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गुप्त उष्मा क्या होती है ? सरल भाषा में जानिये

 किसी पदार्थ को दी गई ऊष्मा की वह मात्रा, जो पदार्थ के ताप को स्थिर रखते हुए उसकी अवस्था में परिवर्तन लाती है। उसे गुप्त ऊष्मा कहते हैं।

 
उदाहरण के लिए, किसी बर्फ के टुकड़े को एक बर्तन में गर्म किया जाय तो धीरे-धीरे करके पिघलता है। पूरे ठोस के द्रव बन जाने तक उसका तापमान बढ़ता नहीं, स्थिर 0 डिग्री सेल्सियस ही रहता है। जब यह एक बार पूरा पिघल जाता है, तो फिर तापमान बढऩा शुरू होता है। 
 
यहां बर्फ का टुकड़ा शुरू से ही ऊष्मा ग्रहण कर रहा था, लेकिन पूरा पिघलने तक उसका तापमान नहीं बदला। इस स्थिति तक खर्च हुई ऊष्मा को ही गुप्त ऊष्मा कहते हैं। इस स्थिति तक ऊष्मा सिर्फ पदार्थ का रूप परिवर्तित करने का काम करती है, और पदार्थ का ताप नहीं बढ़ पाता।
 
दरअसल यह गुप्त ऊष्मा पदार्थ के अंतर आणविक बलों को तोडऩे में प्रयुक्त होती है और आंतरिक ऊर्जा के रूप में संचित होती रहती है। जब सभी अंतर आणविक बल टूट जाते हैं, तो ऊष्मा उस पदार्थ के ताप को बढ़ाने लगती है।
 
 
किसी ठोस पदार्थ को ऊष्मा देने पर,  स्थिर ताप पर उसकी ठोस अवस्था में द्रव में परिवर्तन के लिए उत्तरदायी ऊष्मा को गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। जैसे बर्फ के लिए गलन की गुप्त ऊष्मा 0 डिग्री सेल्सियस ताप पर 80 किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम है। इसका तात्पर्य है कि 0 डिग्री स्थिर ताप पर एक किग्रा बर्फ को द्रव में बदलने के लिए 80 किलोकैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है।
 
इसी प्रकार द्रव के क्वथन में जब कोई द्रव गैसीय अवस्था में परिवर्तित होता है तो गुप्त ऊष्मा बिना उस पदार्थ का ताप बढ़ाए उसकी अवस्था बदलती है। इस दौरान गुप्त ऊष्मा द्रव के अंतर आणविक बल को तोडऩे का काम करती है। इस गुप्त ऊष्मा को वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।
 
जल के लिए वाष्पन की गुप्त ऊष्मा 5४0 किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम है। अर्थात 100 डिग्री सेल्सियस ताप के एक किलोग्राम जल को इतने ही ताप पर एक स्थिर रखते हुए वाष्प में बदलने के लिए 5४0 किलो कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है।

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