डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय | father of chemistry in India
डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय कौन थे ? | Who was Prafulla Chandra Ray?
डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय का जन्म बंगाल के खुलना जिले के ररूली कतिपरा नामक ग्राम में 2 अगस्त 1861 ई. को हुआ था। इनके पिता, श्रीहरिश्चंद्र राय, मध्यवृत्ति के संपन्न गृहस्थ तथा फारसी के विद्वान् थे। अंग्रेजी शिक्षा की ओर इनका आकर्षण था, इसलिये इन्होंने अपने गाँव में एक “मॉडल” स्कूल स्थापित किया था, जिसमें प्रफुल्लचंद्र ने प्राथमिक शिक्षा पाई।
- तदुपरांत इनका परिवार कलकत्ता चला आया, जहाँ ये उस समय के सुप्रसिद्ध हेयर स्कूल में प्रथम, तथा बाद में ऐल्बर्ट स्कूल में भरती हुए। सन् 1879 में एंट्रेंस परीक्षा पास करके इन्होंने कालेज की पढ़ाई मेट्रॉपालिटन इंस्टिट्यूट में आरंभ की, पर विज्ञान के विषयों का अध्ययन करने के लिये इन्हें प्रेसिडेंसी कालेज जाना पड़ता था। यहाँ इन्होंने भौतिकी और रसायन के सुप्रसिद्ध विद्वान् सर जॉन इलियट और सर ऐलेक्जैंडर पेडलर से शिक्षा पाई, जिनके संपर्क से इनके विज्ञानप्रेम में वृद्धि हुई।
- सन् 1882 में गिल्क्राइस्ट छात्रवृत्ति प्रतियोगिता की परीक्षा में सफल होने के कारण विदेश जाकर पढ़ने की आपकी इच्छा पूरी हुई। इसी वर्ष आप एडिनबरा विश्वविद्यालय में दाखिल हुए, जहाँ अपने छह वर्ष तक अध्ययन किया।
डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय रसायनज्ञ बनने के लिए किसने प्रभावित किया ? | What influenced Prafulla Chandra Ray to become a chemist?
- इनके सहपाठियों में रसायन के सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रोफेसर जेम्स वाकर एफ. आर. एस., ऐलेक्जैंडर स्मिथ तथा हफ मार्शल आदि थे, जिनके संपर्क से रसायनशास्त्र की ओर आपका विशेष झुकाव हुआ। इस विश्वविद्यालय की केमिकल सोसायटी के ये उपसभापति भी चुने गए।
- सन् 1887 में आप डी. एस.सी. की परीक्षा में सम्मानपूर्वक उत्तीर्ण हुए। तत्पश्चात् आपने इंडियन एडुकेशनल सर्विस में स्थान पाने की चेष्टा की, पर अंग्रेजों की तत्कालीन रंगभेद की नीति के कारण इन्हें सफलता न मिली।
- आगे चलकर सन् 1892 में 800 रूपए की अल्प पूँजी से, अपने रहने के कमरे में ही, विलायती ढंग की ओषधियाँ तैयार करने के लिये बंगाल कैमिकल ऐंड फार्मास्युटिकल वक्र्स का कार्य आरंभ किया, जो प्रगति कर आज करोड़ों रूपयों के मूल्य का कारखाना हो गया है और जिससे देश में इस प्रकार के अन्य उद्योगों का सूत्रपात हुआ है।
डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय ने रसायन शास्त्र क्षेत्र में योगदान कैसे दिया? How did Prafulla Chandra Ray contribute to the chemistry field?
- आचार्य राय केवल आधुनिक रसायन शास्त्र के प्रथम भारतीय प्रवक्ता (प्रोफेसर) ही नहीं थे बल्कि उन्होंने ही इस देश में रसायन उद्योग की नींव भी डाली थी।
- 1912 में इंग्लैण्ड के अपने दूसरे प्रवास के दौरान डरहम विश्वविद्यालय के कुलपति ने उन्हें अपने विश्वविद्यालय की मानद डी.एस.सी. उपाधि प्रदान की। रसायन के क्षेत्र में आचार्य ने 120 शोध-पत्र प्रकाशित किए। मरक्यूरस नाइट्रेट एवं अमोनियम नाइट्राइट नामक यौगिकों के प्रथम विरचन से उन्हें अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई।
- डाक्टर राय ने अपना अनुसंधान कार्य पारद के यौगिकों से प्रारंभ किया तथा पारद नाइट्राइट नामक यौगिक, संसार में सर्वप्रथम सन् 1896 में, आपने ही तैयार किया, जिससे आपकी अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्रारंभ हुई। बाद में आपने इस यौगिक की सहायता से 80 नए यौगिक तैयार किए और कई महत्वपूर्ण एवं जटिल समस्याओं को सुलझाया। आपने ऐमोनियम, जिंक, कैडमियम, कैल्सियम, स्ट्रांशियम, वैरियम, मैग्नीशियम इत्यादि के नाइट्राइटों के संबंध में भी महत्वपूर्ण गवेषणाएँ कीं तथा ऐमाइन नाइट्राइटों को विशुद्ध रूप में तैयार कर, उनके भौतिक और रासायनिक गुणों का पूरा विवरण दिया।
