विषय सूची
औरंगजेब की मृत्यु
औरंगजेब का पुत्र मुअज्जम
बहादुरशाह की संकीर्ण नीति का परित्याग
बहादुर शाह के दरबार में विकसित दल
बहादुर शाह की मृत्यु
जहांदार शाह का शासन
जहांदार शाह का व्यक्तित्व
लम्पट मूर्ख
फरुख्शियर का शासन काल
मुगल काल का किंग मेकर
बंदा बहादुर की मृत्यु
हुसैन अली व पेशवा बालाजी विश्ववनाथ की संधि
ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापारिक अधिकार
फरुख्शियर का विवाह
रफी-उद-दरजात का शासन
रफी-उद-दौला का शासन
मोहम्मद्शाह का शासन
मोहमदशाह के दल के नेता
हैदराबाद की नींव
बाजीराव का दिल्ली पर आक्रमण
कंधार पर हमला
करनाल का युध्द
मयूर सिंहासन व कोहिनूर हीरा
अहमद शाह का शासन काल
अहमद शाह दुर्रानी का आक्रमण
अहमद शाह के शासन काल का वजीर
शाहआलम द्वितीय का शासन
अकबर द्वितीय का शासन
30 ज़बरदस्त तथ्य
औरंगजेब की मृत्यु
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का पतन प्रारम्भ हो गया था औरंगजेब ने किसी को भी अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात उसके तीनों पुत्र मुअज्जम, आजम, कामबख्श में युध्द हो गया और अंत में उसका बडा पुत्र मुअज्जम जो कि उस वक्त 63 वर्ष का था वह विजयी हुआ उसने अपने दोनों भाईयों को मौत के घाट उतार दिया
औरंगजेब का पुत्र मुअज्जम
मुअज्जम ने लाहौर के समीप शाहदौला नामक पुल पर बहादुर शाह की उपाधि ग्रहण की और अपने आप को बादशाह घोषित किया
इसे बहादुरशाह प्रथम या शाहआलम प्रथम के नाम से भी जाना जाता है
बहादुरशाह की संकीर्ण नीति का परित्याग
इसने संकीर्ण धार्मिक नीति का परित्याग किया और शम्भा जी के पुत्र मराठा नेता शाहू को मुगल कैद से आजाद कर दिया
इसने जजिया कर भी वापस ले लिया और मेवाड तथा मारवाड की स्वत्रंता को स्वीकार कर लिया
बहादुरशाह ने मराठा को सरदेश मुखी वसूलने का अधिकार तो दे दिया परंतु उन्हें चौथ वसूलने का अधिकार नही दिया
बहादुरशाह ने शाहू को विधिवत मराठा के रूप में मान्यता प्रदान नहीं की
इसने गुरू गोविंद सिंह को उच्च मंसब प्रदान किया लेकिन बंदा बहादुर को दबाया
बुंदेला सरदार छत्रसाल और जाट नेता चूडामल के साथ शांति स्थापित की
बहादुर शाह के दरबार में विकसित दल
बहादुर शाह शिया मुस्लिम था उसके दरबार में दो दल विकसित हो गये थे एक ईरानी दल जिसमें असद खाँ व जुल्फिकार खाँ थे और दूसरा तूरानी दल जिसमें चिल्किच खाँ और गाजुद्दीन आदि थे
बहादुर शाह की मृत्यु
इसे ख्वाफी खाँ ने शाह-ए-बेखबर कहा है इसकी मृत्यु के बाद इसे एक माह तक दफनाया नहीं गया था
ओवन सिडनी इसके बारे में कहते है कि ये अंतिम मुगल बादशाह था जिसके बारे में कुछ अच्छी बात कही जा सकती है
जहांदार शाह का शासन
इसके बाद 1712 से 1713 तक जहांदार शाह का शासन हुआ
इसके शासन काल से उत्तराधिकार के युध्द में शहजादों के अलावा मत्वपूर्ण मंत्री भी भाग लेने लगे थे जैसे जहांदार शाह के समय में जुल्फिकार खां ने उसका समर्थन किया था यह जुल्फिकार खां के समर्थन से ही राजा बना था
जहांदार शाह का व्यक्तित्व
जहांदार शाह बहुत ही दुर्बल व चरित्रहीन व्यक्ति था जिसके कारण इसके प्रशासन की सारी बागडोर उसके बजीर जुल्फिकार खाँ के हाथ में थी
