बचपन में बलबन को मंगोल उठा कर ले गये थे और गजनी ले जाकर उन्होंने बसरा के ख्वाजा जमालुद्दीन के हाथों बेच दिया, ख्वाजा जमालुद्दीन उसे दिल्ली ले आये
इल्तुतमिश ने बलबन को ग्वालियर विजय के बाद खरीदा और उसकी योग्यता से प्रवाभित हो कर उसे खासदार का पद सौंपा दिया
रजिया के शासन काल में वह “अमीर-ए-शिकार” के पद पर था
रजिया के बाद उसका भाई मुजुद्दीन बहरामशाह(1240-1242) तक गद्दी पर बैठा
बहरामशाह के शासन काल में वह अमीर-ए-आखुर (अश्वशाला का प्रधान) बना
बहरामशाह के बाद अलाउद्दीन मसूदशाह(1242-1246) गद्दी पर बैठा
मसूद्शाह के काल में ही बलबन ने अपनी शक्ति बढाना शुरु किया
बलबन ने मसूद्शाह को कैद करके कारागार में डाल दिया जहाँ उस की मृत्यु हो गयी
मशूदशाह की मृत्यु के बाद नासिरुद्दीन महमूद(1246-1265) गद्दी पर बैठा
नासिरुद्दीन के समय में सुल्तान व तुर्की सरदारों में जो शक्ति संघर्ष चल रहा था वो खत्म हो गया
नासिरुद्दीन एक शांतिप्रिय शासक था वह खाली समय में कुरान की आयातों की नकल करता था
नासिरुद्दीन ने अपने शासन की बागडोर बलबन को सौंप दी और उसे ‘उलूग खाँ’ की उपाधि प्रदान की
बलबन ने अपनी पुत्री की शादी नासिरुद्दीन महमूद से कर दी
नासिरुद्दीन के समय में ही बलबन ने 1256 ई0 में मंगोल नेता हलाकू खाँ से समझौता करके पंजाब में शांति कायम की
इब्नतूता की रचना रहेला के अनुसार,बलबन ने नासिरुद्दीन महमूद की हत्या की और स्वयं गद्दी पर बैठा
बलबन ने स्वयं को फिरसौद के शाहनामा में वर्णित अफरासियाब वंश का बताता था
मिन्हाज-उस-सिराज हिंद ने अपनी रचना तबकाते-नासिरी इसी नासिरुद्दीन को समर्पित की है
1265 ई0 में बलबन सुल्तान ग्यासुद्दीन के नाम से गद्दी पर बैठा
बलबन का शासन काल 1265 से 1287 तक रहा
बलबन ने गद्दी पर बैठते ही सर्वप्रथम सुल्तान के पद की गरिमा कायम की और दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा के प्रबंध किया
जो इल्तुतमिश ने चालीसा दल बनाया था उसे बलबन ने नष्ट कर दिया क्युंकि उन अमीरों का सत्ता में दखल बहुत अधिक था और इल्तुत्मिश निरंकुश शासन चाहता था
बलबन दिल्ली सल्तनत का एक पहला ऐसा व्यक्ति था ,जो सुल्तान न होते हुए भी सुल्तान के छत्र का प्रयोग करता था और यह पहला शासक था जिसने सुल्तान के पद और अधिकारों के बारे में विस्तृत रुप से विचार प्रस्तुत किये
वह कुरान के नियमों को शासन व्यवथा का आधार मानता था उसके अनुसार सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि होता है,
बलबन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए “रक्त और लौह नीति” अपनाई
बलबन ने कहा कि सुल्तान का पद ईश्वर के समान होता है तथा सुल्तान का निरंकुश होना जरुरी है उसके अनुसार राजा को शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है इसलिए उसके कार्यो की सार्वजनिक जाँच नही की जा सकती
बलबन ने अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के बाद ‘जिल्ले इलाही’(ईश्वर का प्रतिबिम्ब) की उपाधि धारण की