- आपने ऑर्गेनोमेटालिक (organo-metallic) यौगिकों का भी विशेष रूप से अध्ययन कर कई उपयोगी तथ्यों का पता लगाया तथा पारद, गंधक और आयोडीन का एक नवीन यौगिक, (I2Hg2S2), तैयार किया तथा दिखाया कि प्रकाश में रखने पर इसके क्रिस्टलों का वर्ण बदल जाता है और अँधेरे में रखने पर पुन: मूल रंग वापस आ जाता है। सन् 1904 में बंगाल सरकार ने आपको यूरोप की विभिन्न रसायनशालाओं के निरीक्षण के लिये भेजा। इस अवसर पर विदेश के विद्धानों तथा वैज्ञानिक संस्थाओं ने सम्मानपूर्वक आपका स्वागत किया।
आचार्य प्रफुलला चंद्र रे को प्राप्त पुरस्कार | acharya prafulla chandra ray awards
- सन् 1911 में ही अंग्रेज सरकार ने आपको सी. आई. ई. की उपाधि दी थी तथा कुछ वर्ष बाद “नाइट” बनाकर “सर” का खिताब दिया। इस तरह विदेशी सरकार ने अपनी पूर्व उपेक्षा का प्रायश्चित किया। अनेक देशी तथा विदेशी विश्वविद्यालयों तथा वैज्ञानिक संस्थाओं ने उपाधियों तथा अन्य सम्मानों से आपको अलंकृत किया था।
- विज्ञान के छात्रों के लिए उन्होंने दो पुरस्कार भी प्रारंभ किए-रसायन शास्त्र में नागार्जुन पुरस्कार तथा वनस्पति एवं जंतु शास्त्र में आसुतोष मुखर्जी पुरस्कार।
डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय की पुस्तकें | Books of prafulla chandra roy
- ” आचार्य राय की प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि उनकी आत्मकथा “लाइफ एण्ड एक्सपीरियेंसेस ऑफ बंगाली केमिस्ट” (एक बंगाली रसायनज्ञ का जीवन एवं अनुभव) के प्रकाशित होने पर अतिप्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका “नेचर” ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए लिखा था कि “लिपिबद्ध करने के लिए संभवत: प्रफुल्ल चंद्र राय से अधिक विशिष्ट जीवन चरित्र किसी और का हो ही नहीं सकता।”
- उन्हें तत्कालीन महान फ्रांसीसी रसायनज्ञ बर्थेलो की पुस्तक “द ग्रीक एल्केमी” पढ़ने को मिली। तुरन्त उन्होंने बर्थेलो को पत्र लिखा कि भारत में भी अति प्राचीनकाल से रसायन की परम्परा रही है।
- बर्थेलो के आग्रह पर आचार्य ने मुख्यत: नागार्जुन की पुस्तक “रसेन्द्रसारसंग्रह” पर आधारित प्राचीन हिन्दू रसायन के विषय में एक लम्बा परिचयात्मक लेख लिखकर उन्हें भेजा।
- बर्थेलाट ने इसकी एक अत्यंत विद्वत्तापूर्ण समीक्षा “जर्नल डे सावंट” में प्रकाशित की, जिसमें आचार्य राय के कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई थी।
- इससे उत्साहित होकर आचार्य ने अंतत: अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हिस्ट्री ऑफ हिन्दू केमिस्ट्री” का प्रणयन किया जो विश्वविख्यात हुई और जिनके माध्यम से प्राचीन भारत के विशाल रसायन ज्ञान से समस्त संसार पहली बार परिचित होकर चमत्कृत हुआ। स्वयं बर्थेलाट ने इस पर समीक्षा लिखी जो “जर्नल डे सावंट” के १५ पृष्ठों में प्रकाशित हुई।
डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान | Dr. Prafulla Rai’s Contribution in freedom struggle
- ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाले उनके बहुआयामी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने कहा था, “शुद्ध भारतीय परिधान में आवेष्टित इस सरल व्यक्ति को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि वह एक महान वैज्ञानिक हो सकता है।
- प्रेसीडेंसी कालेज में विद्यार्थियों को रसायन की कक्षा में व्याख्यान देते समय भी आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय यह कहना नहीं भूलते थे कि “साइंस कैन वेट वट स्वराज कैन नाट” अर्थात् विज्ञान प्रतीक्षा कर सकता है परन्तु स्वराज नहीं। 1892 में उन्होंने इस देश की प्रथम रासायनिक उद्योग कम्पनी “बंगाल केमिकल्स एण्ड फार्मास्युटिकल्स वर्क्स” की स्थापना की जो आज भी बंगाल केमिकल्स के नाम से कार्यरत है। उन्हें भारतीय समाज से भी अत्यधिक प्रेम था।
- 1922 के बंगाल के भीषण अकाल में आचार्य राय अपने सभी कार्यों को छोड़कर पीड़ितों की सहायता के लिए निकल पड़े। व्यक्तिगत प्रयासों से उन्होंने तीन लाख रुपये की सहायता राशि एकत्रित की।
- उनके आह्वान पर बंगाली ललनाओं ने महंगे रेशमी वस्त्र और आभूषण आदि सभी कुछ उनकी झोली में डाल दिए। उनके अथक प्रयासों को देखकर किसी ने सच ही कहा था कि यदि महात्मा गांधी दो प्रफुल्ल चंद्र और उत्पन्न कर सकते तो भारत को स्वराज शीघ्र ही मिल जाता।
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