समुद्री जल से शुद्ध जल की प्राप्ति
- प्राकृतिक रूप से समुद्र तटीय क्षेत्र के समुद्र जल में विभिन्न प्रकार के लवण (सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड, फ्लोराइड आदि) पाए जाते हैं जो जल को खारा बनाते हैं, समुद्री जल में पाए जाने वाले जल में फ्लोराइड के कारण फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है जिससे हड्डियों में दर्द होता है
समुद्री जल के खारेपन को दूर करने के लिए निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है
सौर ऊर्जा तकनीक
- इस तकनीक के अंतर्गत सूर्यताप को केंद्रित करके समुद्र के जल को उबाला जाता है और इससे उत्पन्न वाष्प से सबसे शुद्ध जल की प्राप्ति की जाती है
फ़्लैश डिस्टिलेशन तकनीक
- इस तकनीक के अंतर्गत गर्म किए गए कार्य समुद्री जल को अनेकों ऐसे कक्ष से गुजारा जाता है जिनके अंदर दाब वायुमंडलीय दाब से कम हो जाता है
- इससे कक्ष के प्रत्येक भाग में वाष्पीकरण होता है तथा इस वाष्प को ट्यूबों के बंडल में संघनित कर लिया जाता है इस प्रकार प्रत्येक चरण में आसवित जल को एकत्र करके शुद्ध जल के रूप में प्रयोग कर लिया जाता है
इलेक्ट्रोडायलिसिस तकनीक
- इस तकनीक के अंतर्गत समुद्री जल का खारापन दूर करने के लिए लोहे की चुनी हुई झिल्लियों का प्रयोग किया जाता है, यह तकनीक 5000 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) से कम मात्रा में खारापन दूर करने की सर्वाधिक कम खर्चीली पद्धति है इस तकनीक में ऊर्जा की लागत का पानी के खारेपन के अनुपात से सीधा संबंध है
- भारत में इस पद्धति का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है
विपरीत परासरण तकनीक
- सर्वाधिक प्रचलित इस तकनीक में अनुकूल परासरण झिल्लियों का प्रयोग किया जाता है जो उच्च दवाब के अंतर्गत समुद्री जल से छारता को दूर करती हैं
- भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में 50000 से 100000 लीटर की क्षमता वाले संस्थान लगाए गए हैं भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड यानी भेल द्वारा विपरीत परासरण यानी रिवर्स ऑस्मोसिस तकनीक पर आधारित देश के सबसे बड़े डिस्टिलेशन प्लांट का डिजाइन तैयार किया गया है
- इसे तमिलनाडु में स्थापित किया गया है जहां से जल की कमी है इससे रामनाथपुरम जिले के 226 गांव तथा 26 लाख से अधिक व्यक्तियों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा इस प्लांट की क्षमता 3800000 लीटर समुद्री पानी को पीने योग्य बनाने की है
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