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राजपूतों के वंश (Dynasties of Rajputs)

 ऐसा माना जाता है कि राजपूत शब्द एक जाति या वर्ण-विशेष के लिए इस देश में मुसलमानों के आने के बाद प्रचलित हुआ। ‘राजपूत’ या ‘रजपूत’ शब्द संस्कृत के राजपुत्र शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन ग्रंथ कुमारपाल चरित् एवं वर्ण रत्नाकर आदि में राजपूतों के 36 कुलों की सूची मिलती है। 


राजतरंगिणी में भी राजपूतों के 36 कुलों का विवरण दिया गया है। राजपूतों की उत्पत्ति के प्रश्न के संबंध में चर्चा के मुख्य केन्द्र में गुर्जर-प्रतिहार रहे हैं।


विषय सूची


गुर्जर-प्रतिहार वंश (Gurjar-Pratihar Dynasty)

गहड़वाल वंश (Gahdhwaal Dynasty)

चौहान या चाहमान वंश (Chouhan Dynasty)

परमार वंश (Parmar Dynasty)

चंदेल वंश (Chandel Dynasty)

सोलंकी वंश गुजरात के चालुक्य (Sholanki Dynasty)

चेदि वंश कलचूरि (Chedi Dynasty)

गुर्जर-प्रतिहार वंश (Gurjar-Pratihar Dynasty)

इस वंश की स्थापना नागभट्ट-1 ने 730 ई० में की। 

नागभट्ट-I ने अरबों को सिंध से आगे नहीं बढ़ने दिया।

नागभट्ट-I ने भड़ौंच एवं मालवा पर अधिकार कर लिया तथा गुजरात से ग्वालियर तक अपना राज कायम किया।

इस वंश के शासक वत्सराज (778-805 ई०) ने कन्नौज नरेश इंद्रायुद्ध एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया। 

इस वंश के शासक नागभट्ट-II को राष्ट्रकूट सम्राट गोविंद-III ने हराया था। 

नागभट्ट-II ने बंगाल के शासक धर्मपाल को मुंगेर (बिहार) में हराया एवं वहाँ तक अपने शासन क्षेत्र का विस्तार किया। 

इस वंश का सबसे अधिक प्रभावी शासक मिहिरभोज था। उसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई। 

मिहिरभोज वैष्णव धर्म का अनुयायी था एवं उसने ‘विष्णु’ के सम्मान में आदिवाराह की उपाधि धारण की।

अरब यात्री सुलेमान के अनुसार मिहिरभोज अरबों का स्वाभाविक शत्रु था। 

संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर इस वंश के शासक महेन्द्रपाल के गुरु थे। 

प्रतिहार वंश का अंतिम शासक राज्यपाल था।

राजशेखर की प्रसिद्ध रचनाएँ


कबीर मंजरी, काव्य मीमांसा, विठ्ठलशाला भंजिका, बाल रामायण, भुवन-कोष, हरविलास


गहड़वाल वंश (Gahdhwaal Dynasty)

चन्द्रदेव गहरवार नामक एक व्यक्ति ने 1080-85 ई० के दौरान कन्नौज पर अधिकार कर लिया तथा इस वंश का शासन स्थापित किया। 

गहड़वाल अनुश्रुतियों में इन्हें ययाति का वंशज कहा गया है। । 

चन्द्रदेव ने स्वयं को महाराजाधिराज की उपाधि से विभूषित किया। 

चन्द्रदेव के राज्य में आधुनिक उत्तर-प्रदेश की लगभग समस्त भूमि शामिल थी तथा उसके राज्य की पूर्वी सीमा गया तक विस्तृत थी। 

इस वंश का सबसे अधिक प्रभावशाली शासक गोविंदचंद था। 

उसके विद्वान मंत्री लक्ष्मीधर ने कृत्यकल्पतरु नामक ग्रंथ लिखा था। 

इस वंश का अंतिम शासक जयचंद था, जिसकी पुत्री संयोगिता का अपहरण  पृथ्वीराज-III (चौहान वंश) ने किया था। 

मुहम्मद गोरी ने 1194 ई० में चंदावर के युद्ध में जयचंद को मारकर इस वंश के शासन का अंत कर दिया। 

चौहान या चाहमान वंश (Chouhan Dynasty)

इस वंश का उदय शाकंभरी (सांभर-अजमेर के आस-पास) में हुआ। 

इस वंश का सर्वप्रथम लेख विक्रम संवत् 1030-973 ई० का दुर्लभ हर्ष लेख है जिसमें इस वंश के गूवक-I तक वंशावली दी गई है। 

बिजौलिया शिलालेख के अनुसार इस वंश की स्थापना वासुदेव ने की। 

चाहमानों की शक्ति का विशेष विकास अर्णोराज के पुत्र चतुर्भुज विग्रहराज बीसलदेव (1153-64 ई०) के काल में हुआ। 

विग्रराज-IV ने प्रसिद्ध नाटक हरिकेलि की रचना की। 

विग्रहराज-IV के राजकवि सोमदेव ने प्रसिद्ध नाटक ललितविग्रहराज की रचना की।

इस वंश का अंतिम एवं सबसे प्रसिद्ध शासक सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज-III (इतिहास में पृथ्वीराज चौहान के नाम से प्रसिद्ध) था। 

पृथ्वीराज-III (1179-1193 ई०) के राजकवि चंदवरदायी ने प्रसिद्ध ग्रंथ पृथ्वीराज रासो की रचना की। 1193 ई० में मुहम्मद गोरी ने तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज-III को हराकर इस वंश के शासन का अंत कर दिया। 

