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औरंगजेब (जिंदा पीर ) का इतिहास

 मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब का जन्म 24 अक्टूबर 1618 ई. को उज्जैन के पास दोहद नामक स्थान पर हुआ था | 1633 ई. में सुधाकर नामक हाथी को घायल करने के कारण शाहजहां ने उसे बहादुर की उपाधि दी | 1636 ई. में औरंगजेब को शाहजहां ने पहली बार दक्कन का सूबेदार बनाया जहां वह 1644 ई. तक रहा


विषय सूची


गोलाकुण्ड तथा बीजापुर संधि

दाराशिकोह की हत्या

औरंगजेब का राज्याभिषेक

औरंगजेब का राजत्व सिध्दांत

इस्लाम का समर्थक

संगीत विरोधी

धार्मिक नीति (Religious Policy)

औरंगजेब द्वारा समाप्त किये गये कर

राजाराम से विद्रोह

औरंगजेब की मृत्यु 

इस ग्रंथ को संरक्षण 

प्रांतों की संख्या

मराठों का राजनीति में भाग

शंभाजी की हत्या 

औरंगजेब द्वारा बनवायी गई इमारतें 

गुरू तेगबहादुर से संघर्ष

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

21 महत्वपूर्ण तथ्य

गोलाकुण्ड तथा बीजापुर संधि

1652 ई. में जब औरंगजेब दूसरी बार दक्षिण का सूबेदार बना तो उसने गोलाकुण्डा एवं बीजापुर संधि करने के लिए बाध्य किया शासक बनने के बाद उसने 1686 ई. में बीजापुर तथा 1687 ई. में गोलाकुण्डा पर मुगल सत्ता की स्थापना की

दाराशिकोह की हत्या

औरंगजेब ने अपने प्रबलतम उत्तराधिकारी प्रतिद्वन्दी दाराशिकोह को देवराई के युध्द में परास्त कर उसकी हत्या करवा डाली

औरंगजेब का राज्याभिषेक

शाहजहां को बंदी बनाने के बाद 21 जुलाई 1658 ई. को औरंगजेब को औरंगजेब आगरा के सिंहासन पर बैठा, लेकिन उसका वास्तविक राज्याभिषेक दिल्ली में 5 जून 1659 ई. को हुआ राज्यभिषेक के अवसर पर उसने “अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी” की उपाधि धारण की

औरंगजेब का राजत्व सिध्दांत

औरंगजेब का राजत्व सिध्दांत इस्लामी आवरण युक्त था उसका मुख्य लक्ष्य दारूल हर्ब (गैर इस्लामिक देश) को दारुल इस्लाम (इस्लामिक देश) में बदलना था

इस्लाम का समर्थक

औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था

औरंगजेब ने मुद्राओं पर कलमा खुदवाना बंद करवा दिया

उसने नौरोज त्यौहार मनाना, तुलादान एवं झरोखा दर्शन बंद कर दिया

उसने दरबार में होली, दीपावली मनाना बंद करवा दिया

उसने 1679 ई. में हिंदुओं पर पुन: जजिया तथा तीर्थ यात्रा कर लगाया

संगीत विरोधी

दरबार से नाचने गाने वालों को बाहर निकाल दिया वह संगीत विरोधी था

धार्मिक नीति (Religious Policy)

यह कुरान के नियमों का पूर्णत: पालन करता था

औरंगजेब को जिंदा पीर (zinda pir)भी कहा जाता है

औरंगजेब के काल में ही पाटन का सोमनाथ मंदिर, बनारस का विश्वनाथ मंदिर और मथुरा का केशव मंदिर तोडा गया

औरंगजेब ने राजपूतों (हिंदुओं में) के अतिरिक्त अन्य किसी हिंदू जाति को पालकी का उपयोग करने तथा अच्छे हथियार रखने पर रोक लगा दी

इसने इसने भांग का उत्पादन बंद करवा दिया व वेश्याओं को देश से बाहर निकलने को कहा व सती प्रथा पर रोक लगवाई

औरंगजेब की धार्मिक नीति के विरूध्द सबसे पहले जाटों ने विरोध किया 1669 ई. में स्थानीय जाटों ने गोकुल के नेतृत्व में विद्रोह किया तिलपत के युध्द मे जाट परास्त हो गये

