अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) का जीवन परिचय
- अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) का जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के चौड़ी नामक गाँव में मनकोजी शिंदे के घर सन् 1725 ई. में हुआ था.
- साधारण शिक्षित अहिल्याबाई 10 वर्ष की अल्पायु में ही मालवा में इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं.
- अपनी कर्तव्यनिष्ठा से उन्होंने सास-ससुर, पति व अन्य सम्बन्धियों के हृदयों को जीत लिया. समयोपरांत एक पुत्र, एक पुत्री की माँ बनीं.
- अभी यौवनावस्था की दहलीज पर ही थीं कि उनकी 29 वर्ष की आयु में पति का देहांत हो गया.
- सन् 1766 ई. में वीरवर ससुर मल्हारराव भी चल बसे. अहिल्याबाई होल्कर के जीवन से एक महान साया उठ गया. शासन की बागडोर संभालनी पड़ी. कालांतर में देखते ही देखते पुत्र मालेराव, दोहित्र नत्थू, दामाद फणसे, पुत्री मुक्ता भी माँ को अकेला ही छोड़ चल बसे. परिणामतः ‘माँ’ अपने जीवन से हताश हो गई, परन्तु प्रजा हित में उन्होंने स्वयं को संभाला और सफल दायित्वपूर्ण राज-संचालन करती हुई 13 अगस्त, 1795 को नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर के किले में भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखाकर सदैव के लिए महानिदा में सो गईं.
अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) के कार्य
- उनका प्रशासनिक तंत्र अत्युत्तम था, वे स्वयं देर रात्रि तक दरबार में बैठकर राजकीय कार्यों को निपटाती थीं.
- अधीनस्थ अधिकारियों के प्रति उनका व्यवहार अति नम्र था. कर्तव्यनिष्ठ कर्मियों को पुरष्कृत किया जाता था तथा पदोन्नति भी की जाती थी.
- चाहे अमीर हो चाहे गरीब सबको एक समान न्याय सुलभ था, उचित समय व अल्प खर्च पर न्याय दिलाने हेतु उन्होंने जगह-जगह न्यायालय स्थापित किए थे.
- वे स्वयं अंतिम निर्णय करती थीं तथा निर्णय करते समय सत्य के प्रतीक रूप में मस्तक पर स्वर्ण निर्मित शिवलिंग धारण करती थी
- अर्थव्यवस्था सुदृढ़ थी, लगान वसूली की दृष्टि से उन्होंने अपने राज्य को तीन भागों में विभक्त किया था, कृषि व वाणिज्य को भी बढ़ावा दिया. वाणिज्य व्यापार ने काफी उन्नति की थी उन्होंने सूती वस्त्रों, विशेषकर महेश्वर के साड़ी उद्योग को काफी बढ़ावा दिया ।
- वे धार्मिक रूप से सहिष्णु थीं, हिन्दू धर्म की उपासिका होने के बावजूद भी वे मुस्लिम धर्म के प्रति अत्युदार थीं, उन्होंने महेश्वर में मुसलमानों को बसाया तथा मस्जिदों के निर्माण हेतु धन भी दिया. ।
- सांस्कृतिक कृत्यों को भी उन्होंने उदार संरक्षण दिया. कन्याकुमारी से हिमालय तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक अनेकानेक मंदिर, घाट, तालाब, बावड़ियाँ, दान संस्थाएं, धर्मशालाएं, कुएं, भोजनालय, दानव्रत आदि खुलवाए. काशी का प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर महेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर व घाट उनकी स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं.
- साहित्यिक क्षेत्र में कविवर मोरोपंत, खुशालीराम, अनंत फंदी उनके दरबारी रत्न थे. अनंत फंदी एक महान गायक भी था, जो लावनियाँ गाने में अति निपुण था. ।
- उनके पास अपने राज्य की रक्षा हेतु एक अनुशासनबद्ध सेना भी थी जिसका सेनापतित्व महावीर तुकोजीराव होल्कर प्रथम के नेतृत्व में था.
- उन्होंने अपने स्वयं के सेनापतित्व में 500 महिलाओं की एक सैन्य टुकड़ी का भी गठन किया था. सेना में ज्वाला’ नामक विशाल तोप शामिल थी. उनकी सेना एक फ्रांसीसी सेनाधिकारी दादुरनेक द्वारा यूरोपीय पद्धति पर प्रशिक्षित की गई थी ।
- अहिल्याबाई होल्कर ने अनावश्यक युद्ध कभी नहीं किए लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वे भीरू थीं. जब किसी ने इन्दौर राज्य पर ईंट फेंकी तो माँ ने उसका जवाब पत्थर से दिया. उनका कहना था कि “समस्त भारत की जनता एक है हमारा राज्य बड़ा है और उनका छोटा, हम महान हैं। और वे जंगली-इस भेदभाव का विष एक दिन हम सबको नरक में धकेलेगा”.
