महमूद गजनवी
- एक तुर्क सरदार अल्पतगीन ने 932 ई० में गजनी (मध्य एशिया) में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
- अल्पतगीन की मृत्यु के पश्चात उसके दास एवं दामाद सुबुक्तगीन ने 977 ई० में गजनी पर अधिकार कर लिया।
- सुबुक्तगीन ने पंजाब के तत्कालीन शासक जयपाल शाही को 986-87 ई० में हराया एवं तुर्कों के लिए भारत-विजय के द्वार खोल दिये।
- सुबुक्तगीन का पुत्र महमूद गजनी (जम्न-971 ई०) था, जिसने भारत के विरुद्ध प्रसिद्ध तुर्की अभियान किये।
- 998 ई० में महमूद गजनी 27 वर्ष की उम्र में गजनी का शासक बना, उस वक्त उसके राज्य में अफगानिस्तान एवं खुरासन सम्मिलित थे।
- 11 वीं शताब्दी भारत में राजनैतिक विकेंद्रियकरण का समय था
- यह समय राजपूत राज्यों का था जिन्होंने हर्ष के बाद अपनी अपनी प्रधानता की क्षेत्रीय ईकाईयाँ बनाई
- महम्मूद गजनवी ने 998 ई0 से 1030 ई0 तक भारत पर शासन किया
- महम्मूद गजनवी सुबुक्तगीन का पुत्र था अपने पिता के समय यह खुरसान का शासक था
- महम्मूद गजनवी ने 1001 ई0 से 1027 तक भारत पर 17 बार आक्रमण किये
सोमनाथ की लूट
- महमूद गजनी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आक्रमण सोमनाथ मंदिर पर था।
- जनवरी 1025 में वह अन्हिलवाड़ा पहुँचा एवं सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर पर आक्रमण कर दिया
- महमूद ने मंदिर के शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े कर दिये और टुकड़ों को उसने गजनी, मक्का एवं मदीना भेजवा दिया। ।
- सोमनाथ की लूट से महमूद को लगभग 2 करोड़ दीनार की संपत्ति हाथ लगी।
- बगदाद के खलीफा अल-कादिर बिल्लाह ने ‘महमूद’ के राज्यारोहण को मान्यता देते हुए, उसे यमीन-उद्द-दौला एवं यमीन-उल-मिल्लाह की उपाधियाँ प्रदान की।
- गजनी का स्वतंत्र शासक बनने के बाद महमूद ने ‘सुल्तान’ की उपाधि धारण की एवं इतिहास में सुल्तान महमूद के नाम से विख्यात हुआ।
- उसके आक्रमण का प्रमुख उद्देश्य अधिक धन लूटना था
- महम्मूद गजनवी का पहला आक्रमण सीमावर्ती नगरों पर हुआ जिसमें उसने कुछ किलों व प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया
- महम्मूद गजनवी का दूसरा आक्रमण 1001-1002 के बीच हिंदुशाही वंशीय शासक जयपाल के विरुध्द हुआ
- पेशावर के युध्द में हार जाने के कारण जयपाल ने आत्महत्या कर ली
- 1006 ई0 में महम्मूद गजनवी ने मुल्तान के शासक अब्दुल फतह के विरुध्द आक्रमण किया
- महम्मूद गजनवी ने अपना सोलहवॉ और सर्वाधिक महत्वपूर्ण आक्रमण 1025-26 ई0 में किया
- इस आक्रमण में उसने सोमनाथ मंदिर को अपना निशाना बनाया
- सोमनाथ मंदिर से उसे अपार संप्पति हासिल हुई बाद में उसने सोमनाथ मंदिर को तोड दिया
- महम्मूद गजनवी ने मन्दिर के शिवलिंग के टुकडे-टुकडे कर दिये और टुकडों को गजनी,मक्का ,मदीना भिजवा दिया
- महम्मूद गजनवी के दरबार में अलबरुनी फिरदौसी ,उत्बी एवं फरुखी जैसे रत्न थे