कहीं-कहीं वर्णन मिलता है कि जहांदार शाह ने जजिया कर को वापस ले लिया था
इसने अम्बर के राजा जय सिंह को मिर्जा राजा जबकि मारवाड के शासक अजीत सिंह को महाराजा की उपाधि दी
इसने मराठा सरदार शाहू को दक्कन में चौथ और सरदेश मुखी वसूल करने का अधिकार प्रदान किया
इसने जागीर और विभागा के बढती दरों में कमी की लेकिन इजरा पद्ति को बढावा दिया जिससे बिचौलियों में बृध्दि हो गई और कृषकों को भारी नुकसान उठाना पडा
लम्पट मूर्ख
1713 में आगरा में फरुख्शियर ने इसे शिकस्त दी जहांदार शाह को लम्पट मूर्ख की उपाधि दी
फरुख्शियर का शासन काल
जहांदार शाह के बाद फरुख्शियर का शासन काल रहा इसका शासन 1713 से 1719 तक रहा
1713 में जहांदार शाह व जुल्फीकार कार को मारने के पश्चात फरुख्शियर ने सम्राट की पद्वी धारण की
फरुख्शियर इन के सहयोग से शासक बना
फरुखशियर अजीम-उस-शान का पुत्र था ते भी सैय्यद बंधुओं के सहयोग से शासक बना था जैसे कि जहांदार शाह जुल्फिकार खाँ के सहयोग से शासक बना था
मुगल काल का किंग मेकर
सैय्यद बंधु अब्दुल्ला व हुसैन अली को इस काल का किंग मेकर कहा जाता है
सैय्यद बंधुओं में सैय्यद हुसैन अली पटना का उप गवर्नर था और सैय्यद अब्दुल्ला खाँ इलाहबाद का
फरुख्शियर के शासन काल में वजीर का पद
फरुख्शियर के शासन काल में हुसैन अली खाँ मीर बक्शी तथा अब्दुला खाँ को वजीर का पद प्रदान किया गया था
बंदा बहादुर की मृत्यु
1715 मे फरुख्शियर ने बंदा बहादुर को मरवा डाला
हुसैन अली व पेशवा बालाजी विश्ववनाथ की संधि
1719 में हुसैन अली ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ के साथ एक संधि की इस संधि में दिल्ली सत्ता के संघर्ष में मराठों द्वारा सैनिक सहायता देने के आश्वासन देने पर उन्हें कई रियादतें दी गयी
सैय्यद बंधुओं ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति का पालन किया और जजिया को पूर्णत: समाप्त कर दिया तथा अनेक स्थानो पर तीर्थ यात्रा कर को भी समाप्त कर दिया
ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापारिक अधिकार
1717 ई. में फरुख्शियर ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को व्यापारिक अधिकार प्रदान किये इसके अंतर्गत तीन हजार वार्षिक कर के बदले बंगाल में व्यापार का अधिकार दे दिया
फरुख्शियर का विवाह
राजपूर राजा अजीत सिंह की पुत्री का विवाह फरुख्शियर के साथ हुआ
रफी-उद-दरजात का शासन
1719 में सैय्यद बंधुओं ने मराठों की मदद से फरुख्शियर को मारकर रफी-उद-दरजात को गद्दी पर बैठाया
रफी-उद-दरजात को क्षय रोग होने के कारण यह चार महीने में ही मर गया
रफी-उद-दौला का शासन
इसके पश्चात रफी-उद-दौला शाहजहां के नाम द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा किंतु अफीम का सेवन करने से इसकी भी जल्द ही मृत्यु हो गई
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मोहम्मद्शाह का शासन
रफी-उद-दौला जो शहजहाँ द्वतीय के नाम से गद्दी पर बैठा था उसकी मृत्यु के पश्चात मोहम्मद शाह 1719 से 1748 तक गद्दी पर बैठा
सैय्यद बंधुओं ने जहानशाह के 18 वर्षीय पुत्र रोशन अख्तर को मोहम्मद शाह की उपाधि प्रदान करके गद्दी पर बैठाया
