भक्ति आंदोलन (Bhakti Movment)
- भक्ति आंदोलन का विकास वास्तविक रूप से 7वीं तथा 12वीं शताब्दी में हुआ।
- शंकराचार्य ने एक नया धार्मिक आंदोलन चलाया जिसका धार्मिक अंश वेदांत तथा साधन का अंश स्मार्त कहलाता है।
- शंकराचार्य ने अद्वैतवाद का उपदेश दिया तथा ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का सफल मार्ग बतलाया।
- शंकराचार्य के अनुसार जीव ब्रह्म है, संसार मिथ्या है तथा इस यथार्थ ज्ञान को प्राप्त कर लेना ही मोक्ष है।
- शंकराचार्य का ज्ञानमार्ग:भारत की साधारण जनता को अपनी ओर आकृष्ट करने में असफल रहा।
- भक्ति आंदोलन की शुरूआत रामानुज के नेतृत्व में दक्षिण भारत में हुई।
- भक्ति आंदोलन की लहर दक्षिण से उत्तर में लाने का श्रेय रामानंद को है।
भक्ति आंदोलन के प्रमुख प्रवर्तक
- विष्णु स्वामी-ये दक्षिण भारत के पूर्व के भक्ति प्रवर्तकों में प्रमुख हैं। परंतु, अभी तक उनका काल निर्दिष्ट नहीं किया जा सका है। उन्होंने शुद्धाद्वैत का प्रतिपादन किया।
- रामानुज (1017-1137 ई०)-रामानुज दक्षिण भारत में वैष्णव धर्म के महान प्रचारक थे। उन्होंने शंकराचार्य के अद्वैतवाद का खंडन किया तथा एक नये सिद्धांत विशिष्टाद्वैत का प्रतिपादन किया। रामानुज सगुण (साकार) ब्रह्म के उपासक थे।
- निम्बार्क-मद्रास के निकट निम्बार्क का जन्म हुआ। उन्होंने कृष्ण-भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बतलाया। इनका दार्शनिक मत द्वैताद्वैत कहलाया एवं इनके अनुयायी सनक संप्रदाय के नाम से प्रसिद्ध हुए।
- माधवाचार्य (1199-1278 ई०)-माधवाचार्य को 13वीं सदी में दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। उन्होंने द्वैतवाद का प्रतिपादन किया। उनका मत था मोक्ष के तीनों मार्ग-कर्म, ज्ञान और भक्ति अपने-आप में पूर्ण न होकर एक दूसरे के पूरक हैं।
- रामानंद-वे रामानुज के मतावलम्बी राघवानंद के शिष्य थे। उनके विचार अधिक व्यापक एवं क्रांतिकारी थे। उन्होंने सभी जातियों, धर्मों एवं यहाँ तक की मुसलमानों को भी अपना शिष्य बनाया। उनके शिष्य थे-रैदास (हरिजन), पीमा (राजपूत), सेना (नाई), धन्ना (जाट), कबीर (जुलाहा)। उन्होंने भगवान राम की भक्ति का आह्वान किया। संभवत: वे पहले वैष्णव संत हुए जिन्होंने अपने उपदेश हिंदी भाषा में दिये।
- वल्लभाचार्य-वे कृष्ण के उपासक थे एवं उन्होंने कृष्ण की भक्ति पर जोर दिया। वल्लभाचार्य का भक्तिवाद पुष्टिमार्ग के नाम से एवं दार्शनिक मत ‘शुद्ध-अद्वैत’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- कबीर-रामानंद के सभी शिष्यों में कबीर का महत्व सर्वाधिक है। इनका जन्म 15वीं सदी में हुआ था। संभवत: वह हिंदू की संतान थे एवं उनका पालन-पोषण वाराणसी के एक मुस्लिम जुलाहे के परिवार में हुआ था। कबीर ने हिंदू एवं मुस्लिम दोनों ही धर्यों के मूल तत्वों को समझा एवं हिंदु-मुस्लिम एकता का आह्वान किया। वे निर्गुण (निराकार) ब्रह्म के उपासक थे। उनके अनुसार प्रेम एवं भक्ति से ही सिर्फ मोक्ष की प्राप्ति संभव है। उनके अनुसार केवल गुरु ही एक माध्यम है जिसके द्वारा ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
- चैतन्य (1486-1533 ई०) बंगाल में भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक ‘चैतन्य महाप्रभु’ थे। चैतन्य के जीवन की घटनाओं का विवरण चैतन्य चन्द्रदय (कवि कर्णपुर), श्रीचैतन्य मतिअमृत (कृष्ण गोस्वामी) तथा श्री चैतन्य भागवत् (वृन्दावन दास) जैसे ग्रंथों में दिया गया है। उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास धारण कर लिया एवं अपना शेष जीवन कृष्ण की भक्ति में व्यतीत किया। उनके अनुसार कृष्ण भक्ति से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। उनका दार्शनिक सिद्धांत अचिन्त्य भेदाभेदवाद के नाम से प्रसिद्ध है। 1553 ई० में उनका देहांत पुरी में हुआ। बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के लोगों पर चैतन्य का बहुत असर पड़ा। उन्होंने संकीर्तन की प्रथा चलाई एवं गोसाई संघ स्थापित किया। वे पुरी में भगवान जगन्नाथ की उपासना में दो दशकों तक रहे।
