दिल्ली की सल्तनत पर काबिज होने वाला पहला वंश गुलाम वंश था।, गुलाम वंश की स्थापना मुहम्मद गोरी के एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने की।
विषय सूची
कुतुबुद्दीन ऐबक
इल्तुतमिश
रुकनुद्दीन फिरोज
रजिया सुल्तान
अलाउद्दीन शाह
बलबन
खिलजी वंश – जलालुद्दीन खिलजी
अलाउद्दीन खिलजी
कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी
तुगलक वंश – ग्याशुद्दीन तुगलक
मुहम्मद-बिन-तुगलक
फिरोज तुगलक
नासिरुद्दीन महमूद तुगलक
सैयद वंश – खिज्र खाँ
अलाउद्दीन शाह आलम
लोदी वंश – बहलोल लोदी
सिकंदर लोदी
इब्राहिम लोधी
सल्तनत प्रशासन
अलाउद्दीन खलजी की बाजार-नियंत्रण व्यवस्था
सल्तनत काल के महत्वपूर्ण निर्माण कार्य
सल्तनत काल के प्रमुख अधिकारी
प्रमुख विभाग उनके कार्य
प्रमुख सल्तनत कालीन कर
सल्तनत कालीन महत्वपूर्ण शब्दावली
सल्तनत कालीन सैनिक ईकाई
सल्तनत काल की प्रमुख रचनाएं
सल्तनत काल – Audio Notes
कुतुबुद्दीन ऐबक
कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर में शपथ ग्रहण किया, बाद में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया तथा दिल्ली सल्तनत की स्थापना की।
कुतुबुद्दीन की दानशीलता से प्रभावित होकर मिन्हाज ने उसे लाख बख्श के नाम से पुकारा।
कुतुबुद्दीन ऐबक के एक सेनानायक बख्तियार खिलजी ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंश किया।
ऐबक की मृत्यु चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिर कर हो गयी। उसको लाहौर में दफन किया गया।
हबीबुल्ला द्वारा भारत में आये तुर्कों को मामलूक (गुलाम) की संज्ञा दी गई है।
मुहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को मलिक की उपाधि से विभूषित किया।
हसन निजामी एवं फखेमुद्दबिर जैसे विद्वान कुतुबुद्दीन के दरबार के रत्न थे।
इल्तुतमिश
आरामशाह की हत्या कर इल्तुतमिश (ऐबक का गुलाम एवं दामाद) गद्दी पर बैठा।
दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश को ही माना जाता है।
इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम शुद्ध अरबी सिक्के,टंका (चाँदी) एवं जीतल (ताँबा) जारी किये।
इल्तुतमिश ने भारत में इक्ता प्रणाली का श्रीगणेश किया।
इल्तुतमिश ने तुर्कान-ए-चिहलगान के नाम से 40 गुलाम सरदारों का एक संगठन बनाया।
बगदाद के खलीफा अल इमाम मस्तंसिर बिल्लाह ने 1228 ई० में इल्तुतमिश के पद को वैधानिक मान्यता दी तथा उसे मसलमानों में प्रधान तथा खलीफा के सहायकनासिर अमीर उल मोमिन की उपाधि से विभूषित किया।
रुकनुद्दीन फिरोज
इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद कुछ दिन रुकनुद्दीन फिरोज का शासन रहा, परंत उसकी अयोग्यता के कारण तुर्की अमीरों ने रजिया बेगम को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया।
रजिया सुल्तान
रजिया दिल्ली का सुल्तान बनने वाली पहली महिला थी।
रजिया ने पर्दा त्यागकर पुरुषों के समान काबा (चोगा) एवं कुल्हा पहनकर दरबार की कार्रवाइयों में हिस्सा लिया।
अबिसीनिया के हब्सी गुलाम जमालुद्दीन याकूत को रजिया ने अमीर-ए-आखूर एवं मलिक हसन गोरी को सेनापति के पद पर प्रतिष्ठित किया।
रजिया ने अल्तूनिया से विवाह किया।
कैथल के निकट डाकूओं ने उसकी हत्या कर दी।
अलाउद्दीन शाह
रजिया के बाद बहरामशाह एवं अलाउद्दीन शाह अल्प काल के लिए शासक बना।
बलबन
अलाउद्दीन मसूद शाह को अपदस्थ कर बलबन ने नासिरुद्दीन महमूद को गद्दी पर बैठाया।
बलबन इल्तुतमिश का गुलाम था।
नासिरुद्दीन महमूद ने बलबन को उलुग खाँ की उपाधि से विभूषित किया एवं सल्तनत का नाइब-ए-ममलिकात (प्रधानमंत्री) नियुक्त कर शासन की वास्तविक शक्ति उसके हाथों में सौंप दी।
तुर्कान-ए-चिहलगान को बलबन ने नष्ट कर दिया।
बलबन ग्याशुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा एवं मंगोल आक्रमणों से सफलतापूर्वक उसकी रक्षा की। बलबन ने अपने दरबार में सिजदा एवं पैबोस जैसी परंपराएं चलाईं।