औरंगजेब द्वारा समाप्त किये गये कर

समकालीन इतिहासकार खाफी खां अपने ग्रंथ मुंतखब-उल-लुबाब में लिखते है कि शासक बनने के बाद औरंगजेब ने विभिन्न प्रकार के 80 करों को समाप्त कर दिया उन्हीं 80 करो में राहदारी तथा पानदारी प्रमुख कर थे

राजाराम से विद्रोह

1686 में जाटों ने राजाराम के नेतृत्व में पुन: विद्रोह किया मुगलों से संघर्ष के दौरान राजाराम मारे गये आगे चलकर जाटो ने नेता चूडामन तथा बदन सिंह ने अव्यवस्था का लाभ उठाकर आगरा तथा मथुरा पर अधिकार कर लिया और भरतपुर राज्य की नींव रखी

औरंगजेब की मृत्यु 

1707 में दक्षिण में इसकी मृत्यु हो गई इसे दौलताबाद से कुछ दूर दफना दिया गया

इस ग्रंथ को संरक्षण 

औरंगजेब ने जिस एकमात्र ग्रंथ को संरक्षण दिया था वह था- फतवा-ए-जहांदारी(Fatwa e jahandari)

प्रांतों की संख्या

औरंगजेब के काल में मुगल प्रांतों की सर्वाधिक संख्या (21) थी

मराठों का राजनीति में भाग

मराठे जहांगीर के शासन काल में ही दक्षिण की राजनीति में भाग लेते थे प्रारंभ में मराठों ने शाहजी के नेतृत्व अपनी शक्ति को विकसित किया आगे चलकर शाहजी के पुत्र शिवाजी स्वतंत्र मराठा राज्य के संस्थापक बने

शंभाजी की हत्या 

1680 ई. में शिवाजी की मृत्यु के बाद उनका पुत्र शम्भाजी क्षत्रपति बना शंभाजी ने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर द्वतीय की मदद की, अत: औरंगजेब की सेना ने दक्षिण मे जा कर शंभाजी की हत्या कर दी

शंभाजी की हत्या से क्षुब्ध होकर सम्पूर्ण महाराष्ट्र औरंगजेब के विरूध्द खडा हो गया, अब मराठों की कमान राजाराम ने संभाली

1700 ई. में राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने अल्पवयस्क पुत्र शिवाजी द्वतीय की संरक्षिका बनकर मराठा नेतृत्व की कमान संभाली

औरंगजेब मराठों के विरूध्द असफल रहा

औरंगजेब द्वारा बनवायी गई इमारतें 

औरंगजेब ने दिल्ली के लाल किले में मोती मस्जिद का निर्माण कराया

उसने औरंगाबाद में अपनी पत्नी राबिया-उद-दौरानी का मकबरा बनवाया जिसे दूसरा ताजमहल तथा बीबी का मकबरा भी कहा जाता है

गुरू तेगबहादुर से संघर्ष

औरंगजेब का संघर्ष सिक्खों के नौवे गुरू तेगबहादुर से हुआ

गुरू तेगबहादुर की हत्या का बदला लेने के लिए सिक्खों के अंतिम गुरू गुरूगोवोंद सिंह ने मुगलों से संघर्ष किया औरंगजेब ने गुरू गोविंद सिंह के विरूध्द अभियान चलाया गुरू गोविंद सिंह ने सम्पूर्ण सिक्खों को खालसा कहा

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

औरंगजेब को आलमगिरी प्रथम भी कहा जाता है

यह अरबी, फारसी, तुर्की भाषा का जानकार था

इसके शासनकाल में सबसे ज्यादा हिंदू सेनापति थे

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21 महत्वपूर्ण तथ्य

औरंगजेब ने 18 मई, 1637 ई० को फारस के राजघराने से संबंधित शाह नवाज की पुत्री दिलरास बानू से विवाह किया। 

औरंगजेब को 12-14 अप्रैल, 1659 में उत्तराधिकार के देवराई-युद्ध में सफलता मिली।

औरंगजेब ने 31 जुलाई, 1658 ई० को आगरे में अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी के नाम से अपना राज्याभिषेक करवाया।