परमार वंश (Parmar Dynasty)

’10वीं शताब्दी के आरंभ में जब प्रतिहारों का आधिपत्य मालवा पर से समाप्त हो गया तो वहाँ परमार शक्ति का उदय हुआ। 

इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक श्रीहर्ष था। 

इस वंश की स्थापना उपेन्द्रराज ने की तथा धारानगरी को अपनी राजधानी बनाया। 

वास्तव में मालवा में परमारों की शक्ति का उत्कर्ष वाक्पति मुंज (972-94ई०) के काल में हुआ। 

मुंज की सबसे बड़ी सफलता थी कल्याणी के चालुक्य राजा तैलप को हराना।

भोज (1000-1055 ई०) इस वंश का सबसे लोकप्रसिद्ध राजा हुआ। 

भोज ने अनेक भारतीय राजाओं को हराया। कहा जा है कि बिहार के पश्चिम में स्थित आराह के आस-पास का क्षेत्र ‘भोज’ के आधिपत्य के कारण भोजपुर कहलाता है। 

राजा भोज कविराज की उपाधि से विभूषित था। उसने चिकित्सा, गणित एवं व्याकरण पर कई ग्रंथ लिखे। 

राजधानी धारानगरी में भोज ने एक सरस्वती मंदिर का निर्माण कराया। 

चितौड़ के त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण राजा भोज’ ने ही करवाया। 

परमार वंश के बाद मालवा पर तोमर वंश का शासन हुआ, इस वंश के अनंगपाल तोमर ने ’11वीं सदी के मध्य में दिल्ली नगर की स्थापना की। 

तोमर वंश के बाद चाहमान वंश का एवं 1297 ई० में अलाउद्दीन खिलजी का मालवा पर शासन हुआ।

चंदेल वंश (Chandel Dynasty)

आधुनिक बुंदेलखंड की धरती पर प्रतिहार साम्राज्य के पतनावशेष पर चंदेल वंश का उदय हुआ। 

खजुराहो इस वंश की राजधानी थी। 

इस वंश की स्थापना 831 ई० में नन्नुक ने की थी।

इस वंश की राजधानी पूर्व में कालिंजर (महोबा) में थी जिसे इस वंश के शासक धंग ने खजुराहो स्थानांतरित करवाया। 

नन्नुक के पौत्रों जयसिंह एवं जेजा के कारण चंदेलों के राज्य क्षेत्र का नाम जेजाकभुक्ति पड़ा।

शासक हर्षदेव (905-925 ई०) के समय से चंदेलों की शक्ति में वृद्धि हुई। 

हर्षदेव के पुत्र यशोवर्मन को इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक होने का श्रेय प्राप्त है, उसने स्वयं को प्रतिहार साम्राज्य से स्वतंत्र किया था। 

विश्वनाथ, जिन्ननाथ एवं वैद्यनाथ मंदिरों का निर्माण इस वंश के शासक धंग ने करवाया। 

यशोवर्मन ने खजुराहो में एक विष्णु मंदिर की स्थापना की।

इस वंश के शासक विद्याधर ने महमूद गजनी का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया। 

चंदेल शासक कीर्तिवर्मन द्वारा महोबा के समीप कीर्तिसागर नामक एक जलाशय का निर्माण कराया गया। 

कीर्तिमर्वन के दरबारी कवि कृष्ण मिश्र ने प्रबोध चंद्रोदय नामक प्रसिद्ध कृति की रचना की। 

चंदेल शासक परमर्दिदेव के दरबार में आल्हा-उदल नामक दो वीर सेनानायक भाई रहते थे।

इस वंश के अंतिम शासक परमादेव के शासनकाल में 1202 ई० में इस क्षेत्र को कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। 

सोलंकी वंश गुजरात के चालुक्य (Sholanki Dynasty)

इस वंश की स्थापना मूलराज-I (लगभग 942-95 ई०) ने की। 

मूलराज-I ने अन्हिलवाड़ा को अपनी राजधानी बनाई एवं गुजरात के एक बड़े क्षेत्र पर अपना शासन कायम किया। 

मूलराज-शैवधर्म का अनुयायी था। 

सोलंकी शासक भीम-I के काल में महमूद गजनी ने सोमनाथ मंदिर को लूटा। 

भीम-I के सामंत बिमल ने माउंट आबू पर्वत पर प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर निर्मित कराया।

इस वंश का पहला शक्तिशाली शासक जयसिंह सिद्धराज था जिसके दरबार में प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचंद्र सूरी रहता था। 

जयसिंह सिद्धराज ने सिद्धपुर में रूद्रमहाकाल मंदिर का निर्माण कराया। 

जयसिंह सिद्धराज ने आबू पर्वत पर अपने सातों पूर्वजों की गजारोही मूर्तियाँ स्थापित की।

इस वंश का अंतिम शासक भीम-II था। 

चेदि वंश कलचूरि (Chedi Dynasty)

कोक्कल नामक एक व्यक्ति ने इस वंश की स्थापना की तथा त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया। 

इस वंश के एक शक्तिशाली शासक गांगेयदेव ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। 

इस वंश के सबसे महान शासक कर्णदेव ने कलिंग पर विजय प्राप्त करके त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि धारण की। 

प्रसिद्ध साहित्यकार राजशेखर कलचूरियों के दरबार के रत्न थे।

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