- नामदेव (1270-1350 ई०)-वे महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन के प्रमुख नेता थे। उन्होंने जाति प्रथा का विरोध किया। वे ‘सगुण ब्रह्म’ के उपासक थे और भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का साधन मानते थे।
- तुकाराम-मराठी संतों में तुकाराम श्रेष्ठ थे, वे जाति से शूद्र थे। वे शिवाजी के समकालीन थे। उन्होंने जात-पात का विरोध किया। उनकी शिक्षा अभंगों के रूप में संग्रहित है। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।
- रामदास-महाराष्ट्र के संतों में रामदास का नाम भी उल्लेखनीय है। वे तुकाराम के समकालिक थे। वह शिवाजी के गुरु थे और उन्हीं के उपदेशों से प्रेरित होकर शिवाजी ने स्वराष्ट्र की स्थापना की।
- रायदास-रायदास रामदास के 12 शिष्यों में एक थे। वे जाति के चमार थे। वे जात-पात के विरोधी एवं निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। उनका संप्रदाय रायदासी के नाम से विख्यात हुआ।
- ज्ञानेश्वर (1275-96ई०)-महाराष्ट्र के जनजीवन पर संत ज्ञानेश्वर का भी अपरिमित प्रभाव पड़ा। उन्होंने मराठी भाषा में अपने उपदेश दिये। वे ब्राह्मणों के कठोर विरोधी थे। उन्होंने भी भक्ति को मोक्ष-प्राप्ति का साधन माना।
- दादू दयाल-भक्ति आंदोलन के नेताओं में दादू का भी विशेष महत्व है। दादू का जन्म गुजरात में हुआ था, परंतु उन्होंने अपना जीवन अधिकांशतः राजस्थान में व्यतीत किया। वे जाति-प्रथा, छुआछूत आदि के विरोधी थे। उनके द्वारा चलाया गया सम्प्रदाय दादूपंथी कहलाया। उनके शिष्यों में गरीबदास एवं माधोदास विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
- गुरुनानक (1469-1539) कबीर के समकालीन महान गुरुनानक ने सिखधर्म की स्थापना की। उनका जन्म अविभाजित पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने धर्म के बाह्य आडम्बरों का विरोध किया तथा एकेश्वरवाद एवं भक्ति का प्रचार किया। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए भी लोग भक्ति के द्वारा मोक्ष प्राप्ति कर सकते हैं. ऐसा नानक का विश्वास था। उनके उपदेशों का संग्रह सिखों के धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में किया गया है।
- तुलसीदास-1554 ई० में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजापुर गाँव में तुलसीदास का जन्म हुआ था। उन्होंने रामचरितमानस की रचना की तथा राम भक्ति का उपदेश दिया।
भक्ति आंदोलन से संबंधित स्मरणीय तथ्य
- दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन के विकास में 12 अलवार संतों के अलावा किन संतों ने अपना योगदान दिया-63 नयनार संतों ने
- महाराष्ट्र के वैष्णव संत किस भगवान के भक्त थे –भगवान विढोबा के
- भगवान बिढोबा को मानने वाले किस पंथ के कहलाते हैं-वरकरी या तीर्थयात्री पंथ
- प्रख्यात भक्ति संतों सूरदास एवं मीराबाई के अराध्य थे – कृष्ण
- मीराबाई ने अपनी भक्ति में किस भाषा का प्रयोग किया – ब्रज भाषा
- भक्तिकाल में किस कवि-संत ने नुसरतशाह एवं सुल्तान गयाशुद्दीन तुगलक की अपनी रचनाओं में प्रशंसा की है –विद्यापति
- कबीर से संबंधित किस रचना के लेखक भागोदास हैं – बीजक
- असम एवं पूर्वोत्तर राज्यों में भक्ति आंदोलन को किसने प्रचलित किया – शंकरदेवा
- पहले अछूत संत कौन थे (संभवतः) – तिरूपन्ना
- वैष्णव कवि चंडीदास किस राज्य के थे | – बंगाल
- आदिग्रंथ के अंग्रेजी अनुवादक हैं . – डा० ट्रम्प
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