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अंग्रेजी ना आना शर्म की बात है क्या? क्या अंग्रेजी सीखने से चमत्कार होता है?

 

पहले जानिये क्यों मनाया जाता है अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फ़रवरी को मनाया जाता है। 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवँ सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।

  • यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस  को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1942 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है।
  • 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर दोहराया है।

क्या होता है भाषिक साम्राज्यवाद या भाषाई साम्राज्यवाद?

  • भाषिक साम्राज्यवाद या भाषाई साम्राज्यवाद (Linguistic imperialism) उस स्थिति को कहते हैं जिसमें किसी सबल राष्ट्र की भाषा किसी निर्बल राष्ट्र की शिक्षा और शासन आदि विविध क्षेत्रों से देशी भाषा (ओं) का लोप कर देती है।
  • इसके लिये घोषित या अघोषित रूप से एक ऐसी व्यवस्था उत्पन्न करके जड़ जमाने दी जाती है जिसमें उस विदेशी भाषा को ना बोलने और जानने वाले लोग दूसरे दर्जे के नागरिक के समान होने को विवश हो जाते हैं।

अंग्रेज़ी भाषा का साम्राज्यवाद

फिलिपिंसन ने अंग्रेज़ी भाषा के साम्राज्यवाद की परिभाषा इस प्रकार की है:

  • संस्थापना द्वारा प्रभुत्व पर बल देना और उसे बनाए रखना और अंग्रेज़ी तथा अन्य भाषाओं के मध्य लगातार पुनर्गठन द्वारा संरचनात्मक और सांस्कृतिक असमानता को बनाए रखना।
  • फिलिपिंसन का उपरोक्त सिद्धान्त अंग्रेज़ी के अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में ऐतिहासिक प्रसार की सटीक व्याख्या करता है। साथ ही यह इस तथ्य की व्याख्या करता कि क्यों भारत, पाकिस्तान, युगाण्डा, ज़िम्बाब्वे आदि देशों में स्वतन्त्र होने के पश्चात भी अंग्रेज़ी का प्रभुत्व बना हुआ है?

भाषाई-साम्राज्यवाद के शस्त्र एवँ उपकरण

  • भाषाई-साम्राज्यवाद फैलाने का सबसे सशक्त और ऐतिहासिक उपकरण राजनैतिक साम्राज्य है। दक्षिण एशिया में अंग्रेज़ी भाषा का साम्राज्य तथा अफ़्रीका के अनेक देशों में फ़्रांसीसी का साम्राज्य राजनैतिक साम्राज्य में निहित शक्तियों के दुरुपयोग का ही परिणाम है।
  • किन्तु इसके साथ-साथ भाषाई-साम्राज्य को बनाए रखने और सतत् प्रसार को सुनिश्चित करने के लिये मिथ्या-प्रचार, अर्धसत्य, दुष्प्रचार आदि का सहारा लिया जाता है। इसके अतिरिक्त यह सुनिश्चित किया जाता है कि रोज़गार पाने के लिये आरोपित भाषा का अच्छा ज्ञान अनिवार्य हो।
  • इसके लिये एक अल्पसंख्यक अभिजात वर्ग तैयार किया जाता है जो इस भाषा का दुरुपयोग करके शेष समाज का शोषण करता रहे तथा वह वर्ग जाने-अनजाने इस विदेशी भाषा का हित साधन करता रहता है।

फिलिपिंसन की पुस्तक में इस बात का विश्लेषण है कि किस प्रकार ब्रिटिश काउन्सिल तथा अन्य संस्थाएँ भ्रामक-प्रचार (रिटोरिक) का प्रयोग करके अंग्रेज़ी साम्राज्य को बढ़ावा देती है। इन भ्रमजालों के कुछ नमूने हैं :

