आजकल के जमाने में, जब देश-विदेश में ज्यादा फर्क नहीं रह गया है और आप विदेश में जॉब करते हैं या फिर, जॉब करना चाहते हैं तो आपको संबद्ध देश के कल्चर और लाइफस्टाइल को अच्छी तरह समझना होगा ताकि आप उस देश के लोगों के साथ अच्छी तरह घुल-मिलकर अपना काम कर सकें.
आजकल स्टूडेंट्स देश-विदेश की सुप्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज़ से हायर एजुकेशनल डिग्रीज़ हासिल करके देश-दुनिया में कहीं भी, किसी भी ऐसी कंपनी या ऑर्गनाइजेशन में जॉब ज्वाइन कर लेते हैं जहां उन्हें बेहतरीन सैलरी पैकेज के साथ आकर्षक जॉब प्रोफाइल ऑफर किया जाए. दरअसल, आजकल के यंगस्टर्स सिर्फ अपने नेटिव प्लेस तक ही सीमित नहीं रहना चाहते हैं और ऐसे किसी भी बड़े कॉर्पोरेट हाउस या MNC में जॉब करने के लिए तुरंत तैयार हो जाते हैं जहां उनकी करियर ग्रोथ काफी पॉजिटिव हो. लेकिन, हम सब इस बात से भी अच्छी तरह वाकिफ़ हैं कि, एक ‘ग्लोबल विलेज’ होने के बावजूद देश-दुनिया में आजकल तकरीबन 6500 लैंग्वेजेज बोली जाती हैं और हरेक देश और/ या प्रांत में रहने वाले लोगों का लाइफ स्टाइल एक-दूसरे से काफी अलग और अपने में कुछ खासियतें लिए होता है. ऐसे में, अगर आप किसी भी पेशेवर के तौर पर भारत के किसी भी राज्य या विदेश में जॉब ज्वाइन करते हैं और वहां के लोगों और उनके लाइफ-स्टाइल से अच्छी तरह वाकिफ़ होकर आप उनके तौर-तरीके अपना लेते हैं तो आप वहां एक कामयाब पेशेवर के तौर पर अपना काम कर सकेंगे.
आजकल देश-विदेश के बड़े ब्रांड्स, कंपनियां, बैंक, ऑर्गनाइजेशन्स, कॉर्पोरेट हाउसेस और MNCs भी अपने यहां ऐसे ही वर्कर्स को जॉब ऑफर करते हैं जिनका आईक्यू लेवल हाई होने के साथ-साथ सीक्यू अर्थात कल्चरल कोशेंट भी हाई हो. यह सुनकर आपको हैरानी हो सकती है लेकिन यह एक वास्तविकता है कि कल्चरल कोशेंट (सीक्यू) के बारे में ज्यादातर कैंडिडेट्स को पता ही नहीं होता है. आप यह बात अच्छी तरह से याद रखें कि, अगर आपकी कंपनी आपको किसी दूसरे देश में भेजती है तो उसके लिए सबसे पहले वह आपके सीक्यू की जांच ही करती है ताकि आप विदेश में अपनी जॉब से संबद्ध सभी काम अच्छी तरह से पूरे कर सकें. इसी तरह, अगर आप विदेश में एक ऐसे पेशेवर हैं जो पब्लिक डीलिंग का काम करते हैं जैसेकि, टीचर, बैंक ऑफिसर, साइंटिस्ट या फ्रंट डेस्क एग्जीक्यूटिव हैं तो आपके लिए इस कल्चरल कोशेंट का महत्त्व और भी बढ़ जाएगा. इस आर्टिकल में पढ़ें विदेश में मनचाही जॉब हासिल करने के लिए इस ‘कल्चरल कोशेंट’ के महत्त्व के साथ इसकी जरुरी बेसिक जानकारी.
कल्चरल कोशेंट की बेसिक जानकारी
अब आप जरुर यह जानना चाहेंगे कि आखिर यह कल्चरल कोशेंट है क्या? जब कोई व्यक्ति अपने से भिन्न किसी दूसरे देश, समाज या समुदाय के लोगों से मिलता है तो उनकी भाषा बोलने की कोशिश करता है. उनके जैसे हाव-भाव बनाने की कोशिश करता है. विदेशी लोगों से करीबी रिश्ता बनाने की उस व्यक्ति का यह प्रयास ही दरअसल कल्चरल कोशेंट या सीक्यू कहलाता है. जब व्यक्ति अपनी बॉडी लैंग्वेज बदलकर, सामने वाले के हाव-भाव की नकल कर के उसके जैसा दिखने की जो कोशिश करता है वो अक्सर सामने वाले पर गहरा सकारात्मक असर डालता है जिसके माध्यम से अनेक लोगों को प्रभावित किया जा सकता है. इसीलिए आजकल चाहे बैंक हों या दुनिया भर में तैनात होने वाली सेनाएं, सब, भर्ती के दौरान लोगों में इस कला के होने और न होने की जाँच अवश्य करती हैं.
