्य उद्योगों की स्थापना के लिए सरकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है |

उद्योगों की स्थापना के लिए कुछ मानक तय किए गए हैं जिन्हें उद्योगों को उनकी स्थापना के समय ध्यान में रखना होगा यदि कोई उद्योग 10 लाख से कम जनसंख्या वाले शहरों में स्थापित किए जा रहे हैं तो उन्हें केंद्र सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है यदि उद्योग 10लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में लगाने हो और यह प्रदूषण फैलाने वाले हो तो इन्हें शहरी सीमा से 25 किलोमीटर बाहर स्थापित करना होगा |

4. सार्वजनिक क्षेत्र के महत्व में कमी (Lack of public sector importance)

वर्ष 1956 की औद्योगिक नीति में 17 उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखे गए थे नई नीति में इनकी संख्या घटाकर 8 कर दी गई वर्तमान में छह और उद्योगों को इससे मुक्त कर दिया गया इस प्रकार निम्नलिखित उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रह गई है उद्योग निम्न है –

परमाणु ऊर्जा भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (औद्योगिक नीति तथा संवर्धन विभाग को अधिसूचना 2630 ईस्वी के तहत)


 

रेल परिवहन

नई औद्योगिक नीति में यह भी कहा गया है कि एक सार्वजनिक उद्यमों में सरकारी अंश के एक हिस्से को म्यूचल फंड, वित्तीय संस्थाओं आम जनता तथा उद्योग में कार्यरत श्रमिकों को बेच दिया जाएगा ताकि उद्योग साधन जुटा सके तथा इनकी गतिविधियों में और लोग भी भाग ले सके |

यह भी कहा गया है कि जो सार्वजनिक उद्यम गंभीर रुप से बीमार है उनके लिए औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड से राय ली जाएगी ताकि पुन निर्माण की योजना तैयार की जा सके जो इकाइयां दोबारा स्वस्थ होने की स्थिति में नहीं है उन्हें बंद भी किया जा सकता है |

नई औद्योगिक नीति 1991 का मूल्यांकन (Evaluation of New Industrial Policy 1991)

औद्योगिक नीति 1991 के पश्चात भारत में औद्योगिक विकास तीव्र हुआ जहां 1991 के पूर्व के वर्षों में औद्योगिक विकास दर औसतन 4% थी वहीं 1991 के बाद 2012 तक औसत वृद्धि दर बढ़कर 6.5% प्रतिवर्ष हो गई |

इसके अतिरिक्त उदारीकरण की नीतियों के परिणाम स्वरुप उद्योगों में श्रम सघनता में बढ़ोतरी हुई की GDP में औद्योगिक उत्पादन का अनुपात बढा है |

यह नीति औद्योगिक विविधीकरण में भी सहायक हुई क्योंकि व्यक्तिगत पहल ने स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार उत्पादन को बढ़ाया है |


 

विदेशी निवेश तथा विदेशी प्रौद्योगिकी समझौते में किए गए परिवर्तनों से विदेशों से पूंजी, प्रौद्योगिकी तथा प्रबंध क्षमता का आयत हुआ है इससे इन संसाधनों की देश में कमी दूर हुई तथा उत्पादन क्षमता का स्तर ऊपर उठा है |

सार्वजनिक क्षेत्र में किए जाने वाले सुधारों से उत्पादन पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा इन सुधारों के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को निजी क्षेत्र के हाथ बेचने की व्यवस्था है क्योंकि निजी क्षेत्र की कार्य दक्षता बेहतर है |

इसलिए इस बिक्री से उत्पादन बढ़ेगा और अक्षम व कमजोर इकाइयों को बंद करने से इनमें लगे संसाधन बेहतर उपयोग के लिए इस्तेमाल किए जा सकेंगे |

निजीकरण के परिणाम स्वरुप स्टॉक एक्सचेंज पर सार्वजनिक इकाइयों के शेयरों की खरीद बिक्री बढ़ी है जिससे उनके दक्षता स्तरों में सुधार हुआ है |

जो इकाइयां सार्वजनिक क्षेत्र में बनी हुई है उनके लिए समझौता ज्ञापन बनाने व कार्यान्वित करने की भी व्यवस्था की गई है समझौता ज्ञापन के माध्यम से उद्यमों को निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है और उनके दिन-प्रतिदिन के कामकाज में अधिक स्वतंत्रता दी गई है |

आर्थिक सुधार का द्वितीय चरण (Second phase of economic reform)

प्रथम चरण के आर्थिक सुधार में जो कमियां रह गई हैं उन्हें दूर करने तथा आर्थिक सुधार की गति को और तेज करने हेतु द्वितीय चरण के आर्थिक सुधार को लागू करने की आवश्यकता है |


 

इसके दायित्व पूंजी खाते में रुपए की पूर्ण परिवर्तनीय बनाना आवश्यक है

आर्थिक नीतियों में निरंतरता लाई जानी चाहिए ,सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को कम किया जाना आवश्यक है |

प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट को लागू किया जाना आवश्यक है |

न्याय क्षेत्र में भी कई सुधार किए जाने आवश्यक है पिछड़े क्षेत्रों में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए |

आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के क्रम में सरकार ने बहु-उत्पाद खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश की आज्ञा प्रदान की है |

समाज में आए असंतुलन और क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में समावेशी विकास की नीति अपनाई गई |

प्रक्रिया को और आगे बढ़ाते हुए 12वीं पंचवर्षीय योजना में तीव्र, धारणीय एवं आर्थिक अधिक समावेशी विकास का लक्ष्य रखा गया है|

विकास कार्य में पर्यावरण को भी महत्व देते हुए ग्रीन जीडीपी की अवधारणा को अपनाया गया है इस प्रकार द्वितीय चरण के आर्थिक सुधार के व्यापक आयाम है |

इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए समाज के सभी तबकों तक इसका लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जाना आवश्यक है |

इन सुधार प्रक्रिया के सफल होने पर ही भारत, चीन, ब्राजील और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की श्रेणी में शामिल हो सकता है |

मुख्य विषय

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