पाकिस्तान के एक वकील ने लाहौर उच्च न्यायालय याचिका दायर की है कि वह सरकार को भारत से मशहूर कांस्य नर्तकी की मूर्ति (Dancing Girl) वापस लाने का निर्देश दे। हालांकि इसे लेकर भारतीय शोधकर्ताओं व इतिहास के जानकारों ने वकील के दावे का खंडन करते हुए कहा है कि हड़प्पा पर पाकिस्तान सिर्फ अपना हक नहीं जता सकता।
इस मूर्ति के बारे में जान लें
यह मूर्ति दिल्ली के नैशनल म्यूजियम में रखी गई है। जो दोनों देशों के बीच हुई संधि के तहत भारत को सौंपी गई थी, जो कि अब भारत की ही है।
1926 में अर्नेस्ट मैके द्वारा मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थी, ये लगभग 4500 साल पुरानी है
उसके बाएं हाथ पर 24 से 25 चूड़ियां और उसके दाहिने हाथ पर 4 चूड़ियां है, और कुछ वस्तु उसके बाएं हाथ में है
1973 में, ब्रिटिश पुरातत्वविद् मोर्टिमर व्हीलर इसे अपने पसंदीदा प्रतिमा के रूप में आइटम में वर्णित है उन्होंने कहा “She’s about fifteen years old I should think, not more, but she stands there with bangles all the way up her arm and nothing else on. A girl perfectly, for the moment, perfectly confident of herself and the world. There’s nothing like her, I think, in the world”
जॉन मार्शल ने इसे एक युवा लड़की के रूप में जो थोडी बेशर्म मुद्रा में उसके कूल्हे पर हाथ रखे और पैर को थोड़ा आगे करके खडी है जिसके पैर संगीत के साथ थिरकते हैं ।
कांस्य नर्तकी की प्रतिमा में मोम कास्टिंग तकनीक का उपयोग किया गया था
इस प्रतिमा से सभ्यता के बारे में दो प्रमुख बातें पता चलती हैं पहला यह है कि वे धातु सम्मिश्रण, कास्टिंग और अन्य परिष्कृत तरीकों से परिचित थे और दूसरा कि मनोरंजन, विशेष रूप से नृत्य संस्कृति का हिस्सा था
मयंक वाहिया (सिंधु घाटी सभ्यता पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के शोधकर्ता हैं) बताते हैं, ‘डांसिंग गर्ल” की यह मूर्ति हमारे पास ही रहनी चाहिए। बंटवारे के वक्त उन्हें अपनी सभ्यता की याद नहीं आई थी और यह बड़ी अजीब बात है कि अब वह इसे लेकर जाग गए हैं और मामला उठा रहे हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता पर शोध कर चुके पुणे के डेक्कन कॉलेज ऑफ रिसर्च के वाइस चांसलर डॉ. वसंत शिंदे ने कहा, ‘हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत बलूचिस्तान, सिंध, पाकिस्तान पंजाब, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र के कुछ हिस्से आते हैं और यह दोनों देशों की सभ्यता से जुड़ा मामला है बंटवारे से पहले इसे दक्षिण एशियाई सभ्यता में शामिल किया जाता था यह सभी इंसानों से जुड़ी सभ्यता है, किसी एक देश की नहीं।
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