  • अंग्रेज़ी-शिक्षण का सर्वोत्तम तरीका उसे एकभाषीय रूप से पढ़ाना है। (एकभाषीय भ्रम)
  • अंग्रेज़ी शिक्षण के लिये आदर्श अध्यापक वही है जिसकी मातृभाषा अंग्रेज़ी हो। (मातृभाषी भ्रम)
  • जितनी कम आयु से अंग्रेज़ी सिखायी जाय, परिणाम उतने ही अच्छे होंगे। (शीघ्रारम्भ भ्रम)
  • जितनी अधिक अंग्रेज़ी पढा़यी जाएगी, परिणाम उतना ही अच्छा होगा। (अधिकतम-अनावरण भ्रम)
  • यदि अन्य भाषाओं का अधिक प्रयोग किया जायेगा तो, अंग्रेज़ी का स्तर गिरेगा। (व्यकलित भ्रम)

अंग्रेज़ी भाषा के विषय में विविध माध्यमों से अर्धसत्यों से मिश्रित प्रचार को फैलाया जाता है:

  • अंग्रेज़ी को दैवी, धनी, सभ्य और रोचक बताया जाता है। ऐसा प्रतीत कराया जाता है कि दूसरी भाषाएँ इन गुणों से हीन हैं।
  • अंग्रेज़ी में प्रशिक्षित अध्यापक एवँ शिक्षा-सामग्री के भरपूर उपलब्धता की बात कही जाती है।

अंग्रेज़ी के बारे में कुछ कथन उसके उपयोगिता और महत्व का अतिशयोक्तिपूर्ण प्रचार करते हुए दिये जाये हैं; जैसे:

  • अंग्रेज़ी विश्व का प्रवेशद्वार है।
  • अंग्रेज़ी लोगों को प्रौद्योगिकी के संचालन में सक्षम बनाती है।
  • अंग्रेज़ी आधुनिकता का प्रतीक है।

भाषाई साम्राज्यवाद के दुष्परिणाम एवँ हानियाँ

  • भाषाई-साम्राज्य का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होता है कि स्वदेशी भाषाएँ एवँ बोलियाँ उपेक्षित हो जातीं हैं। कुछ मामलों में उनके लुप्त होने का प्रबल खतरा भी उपस्थित हो जाता है।
  • साम्राज्यवादी भाषा एक अल्पसंख्यक, अभिजात्य, शोषक वर्ग उत्पन्न करती है।
  • साम्राज्यवादी भाषा (जैसे, अंग्रेज़ी) शोषण के हथियार के रूप में प्रयुक्त होती रहती है।
  • अभिजात वर्ग, साम्राज्यवादी भाषा का उपयोग आम जनता से दूरी बनाकर अनुचित लाभ लेने के लिये करता है। (जैसे – धौंस जमाने के लिये)
  • समाज के पिछड़े और उपेक्षित लोगों को उनकी प्रतिभा के पश्चात भी रोज़गार मिलने में कठिनाई होती है क्योंकि उनके सामाजिक पर्यावरण के कारण एक विदेशी भाषा के स्थान पर वे स्वभाषा में प्रवीण होते हैं। इससे समाज में समानता आने के स्थान पर असमानता की खाई बनती जाती है।
  • विदेशी भाषा के उपयोग की विवशता के कारण समाज में विचार-विनिमय सम्यक प्रकार से नहीं हो पाता। कुछ-कुछ स्थितियों में (साम्राज्यवादी) भाषा का उपयोग संवाद को बढ़ावा देने के स्थान पर संवाद का हनन करने के लिये भी किया जाता है।
  • शिक्षा में विदेशी भाषा के प्रचलन से विद्यार्थियों में समझने के स्थान पर रटने की प्रवृति बढ़ती है। इससे मौलिक चिन्तन करने वाले देशवासियों के स्थान पर अन्धानुकरण करने वाले (नकलची) अधिक उत्पन्न होते हैं।
  • विदेशी भाषा में अनावश्यक रूप से निपुणता लाने के लिये समय बर्बाद करना पड़ता है जिसे किसी अन्य सृजनात्मक कार्य के लिये उपयोग में लाया जा सकता था।
  • दीर्घ अवधि में समाज अपनी संस्कृति और जड़ से ही कट जाता है।
  • समाज में हीनभावना आ जाती है।
  • सारा समाज भाषा जैसी महान चीज़ की अस्वाभाविक स्थिति के कारण परेशानी उठाता है।

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