बलबन ने राजत्व का नया सिद्धांत प्रतिपादित किया एवं खुद को ईरानी हीरो अफरसियाब का वंशज घोषित किया।
फारसी रीति-रिवाज पर आधारित नौरोज त्यौहार बलबन द्वारा प्रारंभ हुआ।
दिल्ली सल्तनत के राजवंश एव प्रमुख शासक
गुलाम वंश (Slave Dynasty) – 1206 ई० से 1280 ई०
कुतुबुद्दीन ऐबक 1206-10 ई०,
आरामशाह 1210 ई० (8 महीने तक),
शम्सुद्दान इल्तुतामश 1210-36 ई०,
रुक्नुद्दीन फिरोजशाह 1236 ई०,
रजिया सुल्तान 1236-40 ई०,
मुइजुद्दीन बहरामशाह 124 0-42 ई०,
सुल्तान अलाउद्दीन मसूदशाह 1242-46ई०,
नासिरुद्दीन महमूद 1246-65 ई०,
ग्याशुद्दन बलबन 1286-87 ई०
खलजी वंश (Khalji Dynasty) – 1290 ई० -1320 ई०
जलालुद्दीन खलजी 1290-96 ई०,
अलाउद्दीन खलजी 1296-1316ई०,
कुतुबुद्दीन मुबारक खलजी 1216-20 ई०।
तुगलक वंश (Tughaloque Dynasty) – 1320 ई० -1398 ई०
ग्याशुद्दीन तुगलक 1320-25 ई०,
मुहम्मद-बिन-तुगलक 1325-51 ई०,
फिरोज शाह तुगलक 1351-88 ई०।
सैय्यद वंश (Syed Dynasty) – 1414 ई० -1451 ई०
खिज्र खाँ 1414-20 ई०,
मुबारकशाह 1421-33 ई०,
मुहम्मदशाह 1434-43 ई०,
अलाउद्दीन शाह आलम 1443-51 ई०,
लोधी वंश (Lodhi Dynasty) – 1451 ई० -1526 ई०
बहलोल लोधी 1451-89 ई०,
सिकंदर लोधी 1489-1517 ई०,
इब्राहिम लोधी 1517-1526 ई०।
बलबन ने दीवान-ए-आरज (केन्द्रीय सैन्य विभाग) एवं दीवान-ए-बरीद (केंद्रीय गुप्तचर विभाग) का गठन किया।
बलबन के दरबार में अमीर खुसरो एवं अमीर हसन जैसे कवि रहते थे।
शमशुद्दीन कैमूर्स गुलाम वंश का अंतिम शासक था।
खिलजी वंश – जलालुद्दीन खिलजी
जलालुद्दीन खलजी ने गुलाम वंश को समाप्त कर खलजी वंश की स्थापना की।
जलालुद्दीन ने किलोखरी में अपनी राजधानी स्थापित की।
अलाउद्दीन खिलजी
जलालुद्दीन खलजी के भतीजे अलाउद्दीन खलजी ने उसकी हत्या कर दी एवं स्वयं दिल्ली का सुल्तान बन बैठा।
अलाउद्दीन को बचपन में अली अथवा गुरशस्प के नाम से पुकारा जाता है।
अलाउद्दीन खलजी पहला ऐसा सुल्तान था जिसने खलीफा की श्रेष्ठता को चुनौती देते हुए सिक्कों पर उसका नाम खुदवाना बंद कर दिया।
जलालुद्दीन खलजी ने अलाउद्दीन को अमीर-ए-तुनुक उपाधि से विभूषित किया था।
अलाउद्दीन खलजी पहला सुल्तान था जिसने स्थायी सेना (PermanentStanding Army) का गठन किया एवं सेना को नकद वेतन देने की प्रथा आरंभ की।
अलाउद्दीन खलजी ने सैनिकों का हुलिया लिखने एवं घोड़ों को दागने की प्रथा आरंभ की। अलाउद्दीन ने आर्थिक क्षेत्र में बाजार नियंत्रण व्यवस्था (Market Control Policy) लागू की एवं भू-राजस्व की दर को बढ़ाकर कुल उपज का ½ हिस्सा कर दिया।
खम्स (लूट का धन) में राज्य का हिस्सा 4 से बढ़ाकर / करने वाला शासक अलाउद्दीन था।
दक्षिण भारत में अलाउद्दीन के सैन्य-अभियानों का नेतृत्व मलिक काफूर ने किया।
राजत्व का दैवी सिद्धांत प्रतिपादित करने वाला शासक अलाउद्दीन था। उसने सिकंदर-ए-सानी की उपाधि धारण की।
अमीर खुसरो जिन्होंने सितार एवं तबला जैसे वाद्ययंत्रों का आविष्कार किया अलाउद्दीन के दरबारी कवि थे। अलाउद्दीन ने अमीर खुसरो को तुति-ए-हिन्द की उपाधि से विभूषित किया।
मिल्क, इनाम एवं वक्फ के अंतर्गत दी गई भूमियों को राजस्व सुधारों के तहत वापस लेकर अलाउद्दीन ने इन्हे खालसा (राजकीय भूमि) में तब्दील कर दिया।
अलाउद्दीन खलजी ने अपने शासनकाल में दो नवीन कर चराई (दुधारू पशुओं पर) एवं गढ़ी (घरों एवं झोपड़ी पर) लगाया।
कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी
अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात कुतुबुद्दीन मुबारक खलजी गद्दी पर बैठा जो एक भ्रष्ट शासक था।
मुबारक खलजी की हत्या उसके वजीर खुशरो खाँ ने कर दी।
तुगलक वंश – ग्याशुद्दीन तुगलक
खुशरो खाँ को पराजित कर गाजी मलिक या ग्याशुद्दीन तुगलक ने दिल्ली सल्तनत पर तुगलक वंश के शासन की स्थापना की। उसने 29 बार मंगोलों के आक्रमण को विफल किया।
ग्याशुद्दीन ने अपने साम्राज्य में सिंचाई की व्यवस्था की तथा संभवत: नहरों का निर्माण करने वाला वह प्रथम शासक था।