कालांतर में उसकी विलासतापूर्ण प्रवृति के कारण उसे रंगीला की उपाधि भी मिली
मोहमदशाह के दल के नेता
मोहम्मद शाह के समय निजामुलमुल्क तथा मुहम्मद अमीन खाँ तुरानी दल के नेता थे
सैय्यद बंधुओं मे हुसैन अली को हैदर खाँ ने मार डाला तथा 1724 में अब्दुल्ला खाँ को विष पिलाकर मार डाला
हैदराबाद की नींव
1722 में निजमुलमुल्क वजीर नियुक्त हुआ उसने प्रशासनिक सुधार लाने का प्रयत्न किया परंतु अन्त: सम्राट की संदेह्स्पद प्रवृत्ति के कारण वह दक्कन चला गया और दक्कन में स्वतंत्र हैदराबाद राज्य की नींव डाली
मोहम्मद शाह के शासन काल में सआदत खाँ ने अवध में तथा अलीवर्दी खाँ ने बंगाल में स्वतंत्र राज्य की नींव डाली
मोहम्मद शाह ही एक ऐसा शासक था जिसके काल में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना शुरू हुयी थी
बाजीराव का दिल्ली पर आक्रमण
मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम ने 1737 में कुल 500 घुडसवारों के साथ दिल्ली पर आक्रमण किया
कंधार पर हमला
1739 में ईरान का नेपोलियन नाम से विख्यात नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया जब नादिरशाह ने कंधार पर हमला किया तो मोहम्मद शाह ने उसे विश्वास दिलाया कि भगौडो को काबुल मे शरण नहीं दी जायेगी
किंतु ऐसा नहीं हुआ जब नादिरशाह ने एक दूत भेजा तो दिल्ली में उसकी हत्या कर दी गई
नादिरशाह ने इसे भारत पर आक्रमण का प्रत्यक्ष कारण बना लिया
करनाल का युध्द
24 फरवरी 1739 को करनाल में मोहम्मद शाह और नादिरशाह के मध्य युध्द हुआ
निजामुलमुल्क, कमरुद्दीन तथा सआदत खाँ मुगल सेना की तरफ से थे युध्द में कमुरुद्दीन मारा गया व सआदत खाँ बंदी बना लिया गया
युध्द मात्र तीन घंटे चला युध्द के पश्चात निजामुलमुल्क ने शांति दूत की भूमिका निभायी
दिल्ली मे कुछ मुगल सैनिको ने फारसी सैनिकों का वध कर डाला इससे क्रुध्द होकर नादिरशाह ने दिल्ली मे कत्लेआम करवाया
मयूर सिंहासन व कोहिनूर हीरा
नादिरशाह दिल्ली से मयूर सिंहासन व कोहिनूर हीरा भी लूट कर ले आया
कश्मीर और सिंधु नदी के पश्चिमी प्रदेश पर भी नादिर शाह का अधिकार हो गया
अहमद शाह का शासन काल
नादिरशाह के बाद अहमदशाह गद्दी पर बैठा इसका शासनकाल 1748 से 1754 तक रहा
अहमदशाह मोहम्मद शाह का पुत्र था इसकी उधमबाई माता एक नृत्यांगना थी
अहमदशाह के शासनकाल में उधमबाई और उसके प्रेमी जावेद खाँ के हाथों में शासन की बागडोर थी
अहमद शाह दुर्रानी का आक्रमण
इसके शासनकाल मे 1748, 1749 में अफगान शासक अहमदशाह दुर्रानी ने आक्रमण किया और उससे सम्पूर्ण देश का अधिकार पत्र लिखवा लिया यह बहुत विलासी व्यक्ति था उसने अपने ढाई वर्ष के पुत्र महमूद को पंजाब का गवर्नर, एक वर्ष के बच्चे को कश्मीर का गवर्नर तथा 15 वर्ष के बच्चे को उसका द्युक्ति नियुक्त कर दिया
अहमद शाह के शासन काल का वजीर
इसके समय कालांतर में गाजीरुद्दीन वजीर बना उसके बाद इमाद-उल-मुल्क वजीर बना
आलमगीर द्वितीय का शासन
इसके बाद अगला शासक आलमगीर द्वितीय बना इसका शासन काल 1754 से 1758 तक रहा
मुगल वजीर इमाल-उल-मुल्क ने मुगल सम्राट अहमदशाह को अंधा करके उसके बाद आलमगीर द्वितीय को सिंहासन पर बैठाया
