हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
सिन्घु अपवाह तन्त्र की प्रमुख नदी सिन्धु है। इसकी कुल लम्बाई 2880 किलोमीटर है। भारत मे इसकी लम्बाई 709 किलोमीटर है। तिब्बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्पश्चात् पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है।
इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी चिनाब है जो हिमाचल प्रदेश के कुल्लु पहाडी से निकलती है। इसकी अन्य सहायक नदियों में सतलज, रावी, व्यास, झेलम, आदि प्रमुख हैं। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम है।
गंगा अपवाह तन्त्र
गंगा अपवाह तन्त्र मे मुख्य नदी गंगा है। भारत में यमुना इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी है। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मानसून के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्थायी होती हैं।
तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ् नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्थायी प्रकृति की हैं। हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्य प्रणाली सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।
ब्रह्मपुत्र अपवाह तन्त्र
ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्य महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
ब्रह्मपुत्र नदी विशव की सबसे लम्बी नदियाँ में से एक है। जिसकी लम्बाई 2900 किलोमीटर है। इस ऩदी का उद्गम स्थान मानसरोवर झील के निकट महान हिमनद (आंग्सी ग्लेसियर) से निकलती है। इसका अपवाह तंत्र देशों- तिब्बत (चीन), भारत तथा बंग्लादेश में फैला हुआ है। ब्रह्मपुत्र का अधिकतम् विस्तार तिब्बत (चीन) में है यहाँ इसे शांगपॊ (यारलुंग) नाम से जानी जाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी भारत के अरूणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है और दिहांग नाम से जानी जाती है तथा गारो पहाडी के निकट गोवालपारा के पास बांग्लादेश में प्रवेश करती है और जमुना नाम से जानी जाती है। यहाँ ब्रह्मपुत्र में तिस्ता आदि नदियाँ मिलकर अन्त में पद्मा (गंगा) नदी में मिल जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी में ही विश्व का सबसे बडा नदी द्वीप माजुली है जो संकटग्रस्त स्थिति में है इसे विश्वविरासत में सामिल कराने का प्रयास किया जा रहा है।
ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलती है, जहाँ इसे सांग-पो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
सहायक नदियाँ
यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी और सोन; गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्रबांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है। भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है।
मेघना की मुख्य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप
भौतिक दृष्टि से देश में प्रायद्धीपेत्तर तथा प्रायद्धीपीय नदी प्रणालियों का विकास हुआ है, जिन्हे क्रमशः हिमालय की नदियाँ एवं दक्षिण के पठार की नदियाँ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। हिमालय अथवा उत्तर भारत की नदियों द्वारा निम्नलिखित प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं।
पूर्वीवर्ती अपवाह
इस प्रकार का अपवाह तब विकसित होता है, जब कोई नदी अपने मार्ग में आने वाली भौतिक बाधाओं को काटते हुए अपनी पुरानी घाटी में ही प्रवाहित होती है। इस अपवाह प्रतिरूप की नदियों द्वारा सरित अपहरण का भी उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है। हिमालय से निकलने वाली सिन्धु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, भागीरथी, तिस्ता आदि नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती हैं।
क्रमहीन अपवाह
जब कोई नदी अपनी प्रमुख शाखा से विपरीत दिशा से आकर मिलती है तब क्रमहीन या अक्रमवर्ती अपवाह प्रतिरूप का विकास हो जाता है। ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली सहायक नदियाँ – दिहांग, दिवांग तथा लोहित इसी प्रकार का अपवाह बनाती है।
खण्डित अपवाह
उत्तर भारत के विशाल मैदान में पहुंचने के पूर्व भाबर क्षेत्र में विलीन हो जाने वाली नदियाँ खण्डित या विलुप्त अपवाह का निर्माण करती हैं।
मालाकार अपवाह
देश की अधिकांश नदियाँ समुद्र में मिलने के पूर्व अनेक शाखाओं में विभाजित होकर डेल्टा बनाती हैं, जिससे गुम्फित या मालाकार अपवाह का निर्माण होता है।
अन्तस्थलीय अपवाह
राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र
समानान्तर अपवाह
उत्तर के विशाल मैदान में पहुंचने वाली पर्वतीय नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।
आयताकार अपवाह
उत्तर भारत के कोसी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा आयताकार अपवाह प्रतिरूप का विकास किया गया है।
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