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पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन के 11 प्रेरक प्रसंग

 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन के 11 प्रेरक प्रसंग


भारतवर्ष में ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं जिनके जीवन से हम अपार प्रेरणा और शिक्षा ले सकते हैं. ऐसे ही महान व्यक्तियों में एकात्मवाद के प्रणेता, महान देशभक्त पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का नाम गर्व से लिया जाता है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन के 11 प्रेरक प्रसंग


प्रसंग #1 : अबला की रक्षा

मध्य प्रदेश जाने के लिए मैं और पण्डित दीनदयाल जी दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर खड़ी गाड़ी के थर्ड क्लास के डिब्बे में बैठ चुके थे. गाड़ी जाने में अभी आधा घंटा शेष था जिसके कारण डिब्बे में बहुत कम यात्री बैठे थे.

इसी समय दो औरतें डिब्बे में आयीं और भीख मांगने लगी. पुलिस के एक सिपाही ने उन्हें देखा और उन्हें गाली देते हुए मारने लगा. पंडित जी कुछ समय तक इस दृश्य को देखते रहे लेकिन अचानक उठ कर उन्होंने पुलिस के सिपाही को पीटने से रोकने का प्रयत्न किया. पुलिस के सिपाही ने अभद्रता से कहा- “यह औरतें चोर हैं और यह तुम्हें तुम्हें परेशानी में डाल सकती हैं. जाओ और अपनी सीट पर बैठो यह मेरा काम है और उसे करने में दखल मत दो.”

पंडित जी यह वाक्य सुनते ही क्रोधित हो उठे. मैंने जीवन में पहली और अंतिम बार उन्हें इस क्रोधावेश में देखा था. उन्होंने पुलिस के सिपाही का हाथ पकड़ते हुए कहा-

मैं देखता हूं कि तुम उन्हें कैसे मारते हो. अदालत उन्हें उनके और सामाजिक कार्यों के लिए दंड दे सकती है लेकिन एक स्त्री के साथ अभद्र व्यवहार को देखना मेरे लिए असहनीय है.

पुलिस के सिपाही ने अपनी ड्यूटी को माना और क्षमा की प्रार्थना की

स्वर्गीय यज्ञदत्त शर्मा पंजाब

प्रसंग #2: पॉलिश वाले पर भी दया

उपाध्याय जी मुजफ्फरपुर से मोतिहारी जा रहे थे. उसी डिब्बे में जिले के कोई उच्च पदाधिकारी भी सफर कर रहे थे. दीनदयाल जी के जूते गंदे थे, डिब्बे में एक लड़का आया और उपाध्याय जी के जूते उठा कर पॉलिश करने लगा. उपाध्याय जी अखबार पढ़ रहे थे पढ़ते रहे, जब पॉलिश कर चुका तो वह लड़का उक्त अफसर से भी पूछने लगा, “साहब पॉलिश!”

साहब ने पूछा, “कपड़ा है साफ करने का?”

“नहीं”, लड़के ने कहा.

साहब ने लड़के को जाने का इशारा कर दिया. तब लड़का उपाध्याय जी से पैसे लेकर वापस जाने लगा, उसके चेहरे पर बेबसी की छाया थी. तभी उपाध्याय जी उठे और उसे रोककर कहा, “बच्चे साहब के जूतों पर भी पॉलिश करो और फिर अपने झोली से पुराने और जर्जर तौलिये का एक टुकड़ा फाड़ा और लड़के को देते हुए कहा लो बच्चे यह कपड़ा लो ठीक से रखना फेंकना नहीं. देखा बिना इसके तुम्हारा अभी नुकसान हो गया था.

लड़का खुश होकर अफसर के जूतों पर पॉलिश करने लगा. अब उपाध्याय जी का वास्तविक परिचय पाकर वह महाशय चकित हो रहे थे.

अज्ञात

प्रसंग #3: कार्यकर्ताओं की चिंता

अक्टूबर का महीना था माननीय दीनदयाल जी काशीपुर के दौरे पर आए थे. सायं काल का समय था मैं कार्यक्रम की व्यवस्था के निमित्त बहुत व्यस्त था और एक बहुत पतली कमीज पहने भाग दौड़ कर रहा था. मुझे देख कर पंडित जी बोले, “इतनी पतली कमीज पहने हो स्वेटर क्यों नहीं पहना?”