आलमगीर द्वितीय जहादारशाह का पुत्र था जब वह अपने वजीर के चुंगल से मुक्ति पाने का प्रयास कर रहा था उस समय इसे मार डाला गया
शाहआलम द्वितीय का शासन
आलमगीर द्वितीय के बाद शाहाआलम द्वितीय शासक बना इसका शासन काल 1759 से 1806 तक चला
इसका वास्तविक नाम अली गौहर था शासक बनने के बाद यह 12 वर्ष तक दिल्ली नही गया
बक्सर युध्द
इसने 1764 में बंगाल के मीर कासिम और अवध के शुजाउद्दौला के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुध्द बक्सर का युध्द किया किन्तु हार जाने के बाद यह कई वर्षो तक इलाहबाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के संरक्षण में रहा
1772 में यह मराठों की सहायता से दिल्ली पहुंचा 1765 में इसने बिहार, बंगाल और उडीसा की दीवानी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दी और कम्पनी ने उसे 26 लाख रु. की वार्षिक राशि देने का वचन दिया
रोहिल्ला सरदार गुलाम कादिर ने इसे अंधा कर दिया और उसे गद्दी से हटा कर विदारत को गद्दी पर बैठाया परन्तु मराठों ने उसे पुन: गद्दि पर बैठा दिया
1803 में अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया उसके बाद 1806 तक यह अंग्रेजों की पेंशन पर जीवित रहा
अकबर द्वितीय का शासन
इसके बाद अकबर द्वितीय ने 1806 से 1837 तक शासन किया इसने अपने पेंशन के सिलसिले में ‘राममोहन राय’ को ‘राजा’ की उपाधि देकर इंग्लैड भेजा
बहादुरशाह का शासन
अकबर द्वितीय के बाद बहादुर शाह ने शासन किया शायर होने की वजह से इसे ‘बहादुर शाह जफर’ भी कहा गया
1857 के विद्रोह में भाग लेने के कारण इन्हें बंदी बना कर रंगून के लिए निर्वाचित कर दिया गया था
1862 में इनकी मृत्यु होने पर मुगल वंश का अंत हो गया
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30 ज़बरदस्त तथ्य
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात, उसके पुत्रों के बीच हुए उत्तराधिकार के संघर्ष में सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह ने बहादुर शाह को समर्थन प्रदान किया।
बहादुर शाह जिसका पूर्व नाम मुअज्जम था शाह-ए-बेखबर के नाम से प्रसिद्ध था।
बहादुर शाह के शासनकाल में मराठा नेता साहू को मुगल-कैद से आजाद कर दिया गया।
बहादुर शाह ने दक्षिण में मराठों द्वारा चौथ एवं सरदेशमुखी वसूल करने के अधिकार को मान्यता प्रदान कर दी।
बहादुर शाह की मृत्यु के पश्चात 29 मार्च, 1712 को 51 वर्षीय जहाँदार शाह सम्राट बना। वह एक अयोग्य व्यक्ति था, उसे लम्पट मूर्ख कहा गया है।
फरूर्खशियर ने 10 जनवरी 1713 को सैय्यद बंधुओं की मदद से जहाँदार शाह को युद्ध में बुरी तरह परास्त किया। मुगल वंश का घृणित कायर फर्रूखशियर को कहा जाता है।
जहाँदार शाह 51 वर्षीय होते हुए भी लाल कुमारी नामक एक वेश्या के साथ रंगरेलियाँ मनाने में व्यस्त रहता था।
फरूर्खशियर 11 जनवरी, 1713 ई० को दिल्ली की गद्दी पर बैठा तथा 1719 ई० तक राज किया।
परवर्ती (contemporary) मुगल साम्राज्य में सैय्यद बंधु अब्दुल्ला खाँ एवं हुसैन अली खाँ को सम्राट-निर्माता (King Maker) के रूप में जाना जाता था।
