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खालसा पंत | सिखों का उदय (RISE OF SIKHS)

 सिख शब्द का अर्थ होता है ‘शिक्षा प्राप्त करने वाला’ अथवा ‘शिष्य’।

सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक ने की। 1496 ई० की कार्तिक पूर्णीमा को नानक को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई।

गुरु नानक सिखों के पहले गुरु हुए। उन्होंने अपने उपदेशों में निर्गुण एकेश्वरवाद पर बल दिया। 

गुरु नानक के उपदेशों का संकलन गुरु ग्रंथ साहिब में किया गया है।

गुरु नानक ने संगत (धर्मशाला) एवं पंगत (साथ बैठकर भोजन करना, जिसे लंगर भी कहते हैं) की परंपरा आरंभ की।

सिखों के दूसरे गुरु अंगद ने सिखों के सदाचार पर जोर दिया एवं गुरु नानक के जीवन चरित्र तथा उनकी वाणियों को गुरुमुखी में लिपिबद्ध करवाया। 

सिखों के तीसरे गुरु अमरदास ने देश भर में 22 गद्दियों की स्थापना की तथा प्रत्येक पर एक महंथ की नियुक्ति की।

सिखों के चौथे गुरु रामदास ने 1577 ई० में मुगल सम्राट अकबर से ‘ग्रामतुंग’ में प्राप्त 500 बीघा जमीन पर दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोष तथा अमृतसर शहर का निर्माण करवाया। उन्होंने मसनद प्रणाली चलाई।

सिखों के 10 गुरु

गुरु नानक-1469-1539 ई०

गुरु अंगद-1539-1552 ई०

गुरु अमरदास-1552-1574 ई०

गुरु रामदास-1575-1581 ई०

गुरु अर्जुनदेव-1581-1606 ई०

गुरु हरगोविंद-1606-1644 ई०

गुरु हर राय-1645-1661 ई०

गुरु हरकिशन-1661-1664 ई०

गुरु तेगबहादुर-1664-1675 ई०

गुरु गोविंद सिंह-1675-1708 ई०

सिखों के ‘5वें’ गुरु अर्जुनदेव के काल में गुरु की गद्दी वंशानुगत हो गई।

अर्जुनदेव के काल में सिख गुरु को राज्योचित धिकार प्रदान किये गये। वे सिखों के प्रथम गुरु थे जिन्होंने राजनीति में दिलचस्पी ली। 

अर्जुनदेव ने संतों वाले वस्त्र त्याग कर राजसी वस्त्रों को अपनाया।

अर्जुनदेव ने मसनदों (सिख एजेंटों) द्वारा धर्मकर की वसूली की। 

अर्जुनदेव ने अमृतसर एवं संतोष नामक सरोवरों के बीच हरमंदिर साहिब का निर्माण करवाया। 

अर्जुनदेव ने स्वर्ण मंदिर की स्थापना की एवं गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया। इसे सिखों का आदि ग्रंथ भी कहते हैं।

मुगल सम्राट जहाँगीर ने अर्जुन देव की हत्या करवा दी। 

सिखों के छठवें गुरु हरगोविंद ने सिखों को  शस्त्र धारण की आज्ञा दी तथा स्वयं दो तलवारों मीरी (धर्म का प्रतीक), पीरी (सांसारिक कर्मों का प्रतीक चिन्ह) को धारण किया।

 गुरु हरगोविंद ने अकालतख्त की स्थापना की।

सिखों के 9वें’ गुरु तेगबहादुर ने कीर्तिपुर से 5 मील दूर आनंदपुर नामक एक ग्राम बसाया तथा उसे अपना केंद्र बनाया।

गुरु तेगबहादुर की पत्नी गुजरी से पटना में सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ। 

गुरु तेगबहादुर की इस्लाम न स्वीकारने के कारण औरंगजेब ने हत्या करवा दी। 

गुरु गोविंद सिंह 1675 ई० में सिखों के 10वें’ गुरु हुए। 

गुरु गोविंद सिंह के नेतृत्व में सिखों ने मुगलों को 1695 ई० में नादोन तथा 1706 ई० में खिदराना में पराजित किया। गुरु गोविंद सिंह के पश्चात ‘गुरु परंपरा’ समाप्त हो गयी। 

गुरु गोविंद सिंह ने सिखों से कक्षा, कंघी एवं कृपाण धारण करने का आह्वान किया। 

गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के पश्चात सिखों का नेतृत्व बंदा सिंह ने किया।

खालसा पंथ

सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह ने वस्तुतः सिखों को एक सैनिक जाति में परिवर्तित करने के लिए 30 मार्च 1696 को आनंदपुर में एक विशाल सम्मेलन में ‘वैसाखी’ के दिन ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की

उपरोक्त सम्मेलन में 80 हजार सिखों ने हिस्सा लिया।

गुरु ने हाथ में नंगा खड़ग लेकर सिखों की. धार्मिकता की जाँच के लिए सम्मेलन में लोगों से बलिदान के लिए आगे आने को कहा परंतु, सम्मेलन में से मात्र 5 व्यक्ति आगे आये।

गुरु ने उन्हें खण्डे (खड़ग) का अमृत पिलाकर पंजपियारों की संज्ञा से विभूषित किया। 

ये पंजपियारे’ ही खालसा या खालिस (शुद्ध)। कहलाये।

गुरु गोविंद सिंह ने सिखों को अपने नाम के साथ सिंह लगाने के निर्देश दिये। ।

सूर्य प्रकाश एवं गुरुशोभा जैसे ग्रंथों के अनुसार थोड़े ही समय में लगभग 80 हजार लोग इस पंथ के अनुयायी बन गये।

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