- अहिल्याबाई होल्कर का कथन आज के परिप्रेक्ष्य में द्रष्टव्य है. धन्य है ऐसा राष्ट्र प्रेम. उन्होंने विभिन्न राजदरबारों में अपने राजदूत रख छोड़े थे, उन्हें अपने जीवन में कुछ अनावश्यक युद्ध, यथा-राघोवा से सन् 1766-67 ई. में, रामपुरा-मानपुरा के चन्द्रावत राजपूतों से मंदसौर का युद्ध 1771 ई. में, अजमेर के निकट लखेरी का युद्ध 1773 ई. को महादजी सिंधिया के सेनापति व उनकी सेना से, करने पड़े जिनमें वे विजयी रहीं.
अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) के बारे में प्रमुख लोगों के वक्तव्य –
- राव बहादुर कीबे ने उचित ही कहा है-
“Show what a leading part the pious lady Ahilya Bai took in the stirring events of the time”.
- डॉ. उदयभानु शर्मा उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं-“मेरी ही गोद में विश्व का वह अनोखा रत्न खो गया. इस सोच में महेश्वर का किला आज भी नतमस्तक हो आँसू बहा रहा है. नर्मदा भी इसी कारण प्रायश्चितस्वरूप, निस्तब्ध रात्रि में उस घाट पर, जहाँ देवी का भौतिक शरीर पंचत्व को प्राप्त हुआ था, दुःखी होकर विलाप करती हुई दिखाई पड़ती है । उनकी श्रेष्ठता इन्दौर की शासिका होने में नहीं है, क्योंकि उनका त्याग इतना अनुपम, उनका साहस इतना असीम, उनकी प्रतिभा इतनी उत्कट, उनका संयम इतना कठिन और उनकी उदारता इतनी विशाल थी कि उनका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जा चुका है उनके पवित्र चरित्र और विराट प्रेम ने उन्हें लोकजीवन में लोकमाता का वह उच्चासन दिया, जो संसार में बड़े सम्राटों-साम्राज्ञियों को भी सुलभ नहीं रहा’.
- उनकी एक समकालीन आँग्ल कवयित्री जोना बेली ने कहा –
“For thirty years her reign of peace, The land in blessing did increase, And she was blessed by every tongue, By stern and gentle; old and young.”
- भू. पू. उपराष्ट्रपति डॉ. गोपालस्वरूप पाठक कहते हैं-“अहिल्याबाई भारतीय संस्कृति की मूर्तिमान प्रतीक थीं. कितने आपत्ति के प्रसंग तथा कसौटियों के प्रसंग उस तेजस्विनी पर आए, लेकिन उन सबका बड़े धैर्य से मुकाबला कर धर्म संभालते हुए उन्होंने राज्य का संसार सुरक्षित रखा, यह उनकी विशेषता थी. उन्होंने भारतीय संस्कृति की परम्पराएं सबके सामने रखीं. भारतीय संस्कृति जब तक जाग्रत है, तब तक अहिल्याबाई के चरित्र से ही हमें प्रेरणा मिलती रहेगी।
- पं. जवाहरलाल नेहरू कहते हैं कि-“जिस समय वह गद्दी पर बैठीं, वह 30 वर्ष की नौजवान विधवा थीं और अपने राज्य के प्रशासन में वह बड़ी खूबी से सफल रहीं वह स्वयं राज्य का कारोबार देखती थीं, उन्होंने युद्धों को टाला, शांति कायम रखी और अपने राज्य को ऐसे समय में खुशहाल बनाया, जबकि भारत का ज्यादातर हिस्सा उथल-पुथल की हालत में था इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं कि आज भी भारत में सती की तरह पूजी जाती हैं |
“अहिल्याबाई वास्तव में न्यायधर्मनिरता थीं, हिन्दुस्तान के इतिहास में यह एक बड़ा प्रयोग था. राज्य कार्य की धुरी एक उपासना परायण, धर्मनिष्ठ स्त्री के हाथ में आई थी. सारे भारत के इतिहास में यह एक विचित्र प्रयोग ही कहा जाएगा जो स्त्रियाँ निवृत्ति निष्ठ होती हैं, वे राज कार्य भी चला सकेंगी, सोची नहीं जा सकती | पर मराठों ने एक ऐसा प्रयोग किया, जो अहिल्याबाई के हाथ में राज्यसूत्र सौंपा. उन्होंने बहुत अच्छी तरह राज्य चलाया शस्त्रबल से दुनिया को जीतने का प्रयास कइयों ने किया, लेकिन प्रेम से, धर्म से जिन्होंने दुनिया को प्रभावित किया, उनमें अहिल्याबाई ही एक ऐसी निकलीं जो भारत के सब प्रांतों को धर्म, बुद्धि, प्रेम से जीत सकी भारत के समूचे ज्ञात इतिहास में अहिल्याबाई होल्कर का स्थान अद्वितीय है”
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