वह शासक वर्ग में केवल उच्च कुल के लोगो को ही नियुक्त करता था, उसको छोटी जाति के लोगो को देख के बहुत क्रोध आता था बलबन कहता था कि “मै जब किसी छोटी जाति के व्यक्ति को देखता हूँ तो मेरी नाडी क्रोध से उत्तेजित हो जाती है” (यानि बहुत गुस्सा आता है)
बलबन दरबार में सम्पूर्ण वेश-भूषा के साथ उपस्थित होता था उसने दरबारी शिष्टाचारों को कठोरता से लागू किया उसके दरबार में न तो कोई हँसता था न मुस्कुराता था तथा उसके समय में दरबारियों का शराब पीना भी निषेध था
बलबन ने ईरानी परम्पराओं के अनुसार कई परंपराएं आरंभ करवाई उसने ‘सिजदा’ (भूमि पर लेट कर अभिवादन करना) और ‘पैबोस’ (सुल्तान के चरणों को चूमना) जैसी व्यवस्था भी लागू की जिनका उद्देश्य साफ तौर पर सुल्तान की प्रतिष्ठा में वृद्धि करना था
बलबन ने फारसी रहन-सहन की परम्पराओं को भी अपनाया उसने अपने पौत्रो के नाम भी फारसी सम्राटों की तरह कैकुबाद, कैखुसरों आदि रखे
बलबन के दरबार में प्रत्येक वर्ष ईरानी त्योहार ‘नौरोज’ काफी धूमधाम से मनाया जाता था इसकी शुरुआत बलबन के समय से ही हुई
बलबन ने अपने चचेरे भाई शेर खाँ को जहर दे कर मरवा डाला
1285 ई0 में मंगोलों ने तेमूर खां के नेत्रत्व में मुल्तान पर आक्रमण किया जिसमें बलबन का पुत्र मुहम्मद मंगोलों से लडता हुआ मारा गया
अपने पुत्र की मृत्यु का बलबन को बहुत गहरा आघात पहुंचा तथा शीघ्र ही एक वर्ष के अंदर ही बलबन की भी मृत्यु 1286 ई0 में हो गयी
विषय सूची
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10 प्रमुख बातें जो नहीं भूलनी हैं !
बहुविकल्पीय प्रश्न
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10 प्रमुख बातें जो नहीं भूलनी हैं !
बलबन ने ‘दीवान-ए-अर्ज’ (सैन्य विभाग) की स्थापना की
बलबन ने सिजदा तथा पैबोस की शुरुआत करवायी
प्रत्येक वर्ष नौरोज का त्योहार मनाना शुरु करवाया
बलबन “जिल्ले ईलाही” की उपाधि धारण की
बलबन ने लौह एवम रक्त नीति का पालन किया
बलबन ने ही तुर्कान ए चिहलगानी (चालीसा दल) को नष्ट किया
बलबन ने अक्तादारी प्रथा में सुधार किया
बलबन कुरान के नियमों को शासन का आधार बनाया
तुगरिल खां (बंगाल) ने बलबन के काल में ही विद्रोह किया था
बलबन को “उलुग खां “की उपाधि नासिरुद्दिन महमूद ने दी थी
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. शुध्द इस्लामी शैली में निर्मित भारत का प्रथम मकबरा कौन सा है
(a)सुल्तानगढी मकबरा
(b)बलबन का मकबरा
(c)ऐबक का मकबरा
(d)अलाउद्दीन का मकबरा
2. निम्न में से क्या बलबन द्वारा शुरु किया गया
(1)सिजदा
(2)पाबोस
(3)नौरोज
(4)दीवान-ए-अर्ज
कूट चुनें
(a)1और2
(b)2और4
(c)1और3 (d)1,2,3और4
3. बलबन ने राज्त्व सिद्धांत कहाँ से ग्रहण किया था
(a)सासानी-पार्शिया
(b)चगुताई
(c)खिलजी
(d)मामलुक
4. बलबनी वंश की नीव किसने डाली
(a)इल्तुतमिश
(b)कुतुबुद्दीन ऐबक
(c)बलबन
(d)रजिया
5. बलबन ने अपनी पुत्री की शादी किससे की
(a)अलाउद्दीन मसूदशाह
(b)बहरामशाह
(c)नासिरुद्दीन महमूद
(d)अलाउद्दीन खिलजी
6. दिल्ली सल्तनत के कौन से विद्दान ने राजत्व के सिध्दांत की विस्तारपूर्वक व्याख्या की
(a)इल्तुतमिश
(b)कुतुबुद्दीन ऐबक
(c)बलबन
(d)रजिया
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