मैंने कहा अभी तो ठंड नहीं लग रही जब लगेगी तो पहन लूंगा.

माननीय दीनदयाल जी अत्यंत गंभीर होकर बोले-

देखो भाई यह शरीर तुम्हारा नहीं है यह अब राष्ट्र का है बीमार पढ़ोगे तुम्हें कष्ट होगा और राष्ट्र की हानि होगी.

मैंने तुरंत गलती स्वीकार की और स्वेटर पहन लिया. कितनी छोटी-छोटी बातों की चिंता करते थे वह अपने कार्यकर्ताओं के बारे में.

डॉक्टर शिव कुमार अस्थाना

प्रसंग #4: ड्राइवर की सहायता

एक बार दीनदयाल जी कार से वाराणसी जा रहे थे. कचहरी के पास गाड़ी का टायर पंचर हो गया. गाड़ी में बैठे अन्य साथी तब तक कचहरी में परिचित मित्रों से भेंट करने के लिए चले गए. ड्राइवर ने पीछे से रिंच स्टेपनी आदि निकालकर चक्का खोला और उसे कसने लगा. इसी बीच पंडित जी पंचर हुए पहिए को ले जाकर पीछे रख कर शेष सारा सामान भी रख आये.

पहिए को कसकर ड्राइवर ने देखा कि चक्का नहीं है. पंडित जी हंस दिए और बोले, “जल्दी करने में थोड़ा सहयोग कर दिया है.” घटना को ड्राइवर बताते समय रो पड़ा. जहां अन्य लोग छोटी-छोटी बातों पर जल्दी करने के लिए डांट पिलाते हैं, वही वह जल्दी में सहयोगी बन कर अपना कर्तव्य पूरा कर रहे थे.

सूर्य नाथ तिवारी, सुल्तानपुर

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन के 10 प्रेरक प्रसंग

प्रसंग #5: नेता ही नहीं कार्यकर्ता भी

एक बार पंडित दीनदयाल जी आगरा नगर में एक बैठक में आये. बैठक समाप्त होने के बाद सभी लोग चले गए, केवल पंडित जी बैठे थे. वह मुझसे बोले नीचे तो बड़ी गर्मी है ऊपर छत पर चला जाए. ऊपर गए तो देखा कि वहां बहुत सा कूड़ा व धूल-मिट्टी पड़ी हुई थी. पर वह निराश नहीं हुए और झाड़ू लाने के लिए बोले. मैं झाड़ू ले आये तो उन्होंने वो मेरे हाथ से ले ली और मुझे नीचे से दरी और चादर लाने के लिए भेज दिया.

मैं जब सामान लेकर ऊपर गया तो यह देख कर दंग रह गया कि उन्होंने पूरी छत को साफ करके कूड़े का ढेर एकत्रित कर रखा था. फिर उन्होंने कूड़े को भरने में मेरी मदद की और मुझे उसे नीचे डाल आने को कहा. कूड़ा फेंककर जब मैं ऊपर गया तो वो दरी बिछा चुके थे. चादर हम दोनों ने मिल कर बिछायी और पंडित जी बड़े प्रसन्न चित्त हो उस पर बैठ गए. मेरे लिए यह स्वयं सेवा की बहुत बड़ी शिक्षा थी.

सत्यनारायण गोयल आगरा


प्रसंग #6: बस साबुन दे दीजिए

पंडित दीनदयाल उपाध्याय बद्रीनाथ से लौटे थे उनकी जर्जर बनियान को देखकर उनसे पूछा गया आप बुरा तो नहीं मानेंगे यदि बनियान नई ले ली जाए. सहज मुस्कान के साथ उनका उत्तर था, “नहीं भाई यह तो अभी 2 माह और चलेगी.” लेकिन दिल्ली जाने के पहले अपनी धोती धोकर सुखाने के लिए तो दे दीजिए. बोले, “नहीं नहीं ऐसा ना करिए मुझे कपड़े स्वयं ही धो लेने की आदत है आप भला मेरी आदत क्यों छुड़ाना चाहेंगे. बस साबुन भर दे दीजिए!

