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कामागतामारू की घटना क्या है ?

 कामागतामारू कोयला ढोने वाला भाप चालित जापानी समुद्री जहाज था जिसे हांगकांग में रहने वाले व्यापारी बाबा गुरदित्त सिंह ने खरीदा था। वर्ष 1908 में कनाडा सरकार ने प्रवासियों को रोकने के लिए एक आदेश पारित किया था जिसके तहत वे लोग ही कनाडा आ सकते थे जिनका जन्म कनाडा में हुआ हो या वहाँ के नागरिक हो।

यह आदेश विशेष रूप से भारतीयों को रोकने के लिए दिया गया था।

इस आदेश को व्यक्तिगत चुनौती मान कर गुरदित्त कामागतामारू में 340 सिखों , 24 मुस्लिमों और 12 हिंदुओं को लेकर 23 मई 1914 को कनाडा के वैंकूवर पोर्ट पर पहुंचे।

वहाँ पर जहाज को घेर लिया गया और नस्लीय आव्रजन क़ानूनों के तहत 20 कनाडाई नागरिकों के अलावा बाक़ियों को उतरने ही नहीं दिया गया और जहाज पर खाने पीने की आपूर्ति बंद कर दी गयी।

यह पूरा मामला कोर्ट में गया किन्तु फैसला कनाडा सरकार के पक्ष में गया। इसके दो महीने बाद 23 जुलाई 1914 को जहाज भारत लौट गया।

जब जहाज कलकत्ता के बजबज घाट पर पहुंचा तो 27 सितम्बर 1914 को अंग्रेजों द्वारा की गई फायरिंग में 19 लोगों की मौत हो गयी। इस घटना ने आजादी की लहर को गति प्रदान की।

इस घटना की स्मृति में भारत सरकार ने 2014 में 100 रुपये का एक सिक्का जारी किया था और वर्ष 2016 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने कामागतामारू की अमानवीय त्रासदी के लिए संसद में क्षमा मांगी।

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