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कल्चरल कोशेंट को मापने के कारगर तरीके
कुछ निश्चित पैरामीटर्स की मदद से किसी के भी कल्चरल कोशेंट को मापा जा सकता है. इनमें से कुछ मुख्य हैं -
कल्चरल कोशेंट ड्राइव – किसी भी अन्य देश, समुदाय या संस्कृति के बारे में जानने और समझने की मंशा.
कल्चरल कोशेंट नॉलेज - किसी भी समुदाय के बारे में पूर्ण जानकारी और उसके और अपने समुदाय में फर्क की सही समझ होना.
कल्चरल कोशेंट स्ट्रेटेजी – इसके अंतर्गत पूछे जाने वाले सवालों से यह पता लगाया जाता है कि किसी अन्य समाज या समुदाय के लोगों से तालमेल बैठाने की व्यक्ति की रणनीति क्या है?
कल्चरल कोशेंट एक्शन – इसके जरिये यह जानने की कोशिश होती है कि व्यक्ति किस तरह से अपने सामने वाले के साथ तालमेल बैठाने में सक्षम होता है जैसे, क्या वह व्यक्ति अन्य लोगों से समझौता करने को तैयार है ? क्या वह परिस्थिति के मुताबिक अपने व्यवहार और स्टाइल में पॉजिटिव बदलाव ला सकता है? ध्यान रखिये यदि किसी का कल्चरल कोशेंट कम है तो वह व्यक्ति हर किसी को अपने ही नजरिये से देखने की कोशिश करता है.
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कल्चरल कोशेंट कुछ इस तरह दिला सकता है आपको मनचाही जॉब
बेशक आपका हाई कल्चरल कोशेंट आपको अपनी मनचाही जॉब दिलवा सकता है. वर्ष 2011 में किये गए एक स्टडी के अनुसार मुख्य रूप से आईक्यू, इमोशनल इंटेलीजेंस और कल्चरल कोशेंट ही बुद्धिमता के पैमाने होते हैं. यह अध्ययन स्विस मिलिट्री एकेडमी में किया गया था जिसमें यह पाया गया कि वहां के वर्कर और अधिकारी, अलग-अलग देशों से आए सैनिकों की मदद कर रहे थे. वे एक-दूसरे के साथ बड़ी आत्मीयता के साथ काम कर रहे थे. गौर करने योग्य बात यह थी कि जिसके पास इन तीनों तरह की अक्लमंदी पूरी तरह से थी वो सबसे अच्छा काम कर रहे थे. इसी तरह, जिन लोगों का कल्चरल कोशेंट अधिक था, वे बेहतरीन तरीके से तालमेल बैठा रहे थे.
इसलिए यह तो स्वाभाविक है कि जिसका कल्चरल कोशेंट जितना अच्छा होगा उनको अपनी मनचाही जॉब पाने में उतनी ही जल्दी सफलता मिलेगी.जॉब मिलने के बाद उनकी प्रमोशन की संभावना भी बहुत अधिक रहेगी. इसी वजह से देश-विदेश की अधिकतर कंपनियां इंटरव्यू के दौरान कल्चरल कोशेंट की जरुर जांच करती हैं.
गौरतलब है कि जिन्दगी में स्वयं के तजुर्बे से बड़ा सबक कोई नहीं हो सकता. आज के परिवेश में किसी खास देश की सभ्यता को समझना तथा अलग-अलग समाज और देश के लोगों के साथ अच्छा तालमेल बनाना बहुत जरुरी है.इसके लिए एक खास तरह का हुनर होना चाहिए. ऐसे लोग, जो घुमक्कड़ प्रकृति के हैं अथवा तमाम जगहों पर वक्त गुजारते हैं, उनके लिए ऐसा कर पाना बहुत आसान होता है. लेकिन ऐसे लोग जो दूसरों के साथ सामंजस्य बैठाने में असफल होते हैं उनके लिए कल्चरल कोशेंट से जुड़े तमाम कोर्स प्रारम्भ किये गए हैं. कई संस्थानों और देशों में कल्चरल कोशेंट के लिए कोचिंग भी दी जा रही है. ब्लूमबर्ग,स्टारबक्स और अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी, मिशीगन इंटेलीजेंस सेंटर की मदद से भर्तियां करनी प्रारम्भ की है.यह सेंटर लोगों का कल्चरल कोशेंट जांचने में मदद करता है. इस सेंटर के प्रमुख डेविड लिवरमोर यह मानते हैं कि, लोग सीखकर अपने कल्चरल कोशेंट को ज्यादा बेहतर बना सकते हैं.
अब विदेश में मनचाही जॉब हासिल करने के लिए कल्चरल कोशेंट के महत्त्व को समझने के बाद आप भी अपने मनपसंद देश में कोई सूटेबल जॉब ज्वाइन करने के लिए उस देश के कल्चर और लाइफ स्टाइल के बारे में अधिकतम जानकारी जुटाकर उस देश के बारे में अपने कल्चरल कोशेंट को हाई कर लें ताकि संबद्ध देश में जॉब ज्वाइन करने पर आपको वहां के कल्चर और लाइफ स्टाइल को लेकर किसी भी व्यक्तिगत या पेशेवर प्रॉब्लम का सामना न करना पड़े और आप अपनी करियर लाइन में निरंतर तरक्की हासिल करते रहें.
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