विषय सूची
कौन थे सैयद बंधु
क्यों कहा जाता है किंग मेकर
फ़र्रुख़सियर का वध
सैयद बन्धुओं की हत्या
कौन थे सैयद बंधु
सैयद बन्धु (‘हुसैन अली’ और उसका भाई ‘अब्दुल्ला’) ‘भारतीय इतिहास’ में ‘किंग मेकर (राजा बनाने वाले)’ के नाम से जाना जाते हैं। राज्य में अपने प्रभाव के कारण वे किसी को भी बादशाह बनाने की क्षमता रखते थे।
सम्राट बहादुर शाह प्रथम के राज्यकाल के अन्तिम वर्षों में उच्च पदाधिकारी बन गए थे ।
क्यों कहा जाता है किंग मेकर
इन्होंने चार मुग़ल बादशाहों-फ़र्रुख़सियर, रफ़ीउद्दाराजात, रफ़ीउद्दौलत और मुहम्मद शाह को सत्तारूढ़ करने में उनकी सहायता की।
उत्तराधिकार के युद्ध में दोनों भाईयों (अब्दुल्ला ख़ाँ और हुसैन अली) ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1708 ई. में राजकुमार अजीम-उस-शान ने हुसैन अली को बिहार में एक महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किया। 1711 ई. में उसने अब्दुल्ला ख़ाँ को इलाहाबाद में अपना नायब नियुक्त किया।
इस अहसान के बदले में सैयद बन्धुओं ने 1713 ई. में दिल्ली की गद्दी के लिए हुए युद्ध में अजीम-उस-शान के पुत्र फ़र्रुख़सियर का साथ दिया।
सैयद बन्धुओं के इस कार्य से प्रसन्न होकर फ़र्रुख़सियर ने अब्दुल्ला ख़ाँ को अपना वज़ीर नियुक्त किया और उसे कुतुबुलमुल्क़, यामीनउद्दौला, जफ़रजंग आदि उपाधियों से विभूषित किया तथा हुसैन अली को मीर बख़्शी के पद पर नियुक्त किया तथा इमादुलमुल्क़ आदि की उपाधि से विभूषित किया।
फ़र्रुख़सियर का वध
सम्राट अब्दुल्ला ख़ाँ के स्थान पर इत्काद ख़ाँ को वज़ीर बनाना चाहता था। फ़र्रुख़सियर ने ईद-उल-फ़ितर के अवसर पर लगभग 70,000 सैनिक एकत्रित कर लिए।
उधर अब्दुल्ला ख़ाँ ने भी एक विशाल सेना एकत्रित कर ली थी। हुसैन अली को जब अपने भाई और सम्राट के सम्बन्धों का पता चला तो वह मराठों की सहायता से दिल्ली पर चढ़ आया।
उधर अब्दुल्ला ख़ाँ ने भी महत्त्वपूर्ण सरदारों को लालच देकर अपने साथ मिला लिया था, जिसमें सरबुलन्द ख़ाँ निज़ामुलमुल्क़ और अजीत सिंह जैसे प्रमुख व्यक्ति सम्मिलित थे।
सैयद बन्धुओं ने सम्राट के सामने अपनी माँगें रखीं, जिसे सम्राट को स्वीकार करना पड़ा।
अन्त में सैयद बन्धुओं ने 28 अप्रैल, 1719 ई. को सम्राट फ़र्रुख़सियर का वध कर डाला।
सैयद बन्धुओं की हत्या
दिल्ली में एतमादुद्दौला, सआदत अली ख़ाँ और हैदर ख़ाँ द्वारा सैयद बन्धुओं के विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा गया।
हैदर ख़ाँ ने हुसैन अली को मारने का बीड़ा उठाया। दरबार में याचिका पढ़ते समय हैदर ख़ाँ द्वारा हुसैन अली की छुरा मारकर हत्या कर दी गई।
अब्दुल्ला ख़ाँ ने अपने भाई का बदला लेने के लिए एक विशाल सेना एकत्रित की।
उसने मुहम्मद शाह के स्थान पर रफ़ी-उस-शान के पुत्र मुहम्मद इब्राहीम को सम्राट घोषित करने का प्रयास किया।
किन्तु 13 नवम्बर, 1720 को हसनपुर के स्थान पर अब्दुल्ला ख़ाँ हार गया तथा उसे बन्दी बना लिया गया।
2 वर्ष के बाद 11 अक्टूबर, 1722 ई. को उसे विष देकर मार दिया गया।
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