विषय सूची
प्राचीन इतिहास को जानने के स्त्रोत
PART 1
प्रागेतिहासिक काल
AUDIO NOTES
PART 2
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प्राचीन इतिहास को जानने के स्त्रोत
PART 1
अशोक के अभिलेखों को 8 वर्गो में विभक्त किया गया है
अशोक के अधिकांश अभिलेख ‘ब्राह्मी’ लिपि में उत्कीर्ण है भारत में हिंदी,पंजाबी,गुजराती,मराठी,तमिल,तेलगु,एवं कन्नड आदि भाषाओं का विकास ‘ब्राह्मी’ लिपि से हुआ है
ब्राह्मी लिपि को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने 1837 ई0 में पढने में सफलता प्राप्त की
शक शासक रुद्रामन ने सर्वप्रथम शुध्द संस्कृत भाषा में अभिलेख खुदवाये
रुद्रामन के अभिलेख गिरिनार व जूनागढ से प्राप्त हुए है जिन से दूसरी शताब्दी ई0 के पश्चिमोत्तर भारत के राजनीतिक एवं सामजिक स्थिति का ज्ञान होता है
बामियान स्थित गौतम बुध्द की प्रतिमा से भारत के बाहर बौध्द धर्म के प्रसार की जानकारी प्राप्त होती है
सिक्कों के अध्धयन को ‘न्यूमेस्मैटिक्स’ या मुद्राशास्त्र कहा जाता है
कानिष्क के सिक्कों से पता चलता है कि वह बौध्द धर्म का अनुयायी था
चंद्रगुप्त 2 ने शकों पर जीत प्राप्त करने की खुशी में चाँदी के सिक्के चलाए
सर्वाधिक शुध्द स्वर्ण मुद्राएँ कुषाणों ने तथा सबसे अधिक स्वर्ण मुद्राएँ गुप्तों ने चलाई
स्तूप की प्रथम चर्चा ऋग्वेद में मिलती है बौध्द विहार तथा स्तूपों का निर्माण 4-5 वीं शताब्दी के बाद हुआ
मंदिर निर्माण की नागर,वेसर व द्रविड शैलियाँ प्रचलित थी मंदिरों का निर्माण गुप्त काल के बाद हुआ
पटना के कुम्राहार से चंद्रगुप्त मौर्य के राजप्रसाद के अवशेष प्राप्त हुए है
कम्बोडिया के अंगकोरवाट मंदिर तथा जावा के बोरोबुदुर मंदिर से भारतीय संस्कृति के साउथ एशिया मे प्रसार के प्रमाण मिलते हैं
प्रागेतिहासिक काल
पशुपालन का प्रारम्भिक प्रमाण मध्य पाशण काल् मे मध्य प्रदेश के आदमगद तथा राजस्थन के बागोर से मिलता है
मानव द्वारा प्रयुक्त सर्वप्रथम अनाज जौ था
आगे सम्पूर्ण प्राचीन इतिहास के सभी प्रमुख तथ्य जाने जिसमे शामिल हैं
सिंघु घाटी सभ्यता
वैदिक संस्कृति
जैन धर्म, बोद्ध धर्म, आदि
मगध का उत्कर्श
पूर्व मौर्य काल
सिकंदर का आक्रमण
AUDIO NOTES
PART 2
मौर्य साम्रज्य का शासनकाल 321 ई0 पू0 से 184 ई0 पू0 तक चला
मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था
322 ई0 पू0 में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नन्द वंश के अंतिम शासक धनानंन्द की हत्या करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की
यूनानी साहित्य में चन्द्र्गुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स कहा गया है
305 ई0 पू0 में चन्द्रगुप्त का संघर्ष सिकंदर के सेनापति सेल्युकस निकोटर से हुई जिसमें चंद्रगुप्त की विजय हुई
चंद्रगुप्त के शासनकाल में मेगस्थनीज दरबार में आया और पाँच वर्षो तक पाटिलपुत्र रहा
मेगस्थनीज ने इन्डिका की रचना की जिसमें मौर्य साम्राज्य की दशा का वर्णन है
चंद्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र,मालवा,अवन्ति के साथ सुदूर साउथ भारत को मगध राज्य में मिलाया
चंद्रगुप्त ने बाद में जैन धर्म स्वीकार किया व भद्रबाहु से जैन धर्म को स्वीकार किया
चंद्रगुप्त मौर्य ने ई0 पू0 300 में अनशन व्रत करके कर्नाटक के श्रवणगोला में अपने शरीर का त्याग किया
300 ई0 पू0 में बिंदुसार मगध की गद्दी पर बैठा
यूनानी इतिहासकारों ने बिंदुसार को अपनी रचनाओं में अमित्रोकेट्स की संज्ञा दी है जिसका अर्थ होता है शत्रु का विनाशक
वायु पुराण में बिंदुसार को भद्रसार तथा जैन ग्रंथों में सिंहसेन कहा गया है
बिंदुसार के शासन काल में तच्शिला में दो विद्रोह हुए पहले विद्रोह को उसके पुत्र सुसीम ने दबाया व दूसरे को अशोक ने दबाया
बिंदुसार की मृत्यु 273 ई0 पू0 हुई
बिंदुसार की मृत्यु के 4 वर्ष बाद ई0 पू0 269 में अशोक मगध की गद्दी पर बैठा
सिंहसनारुढ होते समय अशोक ने ‘देवनामप्रिय’ तथा प्रियदर्शी’ जैसी उपाधि धारण की
