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भागवत्, वैष्णव एवं शैव धर्म से परीक्षाओं में पूछे जाने वाले तथ्य

 विषय सूची


भागवत् धर्म 

वैष्णव धर्म (VAISHNAVISM) 

शैव धर्म (SHAIVISM)

भागवत् धर्म 

6ठी‘ शताबदी ई०पू० में ब्राह्मणवाद एवं कर्मकांडीय जाटिलता के विरोध में इस धर्म का उदय हुआ, इस धर्म ने ब्राह्मणवाद में भक्ति एवं पूजा का समावेश करवाया 

प्रारंभ–‘महाभारत‘ के नारायण उपस्थान प्रसंग से, आरंभिक सिद्धांत–इस धर्म के आरंभिक सिद्धांत गीता में मिलते हैं। वासुदेव–महाकाव्य महाभारत ‘ भागवत् धर्म‘ को एक दिव्यधर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करता है तथा विष्णु का उल्लेख ‘वासुदेव‘ के रूप में करता है। अवतार–भागवत् धर्म में विष्णु के अवतारों पुरुषावतार, गुणावतार एवं लीलावतार का उल्लेख है। इस धर्म को वैष्णव धर्म की आरंभिक अवस्था माना जाता है। 

वैष्णव धर्म (VAISHNAVISM) 

वैष्णव धर्म का विकास छठी शताब्दी ई०पू० में हुआ। इस धर्म का विकास भागवत धर्म से हुआ है। 

वैष्णव धर्म की आरंभिक जानकारी छांदोग्य उपनिषद से मिलती है। 

मथुरा के कृष्ण (जिनके पिता वसुदेव यादव वंश के वष्णि या सतवत् शाखा के प्रमुख थे) ने ‘वैष्णव धर्म‘ की स्थापना की। गुप्तकाल में वैष्णव धर्म लोकप्रियता की चरम सीमा पर पहुँचा। मेगास्थनीज रचित इंडिका से ज्ञात होता है कि मथुरा के लोग हेराकुलिज का विशेष आदर करते थे। 

‘हेराकुलिज‘ कृष्ण का यूनानी नाम है। 

वैष्णव धर्म विष्णु–पूजा पर आधारित है तथा अवतारवाद में विश्वास करता है। 

ब्राह्मण ग्रंथों में विष्णु के 39 अवतारों का उल्लेख है जिनमें 10अवतारों को वैष्णव धर्म में मान्यता दी गई है। 

मतस्य पुराण में विष्णु के 10 अवतारों का उल्लेख इस प्रकार है–मतस्य, वामन, परशुराम, कच्छप, राम, कलि, वराह, कृष्ण, नृसिंह तथा बुद्ध। 

विदिशा से प्राप्त ‘नगर–स्तंभ लेख‘ से ज्ञात होता है कि यूनानी राजदूत हेलियोडोरस कृष्ण का उपासक था।

चंद्रगुप्त–II विक्रमादित्य तथा अन्य गुप्त सम्राटों ने परमभागवत् जैसी उपाधियाँ धारण की।

चंद्रगुप्त–II तथा समुद्रगुप्त के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ का चित्र अंकित है। 

गरुड़ मुद्रा का उदाहरण गाजीपुर जिले के भितरी नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। 

गुप्तकालीन मुद्राओं पर वैष्णव धर्म के अन्य प्रतीक शंख, चक्र, गदा, पद्म तथा लक्ष्मी भी प्राप्त हुए हैं।

गंगधर अभिलेख में विष्णु को मधुसूदन कहा गया है।

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य–II ने विष्णुपद पर्वत पर विष्णुध्वज की स्थापना की। स्कंद गुप्त के जूनागढ़ तथा बुद्धगुप्त के एरण अभिलेखों का आरंभ विष्णु–स्तुति से होता है।

गुप्तकाल में वैष्णव धर्म से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ (झांसी) का दशावतार मंदिर है। दशावतार मंदिर में ही शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हुए नारायण विष्णु को दिखाया गया है।

एक अध्ययन के अनुसार गुप्तकाल में वैष्णव धर्म भारत के प्रत्येक क्षेत्र में फैला तथा दक्षिण–पूर्व एशिया, हिंद चीन, कम्बोडिया, मलाया एवं इंडोनेशिया तक इसका प्रचार हुआ। 

शैव धर्म (SHAIVISM)

भगवान शिव से संबंधित धर्म को शैव धर्म एवं उनके अनुयाइयों को शैव कहा गया। लिंग पूजा का पहला पुरातात्विक साक्ष्य सिंधु सभ्यता के अवशेषों से प्राप्त होता है। लिंग पूजा का पहला साहित्यिक साक्ष्य मतस्य पुराण से प्राप्त होता है। 

शिव के लिए ऋग्वेद में रुद्र शब्द का प्रयोग किया गया है। 

भव, भूपति, पशुपति एवं शर्व आदि शिव के नाम हैं जिनका उल्लेख अथर्ववेद‘ में किया गया है। 

लिंगोपासना का स्पष्ट उल्लेख महाभारत के अनुशासन पर्व में भी है तथा उत्तर भारत में इस धर्म को गुप्त सम्राटों एवं दक्षिण भारत में पल्लव शासकों से विशेष संरक्षण प्राप्त हुआ।

पाशुपत शैव–इस धर्म के अनुयायी शिव के पशुपति रूप की उपासना करते थे पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। पाशुपत संप्रदाय की स्थापना लकुलीश ने की थी, जिसे भगवान शिव का ही एक अवतार माना गया है। पाशुपत संप्रदाय में भगवान शिव के 18 अवतारों को मान्यता दी गई है।

पाशुपत संप्रदाय के अनुयायी पंचार्थिक कहलाते थे। पाशुपत संप्रदाय का प्रमुख सिद्धांतग्रंथ पाशुवत सूत्र है। 

कापालिक शैव–इस संप्रदाय के अनुयायी भैरव के उपासक थे। भैरव को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है।

इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र श्री शैल नामक स्थान था। इस संप्रदाय में भैरव को सुरा एवं नरबलि का नैवेद्य चढ़ाने की परंपरा थी।

कालामुख शैव

यह सम्प्रदाय भी ‘कापालिक संप्रदाय‘ की तरह आसुरी प्रवृत्ति का था। इस सम्प्रदाय के अनुयायियों को शिव पुराण में महाव्रतधर की संज्ञा दी गई है।

इस सम्प्रदाय के अनुयायी नर–कपाल में ही भोजन, जल एवं सुरापान करते थे।

लिंगायत शैव–यह संप्रदाय दक्षिण भारत में प्रचलित था इस सम्प्रदाय को वीर शैव भी कहा गया है।

लिंगायत शैव अनुयायियों को जंगम भी कहा जाता था।

लिंगायत शैव के अनुयायी शिवलिंग की उपासना करते थे।

इस संप्रदाय का प्रवर्तन अल्लभ प्रभु तथा उनके शिष्य बासव ने किया था।

पेरिय पुराण के अनुसार दक्षिण भारत में नयनार संतों ने जिनकी संख्या 63 थी शैव स्रप्रदाय का प्रचार किया।

खजुराहो स्थित कंदरिया महादेव का मंदिर जिसका निर्माण चंदेल राजाओं द्वारा किया गया था, इस धर्म का प्रमुख प्रतिष्ठान है।

कैलाश नाथ मंदिर (एलोरा, निर्माता–राष्ट्रकूट वंश), बृहदेश्वर मंदिर (तंजौर, निर्माता–राजाराज–1) आदि शैव धर्म के अन्य प्रसिद्ध प्रतिष्ठान हैं। 

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