औरंगजेब ने 1678 ई० में मारवाड़ तथा 1680 ई० में मेवाड़ को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। इस संघर्ष में उसे दुर्गा दास राठौर के जबरदस्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

औरंगजेब के शासनकाल में सिखों के साथ, मुगलों की नादौन में 1685 ई० एवं खिदराना में 1706 ई० में दो युद्धों में पराजय हुई। . औरंगजेब के शासनकाल में 1686 ई० में बीजापुर एवं 1687 ई० में गोलकुंडा पर मुगलों का अधिकार हो गया।

औरंगजेब के शासनकाल में 1672 ई० में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश में अफ्रीदियों ने सरदार अकमल खाँ के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया, जिसे दिसंबर, 1675 ई० में दबाया जा सका।

औरंगजेब के शासनकाल में जाटों ने 1669 ई० में गोकुल के नेतृत्व में एवं 1686 ई० राजाराम तथा रामचेरा के नेतृत्व में तथा 1689 ई० के बाद चुरामन के नेतृत्व में विद्रोह किये जिन्हें पूर्णरूपेण कुचलने की शक्ति मुगल सम्राट में नहीं थी। 

चुरामन ने मुगलों का विरोध करते हुए एक शक्तिशाली सेना खड़ी कर ली एवं भरतपुर राज्य की स्थापना की। 

औरंगजेब ने सिखों के ‘9वें’ गुरु तेगबहादुर को इस्लाम न स्वीकारने के कारण मृत्युदंड दिया। 

औरंगजेब के शासनकाल में सिखों के ’10वें’ गुरु गोविंद सिंह ने 30 मार्च, 1699 ई० को वैशाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की। 

औरंगजेब के शासनकाल में 1643 ई० में मराठा नेता शिवाजी का दमन करने के उद्देश्य से शाइस्ता खाँ को एक सेना के साथ भेजा गया। परंतु, वह असफल रहा। 

1665 ई० में जयसिंह के प्रयत्नों से औरंगजेब एवं शिवाजी के बीच पुरंदर की संधि हुई।

औरंगजेब के गुरु का नाम मीर मुहम्मद हाशिम था। औरंगजेब को जिंदा पीर कहा जाता था।

औरंगजेब एक धर्मान्ध शासक था तथा वह इस्लाम धर्म की सुन्नी शाखा का अनुयायी था।

औरंगजेब ने 1669 ई० में अपने सूबेदारों के नाम जारी कर शासनादेश में तमाम हिंदू मंदिरों को तोड़ने की आज्ञा दी। औरंगजेब ने 12 अप्रैल, 1679 ई० को जजिया कर पुनः लागू कर दिया। यह कर अकबर के शासनकाल में समाप्त कर दिया गया था।

औरंगजेब ने कुरान को अपने शासन का आधार बनाया तथा इस्लाम को पुनः राजधर्म घोषित किया। औरंगजेब की मृत्यु 4 मार्च, 1707 को हुई।

औरंगजेब के शासनकाल में कई ग्रंथों की रचना हुई-मुन्तखाब-उल-लुबाब (खफी खाँ), आलमगीरनामा (काजेम शीराजी), आलमगीरनामा (हातिम खाँ), वाकयात-ए-आलमगीरी (आकिल खाँ),खुलासत-उत-त्वारीख (सुजन राय भंडारी), फुतुहात-ए-आलमगीरी (ईसरदास नागर), नुस्ख-ए-दिलकुशा (भीमसेन सक्सेना), मासीर-ए-आलमगीरी (मुस्तइद खाँ)।

काजेम शीराजी औरंगजेब के काल में सरकारी इतिहासकार था। 

औरंगजेब ने औरंगाबाद में अपनी बीबी रविया-उद-दौरानी की समाधि पर बीवी का मकबरा बनवाया। उसने लाहौर में बादशाही मस्जिद का निर्माण करवाया।

औरंगजेब ने अपने दरबार में संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया। 

औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात, उसके पुत्रों के बीच हुए उत्तराधिकार के संघर्ष में सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह ने बहादुर शाह को समर्थन प्रदान किया।

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