गयाशुद्दीन ने रोमन शैली में एक नवीन नगर तुगलकाबाद बसाया। इस शहर में छप्पनकोट नामक दुर्ग भी बनवाया। यह नगर दिल्ली के नजदीक स्थित है।
मुहम्मद-बिन-तुगलक
ग्याशुद्दीन तुगलक की मृत्यु के पश्चात जौना खाँ दिल्ली के सिंहासन पर बैठा एवं इतिहास में मुहम्मद-बिन-तुगलक के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मुहम्मद-बिन-तुगलक मध्यकाल का सबसे शिक्षित, विद्वान एवं योग्य शासक था, परंतु वह अपनी सनक भरी योजनाओं के कारण इतिहास में यथेष्ट स्थान नहीं बना सका।
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने दीवान-ए-अमीर-कोही (कृषि विभाग) की स्थापना की।
मोरक्को निवासी इब्नबतूता को 1333 ई० में मुहम्मद-बिन-तुगलक ने दिल्ली का काजी नियुक्त किया।
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने इब्नबतूता को 1342 ई० में राजदूत बनाकर चीन भेजा।
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने इंशा-ए-महरु नामक पुस्तक की रचना की।
1341 ई० में चीनी सम्राट तोगनतिमुख ने अपना एक राजदूत भेजकर मुहम्मद-बिन-तुगलक से हिमाचल प्रदेश के बौद्ध मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए अनुमति मांगी।
मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासन काल में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाईयों ने 1336 ई० में स्वतंत्र राज्य विजयनगर की स्थापना की।
महाराष्ट्र में 1347 ई० में अलाउद्दीन बहमनशाह ने स्वतंत्र बहमनी साम्राज्य की स्थापना कर ली, यह भी मुहम्मद-बिन-तुगलक का ही शासनकाल था।
मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल में ही कान्हा नायक ने वारंगल को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया।
मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासन काल में कई विद्रोह हुए-कड़ा-निजाम का विद्रोह, बिदर-साहेब सुल्तान का विद्रोह तथा गुलबर्गा में अली शाह का विद्रोह
मुहम्मद-बिन-तुगलक की मृत्यु थट्टा में हुई। उसकी मृत्यु पर इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी लिखता है-“अंततः जनता को उससे मुक्ति मिली एवं उसे जनता से”
मुहम्मद-बिन-तुगलक दिल्ली सल्तनत का पहला ऐसा सुल्तान था जो अजमेर में शेख मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर गया।
फिरोज तुगलक
फिरोज तुगलक सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुगलक का चचेरा भाई था। मुहम्मद-बिन-तुगलक की मृत्यु के पश्चात अगले सुल्तान के रूप में थट्टा में उसका राज्याभिषेक हुआ।
फिरोज का राज्याभिषेक एक बार फिर से अगस्त 1351 ई० में दिल्ली में हुआ |
फुतुहात-ए-फिरोजशाही के अनुसार फिरोज ने राजस्व व्यवस्था में परिवर्तन करते हुए 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर केवल 4 करों खराज (लंगान), जजिया (गैर-मुस्लिमों से वसूला जाने वाला कर), खम्स (युद्ध में लूट का माल), जकात (मुसलमानों से लिया जाने वाला कर) आदि को ही प्रचलन में मुख्य रूप से रखा।
ब्राह्मणों पर जजिया कर लगाने वाला पहला मुसलमान शासक फिरोज तुगलक था।
फिरोज तुगलक ने कृषि को उन्नत बनाने के लिए सिंचाई विभाग की स्थापना की तथा सिंचित भूमि पर कुल ऊपज का 1/10 भाग हक-ए-शर्ब (सिंचाई कर) अध्यारोपित किया।
फिरोज तुगलक ने 5 बड़े नहरों का निर्माण करवाया, जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण उलूग खानी नहर थी जिसके द्वारा यमुना का पानी हिसार तक पहुँचता था।
फिरोज तुगलक ने हिसार, फिरोजाबाद, फतेहाबाद, जौनपुर एवं फिरोजपुर सहित 300 नये नगरों की स्थापना की।
फिरोज तुगलक ने अशोक के खिज्राबाद (टोपरा) एवं मेरठ में स्थित दो स्तंभों को वहाँ से स्थानांतरित कर दिल्ली में स्थापित किया।
फिरोज तुगलक ने अनाथ मुस्लिम महिलाओं, विधवाओं एवं लड़कियों के लिए दीवान-ए-खैरात (दान विभाग) की स्थापना की।
फिरोज तुगलक के शासनकाल में सल्तनतकालीन सुल्तानों में दासों की संख्या सर्वाधिक (लगभग 1,80,000) थी, उसने उनके लिए दीवान-ए-वन्द्गान (दास विभाग) की स्थापना की।
