सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public distribution system)
कुछ आवश्यक वस्तुओं (गेहूं, चावल, खाद्य तेल, चीनी आदि) को उचित कीमत की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं में वितरण करने वाली प्रणाली को सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहा जाता है |
इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं विशेषकर कमजोर वर्ग के उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर वस्तुएं उपलब्ध कराना है इससे कमजोर वर्ग के उपभोक्ताओं को कीमतों के उतार-चढ़ाव पर सुरक्षा मिलती है |
इनके अलावा इस प्रणाली का उद्देश्य देश के विशाल जनसंख्या के न्यूनतम पोषण स्तर को कायम रखना है |
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से वर्ष 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) की शुरुआत की गई |
इसमें मूल्य निर्धारण के लिए जनसंख्या को दो भागों में बांटने की नीति अपनाई गई है – गरीबी रेखा से नीचे BPL गरीबी रेखा से ऊपर (APL)|
इस प्रणाली के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों को विशेष कार्ड जारी करने तथा घटाए गए मूल्यों पर खदान की आपूर्ति की नीति अपनाई गई है |
सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा वाधवा कमेटी (Public Distribution System and Wadhwa Committee)
सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार अवकाश प्राप्त न्यायाधीश डी पी वाधवा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 2010 में सौंपी |
कमेटी ने पी डी एस प्रणाली की एक अत्यंत ही चौंका देने वाली तस्वीर सामने रखी है, यद्यपि सभी लोगों ने, जिसने पी डी एस को थोड़ा भी नजदीक से देखा है यही निष्कर्ष पाया है कमेटी ने पी डी एस को सबसे अधिक भ्रष्ट प्रणाली की संस्था के रूप में पाया है |
कमेटी ने पाया है कि पी डी एस खाद्यानों के बड़े पैमाने पर कालाबाजारी हो रही है पी डी एस खानदान गरीबों तक नहीं पहुंचते हैं जो बहुत अधिक इनकी आवश्यकता में होते हैं |
यह गरीब न तो उचित मात्रा में और नहीं उचित गुणवत्ता के खाद्यानों पी डी एस से पाते हैं कभी-कभी तो यह इतने खराब किस्म के होते हैं कि वह खाने योग्य ही नहीं होते है|
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