पूंजी निर्माण (capital formation)
वह प्रक्रिया जिससे बचत व निवेश के द्वारा पूंजी स्टॉक में वृद्धि होती है, पूंजी निर्माण कहलाती है, आधुनिक आर्थिक विकास का मूल आधार पूंजी है |
भारतीय योजना आयोग के अनुसार “किसी भी देश का आर्थिक विकास पूंजी की उपलब्धता पर ही निर्भर करता है आय एवं रोजगार के अवसरों की वृद्धि तथा उत्पादन की कुंजी पूंजी के अधिकाधिक निर्माण में निहित है” यदि किसी देश में पूंजी निर्माण नहीं होता है, तो वह देश अपना आर्थिक विकास नहीं कर सकता है |
इस प्रकार यदि पूंजी निर्माण धीमी गति से होता है, तो आर्थिक विकास भी धीमी गति से होता है |पूंजी निर्माण से अर्थ, बचत करने एवं उस बचत को उद्योगों में विनियोजित करने से हैं |
पूंजी निर्माण की तीन आवश्यकताएं आवश्यक दशाएं होती हैं यथा बचत, बचत के गतिशील हेतु वित्तीय संस्थाएं और विनियोग पूंजी उल्लेखनीय है कि विनियोग ऐसा वह है जो उत्पादन क्षमता में वृद्धि लाता है |
पूंजी उत्पादन अनुपात (Capital output ratio)
उत्पादन अनुपात से अर्थ है, कि उत्पादन की एक इकाई के लिए पूंजी की कितनी इकाइयों की आवश्यकता है इतनी को दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कह सकते हैं कि उपलब्ध पूंजी का निवेश करने पर उत्पादन में किस दर से वृद्धि होती है –
यदि ₹5000 की पूंजी विनियोजित करने पर उत्पादन ₹1000 के बराबर होता है तो पूँजी उत्पादन अनुपात 5:00 अनुपात एक कहलायेगा |
पूंजी उत्पाद अनुपात=कुल पूंजी/ कुल उत्पादन
जिस देश में यह अनुपात जितना कम होगा वह देश उतना ही अधिक आर्थिक विकास कर सकेगा |
पूंजी उत्पाद अनुपात के दो प्रकार होते हैं
औसत पूंजी उत्पाद अनुपात
वृद्धिमान पूंजी उत्पाद अनुपात
प्रथम पूंजी की कुल मात्रा एवं कुल उत्पाद के बीच अनुपात को प्रदर्शित करता है, जबकि वृद्धिमान पूंजी उत्पाद अनुपात पूंजी तथा उत्पाद की मात्रा में वृद्धि के बीच उपस्थित अनुपात को प्रदर्शित करता है |
उल्लेखनीय है कि चिरस्थाई उपभोक्ता वस्तुओं में अधिक निवेश ICOR को कम करता है, परंतु कृषि लघु उद्योगों और गैर स्थाई उपभोक्ता वस्तुओं में निवेश ICOR को कम करता है इसके अतिरिक्त निवेश के प्रयोग की कुशलता भी ICOR को प्रभावित करती है |
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