मुहम्मद-बिन-तुगलक की 5 विवादास्पद योजनाएँ
राजधानी दिल्ली का दौलताबाद स्थानांतरण,
दोआब क्षेत्र में भू-राजस्व की दर कुल उपज का ½ हिस्सा करना,
सोना-चाँदी के स्थान पर ताँबे एवं पीतल के सांकेतिक मुद्रा (Tokencurrency) का प्रचलन,
कराचिल का विफल अभियान,
खुरासन का विफल अभियान।
फिरोज तुगलक ने दिल्ली के निकट दार-उल-सफा नामक एक खैराती अस्पताल खोला।
फिरोज तुगलक ने चाँदी एवं तांबे के मिश्रण से शशगनी, अद्धा एवं विख जैसे सिक्के चलाये।
फिरोज तुगलक ने अपनी आत्मकथा फतूहात-ए-फिरोजशाही के नाम से लिखी।
फिरोज तुगलक के दरबार में शम्स-ए-शिराज अफीक एवं जियाउद्दीन बरनी जैसे विद्वानों को संरक्षण प्राप्त था।
फिरोज तुगलक ने ज्वालामुखी मंदिर के पुस्तकालय से लूटे गये 1300 ग्रंथों में से कुछ का फारसी अनुवाद दलायले फिरोजशाही के नाम से फारसी विद्वान आजुद्दीन खादिलखानी द्वारा करवाया।
खान-ए-जहाँ तेलंगानी के मकबरे की तुलना जेरुसलम स्थित उमर-मस्जिद से की जाती है। उक्त मकबरे का निर्माण फिरोज तुगलक के काल में ही हुआ।
दिल्ली स्थित फिरोजशाह कोटला दुर्ग फिरोज तुगलक द्वारा ही निर्मित करवाया गया।
नासिरुद्दीन महमूद तुगलक
नासिरुद्दीन महमूद तुगलक तुगलक वंश का अंतिम शासक था। इसी के शासनकाल में तैमूर लंग ने 1398 ई० में भारत पर आक्रमण किया।
मलिक शर्शक नामक एक हिजड़े ने नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में ही जौनपुर को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया।
सैयद वंश – खिज्र खाँ
तुगलक वंश के पश्चात दिल्ली पर सैय्यद वंश के शासन की स्थापना तैमूरलंग के सेनापति खिज्र खाँ ने की।
सैय्यद वंश का शासन 37 वर्षों तक रहा जिसमें मुबारक शाह, मुहम्मद शाह एवं अलाउद्दीन शाह आलम जैसे शासकों ने राज किया।
खिज्र खाँ ने रैयत-ए-आला की उपाधि से ही स्वयं को संतुष्ट रखा।
याह्या-बिन-अहमद सरहिन्दी जिन्होंने तारीख-ए-मुबारकशाही की रचना की मुबारक शाह के दरबार में संरक्षण पाते थे।
अलाउद्दीन शाह आलम
सैय्यद वंश का अंतिम शासक सुल्तान अलाउद्दीन शाह आलम था।
लोदी वंश – बहलोल लोदी
दिल्ली पर प्रथम अफगान राज्य की स्थापना का श्रेय बहलोल लोधी को जाता है। उसने लोधी वंश की स्थापना की।
बहलोल लोधी ने शाह गाजी की उपाधि धारण की तथा बहलोल सिक्कों का प्रचलन करवाया।
सिकंदर लोदी
लोधी वंश के शासक सुल्तान सिकंदर लोधी ने आगरा शहर का निर्माण कराया तथा यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की।
सिकंदर लोधी ने भूमि के माप के लिए गज-ए-सिकंदरी का प्रचलन किया।
सिकंदर लोधी ने गुलरुखी नाम से फारसी भाषा में कविताओं की रचना की। उसके आदेश पर आयुर्वेदिक ग्रंथ का फारसी में फरहंगे सिकंदरी नाम से अनुवाद हुआ।
सिकंदर लोधी ने महिलाओं के पीरों एवं संतों की मजार पर जाने तथा मुसलमानों द्वारा ताजिया निकालने को प्रतिबंधित कर दिया।
सिकंदर लोधी के शासनकाल में गान विद्या के एक प्रसिद्ध ग्रंथ लज्जत-ए-सिकंदरशाही की रचना हुई।
सिकंदर लोधी के वजीर ने 1500 ई० में मोठ मस्जिद का निर्माण कराया।
सिकंदर लोधी के पश्चात इब्राहिम लोदी शासक बना जो कि दिल्ली सल्तनत का आखिरी शासक था।
इब्राहिम लोधी
इब्राहिम लोधी के दरबार में मजखाने अफगाना के रचनाकार अहमद यादगार को संरक्षण प्राप्त था।
इब्राहिम लोधी ने भवन निर्माण में दोहरे गुम्बदों एवं खपरैलों के इस्तेमाल की शुरुआत की।
फरगना के जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने 21 अप्रैल 1526 ई० को पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोधी को हराकर दिल्ली पर से लोधी वंश के शासन का अंत कर दिया।
सल्तनत प्रशासन
दिल्ली सल्तनत धर्म तथा सेना की शक्ति पर आधारित एक धार्मिक राजतंत्र था। संपूर्ण सल्तनत काल में इस्लाम’ राजधर्म रूप में प्रतिष्ठित रहा।
सुल्तान शासन के समस्त विभागों का प्रमुख होता था।
