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केसलर सिंड्रोम क्या है?

 हम अक्सर पूरी दुनिया में विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा लॉन्च किए जाने वाले उपग्रहों की खबरें देखते हैं। हर कोई इन दिनों उपग्रह लॉन्च कर रहा है |


2017 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक ही रॉकेट से 104 से कम उपग्रहों को लॉन्च करके विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया, इस बारे में बहुत चर्चा हुई! इस साहसिक कदम के साथ, इसरो ने रूस द्वारा आयोजित पिछले रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया, जिसने 2014 में एक ही मिशन में 37 उपग्रहों को लॉन्च किया था।

क्या है कैसलर सिंड्रोम?


क्या आपने कभी सोचा है कि जब एक उपग्रह निष्क्रिय हो जाता है, तो उसका क्या होता है? वह कहाँ जाता है? जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं, एक मृत उपग्रह को कहीं भी नहीं जाना है, इसलिए यह अपनी कक्षा में रहता है ।

लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में इतने उपग्रहों के साथ, आप कल्पना कर सकते हैं कि अब तक कितनी भीड़ हो गयी होगी | तार्किक सवाल, ज़ाहिर है, तब क्या होता है जब कक्षा में बहुत सारे उपग्रह होते हैं?


एक अनुमान के अनुसार, अभी तक विभिन्न देश 23,000 से अधिक उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचा चुके हैं. जानकर हैरानी होगी कि इसमें से लगभग 12,00 सैटेलाइट ही सक्रिय हैं, यानी कुल छोड़े गए उपग्रहों में से मात्र 5 प्रतिशत ही वर्तमान में चालू अवस्था में हैं, जबकि बाकी 95 प्रतिशत उपग्रह कचरे का रूप ले चुके हैं.

बेकार हो चुके ये 95 प्रतिशत कृत्रिम उपग्रह अभी भी अपनी कक्षाओं में निरंतर चक्कर लगा रहे हैं और अंतरिक्ष में कचरा को बढ़ा रहे हैं.


 


क्या परिणाम हो सकते हैं ?

केसलर सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें पृथ्वी की निम्न कक्षा में वस्तुओं का घनत्व इतना अधिक बढ़ जाता है यानि इतनी ज़्यादा वस्तुएंं एक समय में कक्षा में होंगी कि उनमेंं टकराव होना अवश्यम्भावी हो जायेगा, फिल्म Gravity में इसे बखूबी दर्शाया गया है !

नासा के अनुसार, 1 सेमी (0.4 इंच) से छोटे मलबे के कणों की संख्या लाखों में है। 1-10 सेमी (0.4-4 इंच) के आकार की सीमा में कणों की आबादी लगभग 50,000 होने का अनुमान है। वास्तव में बड़े वाले, यानी, 10 सेमी (4 इंच) से बड़ी वस्तुएं संख्या में 22,000 से अधिक हैं। ये वर्तमान में अमेरिकी अंतरिक्ष निगरानी नेटवर्क द्वारा मलबे के टुकड़े हैं।


केसलर सिंड्रोम आने वाले समय के लिये बेहद बुरी खबर साबित हो सकता है जब आप कोई नया उपग्रह छोडेंं और मलबे की वजह से वो खराब हो जाये, या वो मलबे की वजह से ठीक से काम ही ना कर पाये !

इसलिये समय रहते वैज्ञानिकोंं को इसका हल निकालना होगा जिससे भविश्य में आने वाली समस्याओंं से बचा जा सके !

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