फर्रुखसियर ने हिंदुओं से जजिया वसूलना बंद कर दिया।
फर्रुखसियर के शासनकाल में मेवाड़ के राजा अजीत सिंह के विद्रोह को दबाया गया।
फर्रुखसियर ने 19 जून 1716 को सिख नेता बंदा सिंह को विद्रोह के कारण मृत्यु दंड दिया।
फर्रुखसियर के शासनकाल में जाटों द्वारा चूरामन के नेतृत्व में किये गये विद्रोह का दमन किया गया।
फर्रुखसियर के बाद रफी-उद-दरजात 28 फरवरी, 1719 में गद्दी पर बैठा। वह सैय्यद बंधुओं के हाथों की कठपुतली था।
1719 ई० में मुहम्मद शाह शासक बना, उसने 1748 ई० तक शासन किया। वह अय्याश प्रवृत्ति का था, अत: उसे रंगीला बादशाह कहा गया है। उसने 1720 में सैय्यद बंधुओं का दमन किया।
मुहम्मद शाह के शासनकाल में निजाम-उल-मुल्क ने विद्रोह कर स्वयं को दक्षिण के 6 सूबों का शासक घोषित कर दिया तथा हैदराबाद को अपनी राजधानी बनाया।
मुहम्मद शाह के शासन काल में ईरान (फारस) के शासक नादिर शाह ने 1738-39 ई० में भारत पर आक्रमण किया तथा लूट-पाट की एवं इससे मुगल साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
नादिर शाह अपने साथ अपार धनराशि, शाहजहाँ का तख्ताउस (मयर सिंहासन) तथा कोहिनर हीरा उठाकर ले गया।
मयूर सिंहासन (Peacock Throne) पर अंतिम बार बैठने वाला मुगल शासक मुहम्मद शाह था।
शाहआलम-II (अली गौहर) के शासनकाल में 1761 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को जबरदस्त शिकस्त दी। इस युद्ध में मराठों का नेतृत्व सदाशिव राव भाउ एवं इब्राहिम गार्दी ने किया (अब्दाली ने भारत पर 8 बार आक्रमण किये)।
शाह आलम-II के शासनकाल में अंग्रेजों ने 1803 ई० में दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया।
शाह आलम-II की हत्या 1806 ई० में गुलाम कादिर खाँ द्वारा कर दी गयी।
बहादुर शाह-II अथवा, बहादुर शाह जफर अंतिम मुगल सम्राट था। उसे 1857 ई० के विद्रोह के बाद रंगून भेज दिया गया।
मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति अधिकांशतः राजनीति से प्रेरित थी। वह अकबर की उदार एवं सहिष्णु नीति हो या औरंगजेब की कट्टर धर्मांध नीति, दोनों ही में राजनीति के तत्व विद्यमान हैं।
अकबर ने इस्लाम को राजधर्म की हैसियत से पदच्युत कर दिया।
अकबर ने अन्य धर्मों के प्रति उदारता की नीति अपनाते हुए दीन-ए-इलाही की स्थापना की एवं महजर की घोषणा की।
अकबर ने धार्मिक वाद-विवाद हेतु फतेहपुर सिकरी में इबादत खाने की स्थापना की।
अकबर ने प्रशासन में गैर-मुस्लिमों को ऊँचे पद दिये, उनसे वैवाहिक संबंध स्थापित किये तथा रक्षा बंधन, होली, दीवाली एवं दशहरा जैसे हिंदुओं के पर्व उसने बहुत उत्साह से मनाए।
अकबर हिंदू राज्य-विधान के अनुसार अपनी जनता को झरोखा दर्शन देता था। परंतु शाहजहाँ के शासनकाल में धार्मिक कट्टरता का बाजार पुनः गर्म हो उठा।
औरंगजेब के शासनकाल में धर्मांधता चरमोत्कर्ष पर पहुँची। उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाने, नौरोज, दीवाली, दशहरा के दरबार में आयोजन, धार्मिक जूलूसों के आयोजन आदि को प्रतिबंधित कर दिया। हिंदुओं के अनेक मंदिरों को तोड़ा एवं तरह-तरह से उनपर अत्याचार किये।
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