सुल्तान को शासन में सहायता देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी जिसे मजलिस-ए-खलवत कहा गया है।
परंतु, मजलिस-ए-खलवत की सलाह सुल्तान के लिए बाध्यकारी न थी।
सुल्तान राज-काज का अधिकांश कार्य बार-ए-आजम (जन-सभा हॉल) में निपटाता था।
सल्तनत काल में निम्नलिखित प्रमुख मंत्रालयों का उल्लेख मिलता है
वित्त मंत्रालय-यह सबसे महत्वपूर्ण विभाग था, इसका प्रधान वजीर होता था।
वित्त मंत्रालय के अंतर्गत निम्न विभाग आते थे
दीवान-ए-विजारत-राजस्व विभाग
दीवान-ए-इसराफ-लेखा परीक्षण विभाग
दीवान-ए-इमारत-लोक निर्माण विभाग
दीवान-ए-अमीर-कोही-कृषि विभाग
दीवान-ए-रिसालत-अपील विभाग
दीवान-ए-आरज-सैन्य विभाग
दीवान-ए-इंशा-आलेख विभाग
दीवान-ए-खैरात-दान विभाग
दीवान-ए-वंदगान-दास विभाग
दीवान-ए-इस्तिफाक-पेंशन विभाग
वित्त मंत्रालय के अलावा वजीर (मुख्यमंत्री) गुप्तचर, डाक, धर्मार्थ संस्थाओं तथा कारखानों का भी प्रमुख होता था।
उपरोक्त विभागों के अलावा अलाउद्दीन खलजी ने अधिक कर अधिशेष का हिसाब रखने के लिए वित्त मंत्रालय के तहत अलग से एक विभाग दीवान-ए-मुस्तखराज की स्थापना की।
जलालुद्दीन खलजी ने दीवान-ए-विजारत के तहत दीवान-ए-वकूफ नामक एक विभाग की स्थापना की जिसका कार्य आय-व्यय के कागजातों की देखभाल करना था।
प्रशासन की समुचित व्यवस्था के लिए संपूर्ण राज्य को 20 से 25 सूबों में विभाजित किया गया था।
खिलजी एवं तुगलक काल में बंगाल, गुजरात, जौनपुर, मालवा, खान देश तथा दक्कन आदि महत्वपूर्ण सूबे (प्रांत) थे। ।
ग्याशुद्दीन तुगलक ने बिहार के उत्तरी हिस्से में तिरहुत नामक नये प्रांत का गठन किया।
प्रांतों में शासन का संचालन नायब, वली अथवा मुक्ति द्वारा होता था।
प्रमुख केन्द्रीय मंत्री एवं अधिकारी
नायब वजीर वजीर का सहायक।
मुशरिफ-ए-मुमालिक प्रांत तथा विभिन्न विभागों से प्राप्त हिसाब का लेखा-जोखा रखना इसका कार्य था।
मुस्तौकी-ए-मुमालिक मुशरिफ के हिसाब का जाँचकर्ता।
मजमुआदार आय-व्यय को ठीक रखने वाला पदाधिकारी।
खजीन खजाँची।
आरिज-ए-मुमालिक सेना मंत्री।
काजी-उल-कुजात मुख्य न्यायाधीश। ।
सद्र-उस-सुदूर यह धर्म विभाग का अध्यक्ष था एवं राजकीय दान विभाग भी उसी के अंतर्गत आता था।
वकील-ए-दर सुल्तान की व्यक्तिगत सेवाओं का प्रबंधक।
अमीर-ए-हाजिब दरबारी शिष्टाचार के नियमों को लागू करने वाला पदाधिकारी।
सरजांदार सुल्तान के अंग-रक्षकों का नायक। ।
अमीर-ए-आखुर अश्वशाला का अध्यक्ष।
शहना-ए-पील हस्तिशाला का अध्यक्ष।
बरीद गुप्तचर
18वीं सदी में सुल्तानों ने सल्तनत को सैनिक क्षेत्रों में विभक्त किया, जिन्हें इक्ता अथवा अक्ता कहा गया। इक्ता का प्रधान एक शक्तिशाली सैनिक अधिकारी था जिसे मुक्ति कहा जाता था।
13वीं शताब्दी में प्रांतों तथा इक्तों का प्रशासन छोटी इकाईयों में विभक्त नहीं था।
14वीं शताब्दी में सल्तनत के विस्तार के कारण शिक्कों (जिलों) का गठन किया गया।
शिक्क का शासक अमील या नाजीम होता था।
एक शहर या 100 गाँवों के समूह का शासक अमीर-ए-सदा कहलाता था।
शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, जिसका शासन मुकदम, खुत एवं चौधरी के हाथों में था।
हालांकि, मोरक्कोवासी इब्नबतूता ने सादी (100 गाँवों का समूह) को ही प्रशासन की सबसे छोटी इकाई माना है।
गाँवों में मुकदम (मुखिया) को सहायता प्रदान करने हेतु पटवारी एवं कारकून (लेखक) भी होते थे।
नगर प्रशासन में अमीर-ए-सदा की सहायता के लिए मुतसरिफ, कारकून, बलाहार, मुकद्दम, चौधी, पटवारी एवं पियादा आदि थे।
इस्लाम के अनुसार शरा में राजकीय आय के पाँच साधनों उशर, खिराज, जकात, खम्स तथा जजिया का उल्लेख है।
उशर मुसलमानों से वसूला जाता था जबकि खिराज गैर-मुस्लिमों से लिया गया कर था।
जकात एक प्रकार का धार्मिक कर था, जो गैर-मुस्लिमों से लिया जाता था।
जजिया हिंदुओं से लिया जाने वाला कर था तथा खम्स लूट के माल में राज्य का हिस्सा था।
