पश्चिमोत्तर भारत में ईरानी आक्रमण के समय भारत में विकेन्द्रीकरण एवं राजनीतिक अस्थिरता व्याप्त थी।
राज्यों में परस्पर वैमनस्य एवं संघर्ष चल रहा था। जिस समय भारत में मगध के सम्राट अपने साम्राज्य के विस्तार में रत थे, उसी समय ईरान के ईखमनी शासक भी अपना राज्य विस्तार कर रहे थे।
ईरान के शासकों ने पश्चिमी सीमा पर व्याप्त फूट का लाभ उठाया एवं भारत पर आक्रमण कर दिया। ईरानी आक्रमण के बारे में हमें हीरोडोटस, स्ट्राबो तथा एरियन से सूचना प्राप्त होती है। इनके अलावा इखमानी शासकों के लेखों से भी सूचनायें प्राप्त होती हैं।
भारत पर आक्रमण ईरानी शासक दारयवहु प्रथम (डेरियस प्रथम) 516 ई० पू० में उत्तर पश्चिम भारत में घुस आया एवं उसने पंजाब, सिन्धु नदी के पश्चिमी क्षेत्र और सिन्ध को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।
इस क्षेत्र को उसने फारस का 20वाँ प्रान्त या क्षत्रपी बनाया। फारस साम्राज्य में कुल 28 क्षत्रपी थे।
इस क्षेत्र से 360 टैलण्ट सोना भेंट में मिलता था जो फारस के सभी एशियायी प्रांतों से मिलने वाले कुल राजस्व का एक तिहाई था। ईरानी शासकों ने भारतीय प्रजा को सेना में भी भर्ती किया।
विषय सूची
ईरानी आक्रमण का प्रभाव
यूनानियों (सिकन्दर) का आक्रमण( 326 ई० पू० )
सिकन्दर के आक्रमण के परिणाम
ईरानी आक्रमण का प्रभाव
भारत और ईरान का संपर्क 200 सालों तक बना रहा।
ईरानी लेखक भारत में लिपि का एक खास रूप आरमाइक लेकर आए जिससे बाद में खरोष्ठी लिपि का विकास हुआ। यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी।
ईरानी आक्रमण के फलस्वरूप व्यापार को बढ़ावा मिला।
अब भारतीयों की वस्तुएँ सुदूर मिस्र और यूनान तक पहुँचने लगी।
भारतीय कला पर भी ईरानियों के आक्रमण का प्रभाव पड़ा विशेषकर मौर्य कला पर।
अशोक कालीन स्मारक, विशेषकर घंटी के आकार के शीर्ष कुछ हद तक ईरानी प्रतिरूपों पर आधारित थे ऐसा माना जाता है।
यूनानियों (सिकन्दर) का आक्रमण( 326 ई० पू० )
सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत का पश्चिमोत्तर भाग राजनीतिक रूप से विश्रृंखल था।
यह क्षेत्र अनेक स्वतंत्र राजतंत्रों और कबीलाई गणतंत्रों में बँटा हुआ था। राज्यों में पारस्परिक फूट थी।
इस क्षेत्र के प्रमुख राज्य थे––पश्चिमी व पूर्वी गंधार, अभिसार, पुरु, ग्लौगनिकाय, कठ, सौभूति, शिवि, क्षुद्रक, मालव, अम्बष्ठ, मद्र आदि।
सिकन्दर के आक्रमण के समय मगध में नंद वंश का शासन था। |
सिकन्दर को अपने भारतीय अभियान में यहाँ के क्षेत्रीय राज्यों से भी सहयोग प्राप्त हुआ । इस क्षेत्र के दो प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली राजा थे –
(1) आम्भी जो तक्षशिला का राजा था
(2) पोरस या पुरु जिसका राज्य झेलम एवं चिनाब नदियों के बीच स्थित था।
सिकन्दर ने तक्षशिला के आम्भी को युद्ध में परास्त कर दिया। कालान्तर में आम्भी उसका सहयोगी बन गया।
राजा पोरस ने सिकन्दर के अपने राज्य पर आक्रमण करने पर उसका कड़ा प्रतिरोध किया।
सिकन्दर पोरस की बहादुरी से अत्यधिक प्रभावित हुआ तथा उसका राज्य वापस कर दिया।
326 ई० पू० झेलम नदी के तट पर लड़े गये इस युद्ध को वितस्ता या ‘हाइडेस्पीज‘ के युद्ध के नाम से जाना जाता है।
सिकन्दर ने ग्लौगनिकाय तथा कठ जातियों से भी युद्ध किया तथा उसकी सेना विजयी रही।
व्यास के पश्चिमी तट पर पहुँचकर सिकन्दर का विजय अभियान रुक गया तथा वह यूनान वापस लौटने की तैयारी करने लगा।
वापस लौटते समय रास्ते में ई० पू० 323 में बेबीलोन में सिकन्दर की मृत्यु हो गयी।
विजित भारतीय प्रदेशों के शासन का भार सिकन्दर ने फिलिप को सौंपा।
सिकन्दर भारत में उन्नीस महीने (326–325 ई० पू०) तक रहा।
उसने अधिकांश विजित राज्यों को उनके शासकों को लौटा दिया।
उसने अपने अधिकार में किये हिस्सों को तीन भागों में बाँट दिया तथा उसे तीन गवर्नरों के अधीन कर दिया।
सिकन्दर ने अनेक कई नगरों की स्थापना भी की थी।
सिकन्दर के आक्रमण के परिणाम
सिकन्दर के आक्रमण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम था भारत और यूनान के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में सीधे सम्पर्क की स्थापना
उसने विभिन्न थल और समुद्री मार्गों का द्वार खोला।
सिकन्दर के इतिहासकारों ने मूल्यवान भौगोलिक विवरण छोड़े हैं।
सिकंदर के आक्रमण से पूर्व जो छोटे-मोटे भारतीय राज्य आपस में संघर्षरत थे, उनमें पहलीबार | एकता के लक्षण दिखे, फलस्वरूप भारत में एकीकरण की प्रक्रिया को बल मिला।
सिकंदर के आक्रमण के बाद ही भारत में साम्राज्यवादी प्रक्रिया का विकास हुआ जिसका तात्कालिक उदाहरण मौर्य साम्राज्य था।
यूनानी प्रभाव के अन्तर्गत भारतीयों ने ‘ क्षत्रप प्रणाली’ (प्रशासन की) और सिक्के के निर्माण की कला सीखी, साथ ही भारतीयों ने यूनानियों की ज्योतिषविद्या और कला का भी सम्मान किया।
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