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संवैधानिक विकास व 73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 (Constitutional Development and 73rd Constitution Amendment Act 1992)

 संवैधानिक विकास (Constitutional development)

1989 में राजीव गांधी सरकार ने पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिए जाने के लिए 64वाँ संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जिसे लोकसभा में पारित कर दिया किंतु राज्यसभा द्वारा पारित ना हो सका क्योंकि लोकसभा को कुछ समय बाद भंग कर दिया गया |

1989 में सत्ता परिवर्तन के बाद वी पी सिंह सरकार ने पंचायतों को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रयास किया जिसके तहत 1990 में मुख्यमंत्री के संविधान में पंचायतों के लिए नए सिरे से संविधान संशोधन करने पर सहमति बनी तथा 1990 में ही पंचायती राज से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया लेकिन सरकार गिरने से यह विधेयक भी संवैधानिक रूप न ले सका |

1991 में नई सरकार के गठन के बाद इन संस्थाओं को पी वी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा संवैधानिक दर्जा दिए जाने का प्रयास किया गया और 1991 में इस विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया जिसे लोकसभा द्वारा 22 दिसंबर, 1991 को तथा राज्यसभा द्वारा 23 दिसंबर 1991 को मंजूरी मिली और बाद में 17 राज्यों के अनुमोदन के साथ राष्ट्रपति द्वारा 20 अप्रैल, 1993 को अपनी सहमति दे दी गई तथा इस अधिनियम में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 का रूप लिया और 24 अप्रैल, 1993 से यह देश में प्रभावी हो गया |

73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 (73rd Constitution Amendment Act 1992)

इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग 9 का उपबंध किया गया है जिसका नाम पंचायत रखा गया पंचायत के लिए अनुच्छेद 243 से अनुच्छेद 243 (O) तक कई प्रावधान किए गए हैं तथा इनको सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए संविधान में 11वीं अनुसूची को जोड़ा गया है जिसमें पंचायतों से संबंधित 29 विषयों का वर्णन किया गया है |

इस अधिनियम के प्रभावी होने से संविधान में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 40 को व्यवहारिक रूप मिला है, जिसे गांधीजी के ग्राम स्वराज्य का सपना साकार हुआ है और सत्ता के विकेंद्रीकरण के द्वारा नागरिकों की भागीदारी बढ़ी है |

यद्यपि स्थानीय शासन संविधान की सातवीं सूची में वर्णित राज्य सूची का विषय है फिर भी नियम ऐसे अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है यहां पर इनसे संबंधित राज्यों को पर्याप्त विवेकाधीन शक्तियां दी गई है अतः प्रतिनिधात्मक लोकतंत्र की जगह को भागीदारी आधारित लोकतंत्र ने ले लिया है |

इस अधिनियम ने राज्यों को कानून बनाने के लिए मार्गदर्शक का कार्य किया है| जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश ने ऐसी विधि नहीं बनाई है तथा यह कानून नागालैंड, मेघालय, मिजोरम में जनजातीय परिषद जैसी संस्था होने के कारण प्रभावी नहीं हो पाया है |

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