उपरोक्त करों के अलावा राज्य को खानों, भूमि में गड़े हुए धन, निर्यात-आयात कर, आबकारी कर, यात्रा कर, चारागाह कर, गृह-कर, लावारिस संपत्ति एवं सिंचाई कर आदि से भी आय होती थे।
अलाउद्दीन खलजी की बाजार-नियंत्रण व्यवस्था
अलाउद्दीन खलजी ने बाजारों का नियंत्रण किया तथा दैनिक प्रयोग की वस्तुओं का मूल्य निश्चित कर दिया। उस युग के लिए यह एक अद्वितीय प्रयोग था। इसकी जानकारी हमें जियाउद्दीन बरनी की फतवा-ए-जहाँदारी से प्राप्त होती है-
अलाउद्दीन ने बाजारों को 3 भागों में बांटा –
मंडी-खाद्यान्नों का बाजार,
सराय-ए-अदल-कपड़ों एवं विनिर्मित वस्तुओं का बाजार,
पशु एवं दास बाजार-घोड़ों, मवेशियों एवं दासों का बाजार।
विभाग एवं पदाधिकारी
अलाउद्दीन ने दीवान-ए-रियासत (वाणिज्य मंत्री) को बाजार-नियंत्रण की संपूर्ण व्यवस्था का दायित्व सौंपा तथा इस पद पर अपने विश्वस्त अमीर याकूब को नियुक्त किया
शहना-ए-मंडी बाजार का अधीक्षक
मुहतसिब सेंसर अधिकारी
बारीद घूम-घूम कर सूचनाएँ एकत्र करके ‘शहना’ के पास पहुँचाने वाला गुप्तचर
मुनहियान एक स्थान पर रहकर बाजार की गुप्त सूचना देने वाला कर्मचारी
परवाना नवीस परमिट देने वाला अधिकारी
नाजिर माप-तौल अधिकारी।
बाजार की विशेषता – सुल्तान ने दलालों को बाजार से निकलवा दिया, कालाबाजारियों के साथ अत्यंत ही कठोर नीति अपनाई गयी, कम तौलने अथवा अधिक मूल्य वसूलने वालों के खिलाफ कठोर दंड की व्यवस्था की गई।
*अधिकांश इतिहासकारों का मत है कि यह व्यवस्था सिर्फ दिल्ली में लागू थी।
मुसलमानों को अपनी व्यापारिक वस्तुओं पर 2.5% एवं हिन्दुओं को 5% की दर से चुंगी अदा करना पड़ता था।
सुल्तान सल्तनत का प्रधान न्यायाधीश होता था।
सुल्तान के नीचे काजी-उल-कुजात का पद होता था एवं सुल्तान के अलावा वह भी शीर्ष स्तर के मुकदमों में निर्णय देता था।
कस्बों एवं गाँवों में स्थानीय पंचायतें विवादों का निपटारा करती थीं।
न्याय कुरान के नियमों एवं शरा (इस्लामी परंपराएँ) के अनुसार होता था।
प्रांतों की न्यायपालिका में वली, काजी-ए-सूबा, दीवान-ए-सूबा एवं सद्रे-सूबा आदि के चार न्यायालय होते थे।
इस्लामी कानून के चार स्रोत हैं-कुरान (प्रशासकीय कानूनों के स्रोत), हदीस (पैगंबर की उक्तियों), इज्मा (इसमें मुजतहिद द्वारा दी गई व्याख्या पर आधारित कानूनी स्रोत) तथा कयास तर्क एवं विश्लेषण पर आधारित कानून)।
इस्लामी कानूनों के व्याख्याता मुजतहिद कहलाते थे
सल्तनत काल में सेना मौलिक रूप से दो प्रकार की थी
हश्म-ए-कल्ब-वे सैनिक जो सुल्तान द्वारा नियुक्त किये जाते थे एवं उसी के अधीन होते थे।
हश्म-ए-अतरफ-सुल्तान के सामंतों एवं प्रांतपतियों द्वारा नियुक्त सेना।
सैनिकों की भर्ती, उनके वेतन की व्यवस्था, उनके हुलिया का विवरण रखना, उनके अस्त्र-शस्त्रों तथा रसद आदि का प्रबंध करना दीवान-ए-आरिज का काम था।
प्रारंभ में सैनिकों एवं सेनानायकों को वेतन जागीर के रूप में प्रदान की जाती थी, किन्तु अलाउद्दीन ने इस प्रथा का अंत कर उन्हें राजकोष से नकद वेतन देना आरंभ किया।
सेना का गठन दशमलव पद्धति के आधार पर किया गया था। 10 अश्वारोहियों की एक सैनिक टुकड़ी सर-ए-खैल, 10 सर-ए-खैल के ऊपर एक सिपहसलार, 10 सिपहसलारों के ऊपर एक अमीर होता था।
10 अमीरों के ऊपर एक मलिक और 10 मलिकों के ऊपर एक खान होता था।
कुतुबमीनार का निर्माण ख्वाजा मोइनुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में किया गया।
कुवावुत इस्लम मस्जिद का विस्तार अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किया गया।
सल्तनत काल के महत्वपूर्ण निर्माण कार्य
इमारत का नाम निर्माता संबंधित तथ्य
कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद कुतुबुद्दीन ऐबक यह पहले एक जैन मंदिर एवं बाद में विष्णु मंदिर था | 1197 ईस्वी में यह मस्जिद बनी | दिल्ली में रायपिथौरा किले के स्थान पर इंडो इस्लामिक शैली में निर्मित पहला स्थापत्य | इल्तुतमिश व अलाउद्दीन खिलजी ने इसका विस्तार किया |