- महम्मूद गजनवी सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला पहला शासक था
- महम्मूद गजनवी के साथ प्रसिध्द विद्दान अलबरुनी भारत आया
- अलबरुनी की प्रसिध्द रचना किताब-उल-हिंद थी
- महम्मूद गजनवी ने भारतीय आक्रमणों के समय ‘जेहाद’ का नारा दिया और अपना नाम ‘बुतशिन’ रखा
- 30 अप्रैल 1030 में महम्मूद गजनवी की मृत्यु हो गयी
महमूद गजनवी के प्रमुख आक्रमण
राज्य शासक | वर्ष | संबंधित विशिष्ट तथ्य |
जयपाल (हिंदू शाही वंश पश्चिमोत्तर पाकिस्तान तथा पूर्वी अफगानिस्तान) | 1001 ई. | -जयपाल पराजित होकर बंदी बना | -शाही राजधानी वैहिंद/उद्भाण्डपुर ध्वस्त कर दी गई| -धन तथा हाथी देकर जयपाल मुक्त हुआ | -अपमानित ने जयपाल ने आत्महत्या कर ली |
फतह दाऊद (मुल्तान) | 1004 ई. | -मुल्तान पर अधिकार कर लिया गया| -शासक करमाथी जाति का था और शिया पंथ मानता था | -दाऊद को हटाकर जयपाल के पुत्र और आनंदपाल के पौत्र सुखपाल को गद्दी दी| -सुखपाल मुसलमान बना (नौशाशाह) परंतु पुनः हिंदू बना अत: महमूद ने इसे हटाकर बंदी बनाया | |
आनंदपाल (हिंदू शाही वंश) | 1008 ई. | -शाहियों ने नंदना को अपनी नई राजधानी बनाया जो साल्टरेंज में स्थिति थी -महमूद ने नंदना को नष्ट किया तथा आनंदपाल ने समर्पण किया |
नगरकोट (कांगड़ा) | 1009 ई. | -पहाड़ी राज्य कांगड़ा के नगरकोट पर आक्रमण कोई लड़ने नहीं आया अपार धन लूट के रुप में प्राप्त हुआ | |
दिद्दा (कश्मीर) लोहार वंश | 1015 ई. | -लोहार वंशीय शासिक दिद्दा महमूद पराजित हुआ (संभवत प्रतिकूल मौसम के कारण) यह भारत में महमूद की प्रथम पराजय थी | |
मथुरा, वृंदावन | 1015 ई. | -क्षेत्रीय कलचुरी शासक कोकल द्वितीय पराजित हुआ | -महमूद ने हिंदू तीर्थ स्थलों में भारी लूटपाट और तोड़फोड़ की और मथुरा तथा वृंदावन का पूर्णतःविध्वंस कर दिया गया | |
कन्नौज | 1015 ई. | -प्रतिहार शासक राज्यपाल बिना युद्ध किए ही भाग गया | -राज्यपाल को दंडित करने हेतु कलिंजर के शक्तिशाली चंदेल शासक विद्याधर ने शासकों का एक संघ बनाया | -कन्नौज की गद्दी पर त्रिलोचन पाल को बिठाया गया | |
बुंदेलखंड | 1019 ई. | -बुंदेलखंड (राजधानी कलिंजर) के चंदेल शासक विद्याधर ने एक विशाल सेना जुटाई महमूद सेना देखकर विचलित हो गया और कोई निर्णायक युद्ध नहीं हुआ | |
– | 1021 ई. | -पुनः आमना सामना हुआ परंतु कोई निर्णायक युद्ध नहीं हुआ | विद्याधर स्वता ही एक मासिक कर देने को सहमत हो गया | |
सोमनाथ | 1025 ई. | -काठियावाड़ का शासक भीमदेव बिना युद्ध किए ही भाग गया -पवित्र शिव मंदिर नष्ट करके भयंकर कत्लेआम मचाया गया और आपार लूट सामग्री प्राप्त की गई | -कुछ विद्वानों का मानना है कि महमूद ने 1027 ईस्वी में जाटों के विरुद्ध आक्रमण किया जो उसका भारत पर अंतिम आक्रमण था | |
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