अशोक की माता का नाम सुभ्रद्रांगी था और वह चम्पा (अंग)की राजकुमारी थी
अशोक ने कश्मीर तथा खेतान पर अधिकार किया कश्मीर में अशोक ने श्रीनगर की स्थापना की
राज्यभिषेक के 8वें वर्ष 261ई0 पू0 में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया
कलिंग के हाथी गुम्फा अभिलेख से ज्ञात होता है कि उस समय कलिंग पर नंदराज नाम का कोई राजा राज्य कर रहा था
कलिंग युध्द में व्यापक हिंसा के बाद अशोक ने बौध्द धर्म अपनाया
अशोक ने बौध्द धर्म का प्रचार-प्रसार किया उसने अपने पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा को बौध्द धर्म के प्रचार के लिये श्रीलंका भेजा
अशोक ने 10 वें वर्ष में बोधगया व 20 वें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की
अशोक ने ‘धम्म’ को नैतिकता से जोडा इसके प्रचार प्रसार के लिये उसने शिलालेखों को उत्कीर्ण कराया
अशोक के शिलालेख ब्राही,ग्रीक,अरमाइक तथा खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण है तथा स्तम्भ लेख प्राकृत भाषा में है
सर्वप्रथम 1750 ई0 में टील पैंथर ने अशोक की लिपि का पता लगाया
1837 ई0 मे जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के अभिलेखों को पढने में सफलता प्राप्त की
अशोक के बाद कुणाल गद्दी पर बैठा वृहद्रथ अंतिम मौर्य शासक बना
पुष्यमित्र शुंग ने वृहद्रथ की हत्या करके शुंग वंश की नींव रखी
पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण था व उस ने भागवत धर्म की स्थापना की
पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेघ यज्ञ किये
शुंग वंश का अंतिम शासक देवभूति था जिसकी हत्या 73 ई0 पू0 में उसके ब्राह्मण मंत्री वासुदेव ने की थी
कण्व वंश की स्थापना वासुदेव ने 73 ई0 पू0 में की थी
इस वंश का शासन मात्र 45 वर्ष रहा जिसमें 4 शसकों ने राज्य किया
सातवाहन वंश की सिमुक ने की गौतमीपुत्र शतकर्णी इस वंश का शक्तिशाली शासक था
गौतमीपुत्र शतकर्णी ने कार्ले का चैत्य मंदिर ,अजंता-एलोरा की गुफओं व अमरावती कला का विकास कराया
सातवाहन वंश मातृसत्तामक था तथा उनकी भाषा प्राकृत व लिपि ब्राह्मी थी
सातवाहन शासकों ने सीसा,चाँदी,ताँबा व पोटीन के सिक्के चलाये
डेमेट्रियस-प्रथम ने ई0 पू0 183 में मौर्योत्तर काल में पहला यूनानी आक्रमण किया
भारत में सोने के सिक्के जारी करने वाला पहला शासक वंश हिंद यूनानी था
सबसे प्रसिध्द यवन शासक मिनांडर था जो बौध्द साहित्य में मिलिंद के नाम से प्रसिध्द है
शक वंश का सबसे प्रतापी शासक रुद्रामन था
विक्रमादित्य ने शकों पर जीत की स्मृति में 57 ई0 पू0 में विक्रम संवत चलाया
गोन्दोफर्निस पल्लवों का पहला शासक था इसके शासन काल में सेंट थॉमस ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने भारत आया
कुजुल कडफिसेस ने 15 ई0 में कुषाण वंश की स्थापना की उसका उत्तराधिकारी विम कडफिसेस था
कुषाण वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक कनिष्क था जो 78 ई0 मे गद्दी पर बैठा
कनिष्क ने पुरुषपुर को अपनी राजधानी बनाया तथा राज्यारोहण के वर्ष से शक संवत प्रारम्भ किया
चरक ‘चरक सहिंत’ के रचनाकार चरक को चिकित्साशस्त्र का जनक कहा जाता है इस ग्रंथ में रोग निवारण की औषिधियों का वर्णन मिलता है
गुप्त वंश के शासन का प्रारम्भ श्रीगुप्त द्वारा किया गया किंतु इस वंश का वास्तविक शासक चंद्र्गुप्त ही था
चंद्रगुप्त ने महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की
चंद्र्गुप्त के बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना जो कि एक उच्च कोटि का कवि था
चंद्र्गुप्त2 के शासन काल में चीनी यात्री फाह्रान भारत यात्रा पर आया
कुमारगुप्त के शासन काल में नालान्दा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई इसे ऑक्सफोर्ड ऑफ महायान कहा जाता है
गुप्त युग में विभिन्न कलाओं मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला, संगीत, तथा नाट्य कला का अत्यधिक विकास हुआ
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