अढ़ाई दिन का झोपड़ा कुतुबुद्दीन ऐबक 1200 ई. में अजमेर में निर्मित यहां पहले एक मठ या बिहार था | इसकी दीवार पर विग्रहराज चतुर्थ द्वारा रचित संस्कृत नाटक हरिकेलि के अंश उद्धृत है |
क़ुतुबमीनार कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा प्रारंभ 1911 ई. में प्रारंभ एवं 1232 ईस्वी में इल्तुतमिश द्वारा पूर्ण की गई, संभवत है इससे यह नाम सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी से मिला | इसके छज्जे इसके छज्जे ‘स्टेलेक्टाइट हनी कोमिंग’ तकनीक द्वारा मीनार से जुड़े हैं इसके आधार पर एक पुरालेख पर फजल इब्न अबुल माली का नाम मिलता है | विद्युत आघात यह कारण इसकी एक मंजिल क्षतिग्रस्त हो गई जिसकी मरम्मत करवाने के साथ साथ फिरोज तुगलक ने एक अन्य पांचवीं मंजिल भी जोड़ दी | 206 ईसवी में सिकंदर लोदी ने इसकी मरम्मत करवाई अब इसकी ऊंचाई 24 फीट है (प्रारंभ में इसे 4 मंजिला व 125 फीट बनाया गया था ) |
इल्तुतमिश का मकबरा इल्तुतमिश दिल्ली स्थित एक कक्षीय मकबरा (1234ई.) जो लाल पत्थर से बना है इसमें हिंदू और इस्लामी वास्तुकला का मिश्रण है |
सुल्तान गढ़ी इल्तुतमिश 1231 ईस्वी में इल्तुतमिश द्वारा अपने ज्येष्ठ पुत्र नासिरूद्दीन का मकबरा बनवाया गया | भारत में निर्मित प्रथम मकबरा | इल्तुतमिश को मकबरा शैली का जन्मदाता कहा जाता है |
हौज-ए-शमसी तथा शमसी ईदगाह इल्तुतमिश दोनों भवन बदायूं में स्थित है |
बलबन मकबरा बलबन इसमें पहली बार वास्तविक मेहराब का प्रयोग किया गया | यह मेहराब तिकोने डॉट पत्थरों और एक मुंडेर पत्थर पर आधारित था |
अलाई दरवाजा अलाउद्दीन खिलजी यह कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का दक्षिणी प्रवेश द्वार था इसमें पहली बार तिकोने डॉट पत्थरों पर आधारित वैज्ञानिक विधि से गुंबद बनाया गया यही पहली बार घोड़े की नाल की आकृति वाले मेहरा बनाई गई | अलाई दरवाजे के बारे में मार्शल ने कहा है ‘अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य के खजाने का सबसे सुंदर हीरा है’ | यह इमारत लाल पत्थर की है इसमें कुरान की आयतों से काफी सजावट की गई है |
हजार सितून (हजार स्तंभों वाला महल) अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के निकट सीरी नामक नगर के पास स्थित 1303 ईस्वी में निर्मित |
जमात खाना मस्जिद अलाउद्दीन खिलजी तत्कालीन मस्जिदों में सबसे बड़ी है पहली ऐसी मस्जिद है जो पूर्णता इस्लामी विचारों के अनुसार बनी है यह दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास स्थित है जो लाल पत्थर से बनी है |
हौज-ए-अलाई अलाउद्दीन खिलजी यह दिल्ली में स्थित है इसे हौज-ए-खास भी कहा जाता है |
सीरी का किला अलाउद्दीन खिलजी 1303 ईस्वी में दिल्ली में निर्मित, मंगोल आक्रमण से सुरक्षा के लिए
ऊखा मस्जिद मुबारक शाह खिलजी भरतपुर राजस्थान में स्थित |
सल्तनत काल के प्रमुख अधिकारी
वजीर राजस्व विभाग का प्रमुख
‘आरिज-ए-ममालिक’ सैन्य विभाग का प्रमुख
‘वरीद-ए-खास’ शाही पत्र व्यवहार का प्रमुख
‘सद्र-उस-सुदूर’ धर्म व दान विभाग का प्रमुख
‘काजी-उल- कजात’ न्याय का सर्वोच्च अधिकारी
‘वरीद-ए-मुमालिक’ गुप्तचर विभाग का प्रमुख
‘मुशरिफ-ए-मुमालिक’ महालेखाकार
’मुस्तैफी-ए-मुमालिक’ महालेखा परीक्षक
‘ अमीर-ए-हाजिब’ सुल्तान से मिलने वलो की जाँच पडताल करने वाला
‘सर-ए-जांदर’ सुल्तान के अंग रक्षक अधिकारी
‘अमीर-ए-मजलिस’ शाही उत्सवों व दावतों का प्रबंध करने वाला होता था
प्रमुख विभाग उनके कार्य
‘दीवान –ए-बकूफ’ इसकी स्थापना जलालुद्दीन खिलजी ने की थी और दीवान-ए-बकूफ का कार्य व्यय विभाग देखना
‘ दीवान-ए-रियासत’ अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नीति
‘दीवान-ए-अर्ज’ बलबन ने कार्य सैन्य विभाग के लिए
‘दीवान-ए-अमीरगोही’ मुहम्मद-बिन-तुगलक कृषि विभाग
‘दीवान-ए-मुस्तफराज’ अलाउद्दीन राजस्व विभाग
‘दीवान-ए-बंदगाह’ (दासो के लिए) फिरोजशाह तुगलक
‘दीवान-ए-खैरत’ (दान विभाग) फिरोजशाह तुगलक
‘दीवान-ए-इस्कफाक’ (पेंशन) फिरोजशाह तुगलक
