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ताजमहल से सम्बंधित कुछ प्रचिलित कथायें – Interesting Facts

 ताजमहल से सम्बंधित कुछ प्रचिलित कथायें

एक पुरानी कथा के अनुसार, शाहजहाँ की इच्छा थी कि यमुना के उस पार भी एक ठीक ऐसा ही, किंतु काला ताजमहल निर्माण हो जिसमें उसकी कब्र बने। यह अनुमान जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर, प्रथम यूरोपियन ताजमहल पर्यटक, जिसने आगरा 1665 में घूमा था, के कथनानुसार है। उसमें बताया है, कि शाहजहाँ को अपदस्थ कर दिया गया था, इससे पहले कि वह काला ताजमहल बनवा पाए। काले पडे़ संगमर्मर की शिलाओं से, जो कि यमुना के उस पार, माहताब बाग में हैं; इस तथ्य को बल मिलता है। परंतु, 1990 के दशक में की गईं खुदाई से पता चला, कि यह श्वेत संगमरमर ही थे, जो कि काले पड़ गए थे।

काले मकबरे के बारे में एक अधिक विश्वसनीय कथा 2006 में पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा बताई गई, जिन्होंने माहताब बाग में केन्द्रीय सरोवर की पुनर्स्थापना की थी। श्वेत मकबरे की गहरी छाया को स्पष्ट देखा जा सकता था उस सरोवर में। इससे संतुलन या सममिति बनाए रखने का एवं सरोवर की स्थिति ऐसे निर्धारण करने का, कि जिससे प्रतिबिम्ब ठीक उसमें प्रतीत हो; शाहजहाँ का जुनून स्पष्ट दिखाई पड़ता था।

ऐसा भी कहा जाता है, कि शाहजहाँ ने उन कारीगरों के हाथ कटवा दिये थे, या मरवा दिया था, जिन्होंने ताजमहल का निर्माण कराया था। परंतु इसके पूर्ण साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। कुछ लोगों का कहना है, कि ताजमहल के निर्माण से जुडे़ लोगों से यह करारनामा लिखवा लिया गया था, कि वे ऐसे रूप का कोई भी दूसरी इमारत नहीं बनाएंगे। ऐसे ही दावे कई प्रसिद्ध इमारतों के बारे में भी किए जाते रहे हैं।

एक और कहानी जिसका भी कोई साक्ष्य नहीं हैं, कि लॉर्ड विलियम बैन्टिक, भारत के गवर्नर जनरल ने 1830 के दशक में, ताजमहल को ध्वंस कर के उसका संगमरमर नीलाम करने की योजना बनाई थी। बैन्टिक के जीवनी लेखक, जॉन रॉस्सोली ने कहा है, कि एक कथा उडी़ थी, जब बैन्टिक ने निधि बढाने हेतु आगरा के किले का फालतू संगमर्मर नीलाम किया था।

सन 2000 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा दाखिल अर्जी रद्द कर दी थी, जिसमें यह कहा गया था, कि एक हिंदु राजा ने ताजमहल बनवाया था। श्री ओक ने साक्ष्य सहित, यह दावा किया था, कि ताजमहल का उद्गम (मूल इमारत), एवं साथ ही देश की अनेकों एतिहासिक इमारतें, जो आज मुस्लिम सुल्तानों द्वारा निर्मित बताई जाती हैं, असल में उनसे पहले भी यहाँ मौजूद थीं। फलतः यह मूल इमारतें हिंदु राजाओं द्वारा निर्मित हैं। एवं इनका उद्गम हिंदु है।

एक और बहुचर्चित कथा, जो कि काव्यात्मक है, के अनुसार मॉनसून की प्रथम वर्षा में पानी की बूंदें इनकी कब्र पर गिरतीं हैं। जैसा कि गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के इस मकबरे के वर्णन से प्रेरित है, “एक अश्रु मोती … समय के गाल पर”।

एक अन्य मिथक के अनुसार, यदि शिखर के कलश की छाया को पीटें, तो पानी/ वर्षा आती है। आज तक अधिकारी यहाँ इसकी छाया के इर्द गिर्द टूटी चूडि़यों के टुकडे़ पाते हैं।

बिहार के सुप्रसिद्ध ठग नटवरलाल के बारे में यह कहानी प्रचलित है कि एक बार उसने ताजमहल को मंदिर बताकर लोगों को बेच दिया था. नटवर लाल के पैतृक गांव के लोग उसके इसी कारनामे के लिए गांव में उसका मंदिर बनवाने की मांग उठाने लगे हैं.

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