‘दीवान-ए-इमारत’ (लोक निर्माण विभाग) फिरोज शाह तुगलक
प्रमुख सल्तनत कालीन कर
‘उश्र’ मुसलमानो से लिया जाने वाला भूमि कर
‘खराज’ गैर मुसलिमों से लिया जाने वाला भूमिकर
‘खम्स’ लूट से प्राप्त धन
‘जजिया’ गैर मुसलमानो से लिया जाने वाला धार्मिक कर
‘जकात’ मुसलमानो से लिया जाने वाला धार्मिक कर
सल्तनत कालीन महत्वपूर्ण शब्दावली
‘अक्ता’ या ‘इक्ता’ सैनिक अधिकारियो को दी जाने वाली लगान मुक्त भूमि
‘इतलाकी’ सुल्तान की भूमि
‘खालसा भूमि’ राजकीय भूमि
‘मिल्क’ विद्दानों को दी गई कर मुक्त भूमि
‘वफ्क’धार्मिक कार्यो के लिए दी गई लगान मुक्त भूमि,
‘मसाहत’ भूमि की पैमाइश,
‘हस्म-ए-कत’ केंद्रिय सेना, हस्म-ए-अतरफ’ प्रांतीय सेना,
सल्तनत कालीन सैनिक ईकाई
सरखेल’ दस अश्वारोहियों का सरदार,
सिपहसालार’ दस सरखेल का प्रधान,
अमीर’ दस सिपहसालार का प्रधान,
मलिक’ दस अमीर का प्रधान,
खान’ दस मलिक का प्रधान,
“सुल्तान”दस खान का प्रधान यह सर्वोच्च सेनापति होता था
सल्तनत काल की प्रमुख रचनाएं
साहित्यकार रचना/रचनाएं विशिष्ट तथ्य
हसन निजामी ताज-उल-मासिर यह कुतुबुद्दीन ऐबक ने संरक्षण दिया गौरी के भारत आक्रमणों की जानकारी इसके लेखन से प्राप्त होती है |
मिनहाजुद्दीन सिराज ताबकात-ए-नासिरी ये सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद के संरक्षण में रहा और उसी को अपना ग्रंथ समर्पित किया (1260 ई.) यह मुख्य काजी था |
अमीर हसन फवाद-उल-फवाद बलबन के संरक्षण में रहा | इसे भारत का सादी कहा गया | यह निजामुद्दीन औलिया का शिष्य था |
जियाउद्दीन बरनी तारीख-ए-फिरोजशाही, फतवा-ए-जहांदारी, कुव्वत-उल-तवारीख, सना-ए-मोहम्मदी, हसरतनामा यह 17 वर्षों तक मोहम्मद तुगलक के संरक्षण में रहा तारीख-ए-फिरोजशाही में इसने फिरोज तुगलक को आदर्श बताया है इसमें बलवंत से लेकर फिरोज तुगलक तक वर्णन है |
बद्र-ए-चाच दीवान-ए-चाच, शाहनामा मोहम्मद तुगलक के संरक्षण में रहा और उसकी प्रशंसा में कसीदे लिखे |
शम्स-ए-सिराज अफीफ तारीख-ए-फिरोजशाही फिरोज शाह तुगलक के संरक्षण में रहा और उसके शासन की प्रशंसा की इसकी रचना वहां से प्रारंभ होती है जहां बरनी की तारीख ए फिरोजशाही समाप्त होती है |
मोहम्मद बिहामद खानी तारीख-ए-मुबारकशाही
आइनुलमुल्क मुल्तानी इंशा-ए-माहरु (मुशांन-ए-महरुह) यह अलाउद्दीन खिलजी, मोहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक काल में विभिन्न उच्च पदों पर रहा |
याह्य बिन अहमद सरहिन्दी तारीख-ए-मुबारकशाही यह सैयद शासक मुबारक शाह के संरक्षण में रहा और उसी को यह रचना समर्पित की | सैयद वंश का इतिहास जानने का एकमात्र स्त्रोत है |
शेख जमालुद्दीन (जमाली कंबू ) सियर-उल-आरफीन, माहरुमाह यह लोदी काल के सबसे प्रसिद्ध कवि थे और सिकंदर लोदी के दरबारी कवि थे |
अबुल फजल मोहम्मद बिन हुसैन-अल-बैहाकी तारीख-ए-मसूदी महमूद गजनबी के दरबार इतिहास आदि का विवरण |
ख्वाजा इसामी फुतूह-उस-सलातीन महमूद गजनबी से मोहम्मद तुगलक तक का इतिहास /यह पुस्तक बहमनी वंश के प्रथम शासक अलाउद्दीन बहमनशाह को समर्पित है |
फिरोज तुगलक फतूहात-ए-फिरोजशाही फिरोज तुगलक की आत्मकथा व अध्यादेशों का संग्रह |
अज्ञात लेखक सीरात-ए-फिरोजशाही फिरोज तुगलक के बारे में लिखा है |
अमीर खुसरो किरान-उस-सादेन मिफ्ताह-उल-फतह नूह-सीपेहर आशिका-उल-अनवर तुगलकनामा लैला-मजनू, शीरी फरहाद, आईन-ए-सिकंदरी, हद-बहिश्त, तारीख-ए-दिल्ली बुगरा खाँ व उसके बेटे कैकुबाद के मिलन का वर्णन | जलालुद्दीन खिलजी के सैन्य अभियान व मलिक छज्जू के विद्रोह का दमन का वर्णन | भारत की सामाजिक राजनीतिक स्थिति का वर्णन | अलाउद्दीन खिलजी की गुजरात विजय, मंगोलों द्वारा स्वयं को कैदी बनाए जाने की घटना, देवल रानी खिज्र खाँ के बीच प्रेम प्रसंग | अमीर खुसरो की अंतिम कृति जिसमें खुसरोशाह के विरुद्ध गयासुद्दीन तुगलक की विजय का वर्णन है |
इब्नबतूता किताब-उल-रेहला यात्रा वृतांत
फिरसौदी शाहनामा महमूद गजनबी के राज्य, शासन आदि से संबंधित |
0 Comments