स्वर्गीय माननीय धर्मवीर जी

प्रसंग #7: खोटा पैसा

आगरा में विद्या अध्ययन काल में पंडित जी नानाजी देशमुख के साथ एक कमरे में रहते थे. एक दिन की बात है कि प्रातः दोनों लोग सब्जी लेने बाजार गए. सब्जी लेकर लौट रहे थे कि दीनदयाल जी बोले, “नाना बड़ी गड़बड़ हो गयी है.”

नाना जी ने गड़बड़ का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मेरे जेब में चार पैसे थे एक पैसा खोटा था इस समय मेरे पास दो पैसे बचे हैं और दोनों अच्छे हैं… लगता है खोटा पैसा सब्जी वाली बुढ़िया के पास चला गया. चलो वापस चलें. वे वापस सब्जीवाली के पास गए और वास्तविकता बयान की तो उसने कहा कि जो हुआ सो हुआ अब तुम्हारा खोता पैसा कौन ढूंढे… जाओ कोई बात नहीं.

पर दीनदयाल जी नहीं माने और खोटा पैसा ढूंढ निकाला और उसे बदलकर बुढ़िया को सही पैसा दिया. बुढ़िया ने नम आंखों से कहा कि बेटा तुम कितने अच्छे हो भगवान तुम्हारा भला करे. अब दीनदयाल जी के मुख मंडल पर आत्मसंतोष का भाव था.

अज्ञात

प्रसंग #8: स्वदेशी से प्रेम

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का स्वदेशी वस्तु के प्रयोग करने का आग्रह बड़ा प्रबल था. एक बार नागपुर में मैं शेविंग कर रहा था. मैं अपने काम में व्यस्त था कि अचानक किसी ने आकर मेरा शेविंग सोप ठाकर खिड़की से बाहर फेंक दिया. मैं समझा किसी ने मेरे साथ मजाक किया है. जरा गुस्से से मैंने नजर उठाकर देखा तो पंडित जी खड़े थे, मैं हैरान हो गया.

मैंने मन ही मन सोचा, पंडित जी तो कभी मजाक नहीं करते फिर आज साबुन क्यों फेंक दिया?

पंडित जी ने स्वयं ही कहना प्रारंभ किया-

भाई नाराज ना होना हम लोग स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने के लिए अपने स्वयं सेवकों को उपदेश देते हैं किंतु अगर हम स्वयं उसका आचरण नहीं करेंगे तो हमारी बात का प्रभाव ही नहीं पड़ेगा यह साबुन विदेशी कंपनी का बना हुआ है देसी साबुन जब मिल सकता है तब विदेशी कंपनी का बना हुआ माल क्यों व्यवहार करते हो.

पंडित जी की बात सुनकर मुझे अपनी गलती का ज्ञान हो गया. इस प्रकार वे स्वदेशी वस्तु के प्रयोग के लिए विशेष रुप से आग्रहशील रहते थे.

स्वर्गीय बाबू राव पालदी कर उड़ीसा

Pandit Deendayal Upadhyaya Life Incidents in Hindi

पंडित जी के साथ अटल बिहारी वाजपेयी

प्रसंग #9: सरकारी जीप

डोंबिवली (ठाण, महाराष्ट्र) के नगर पालिका अध्यक्ष ने अपने घर पर पंडित दीनदयाल जी को जलपान के लिए निमंत्रित किया था. जलपान समाप्त हुआ. पंडित जी को एक अन्य कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए जाना था. जैसे ही वह निकलने लगे, नगर पालिका अध्यक्ष ने नगरपालिका की जीप मंगाई ताकि वह उस में बैठकर जा सके, परन्तु पंडित जी ने जीप में बैठना विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया.

वे बोले-

“मैं आपके यहां निजी तौर पर आया हूं, पालिका के कार्य से नहीं. इसलिए मेरे द्वारा द्वारा नगर पालिका की जीप का उपयोग करना ठीक नहीं. “

इसके बाद वे अन्य कार्यकर्ता के निजी वाहन से वहां से रवाना हुए.

रामभाऊ हालगी महाराष्ट्र

प्रसंग #10: मोची की सीख

पंडित जी एक बार कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बता रहे थे- “जब मैं दिल्ली में रहता हूँ तो अजमेरी गेट से झंडेवाला जाने के लिए पहाडगंज तांगे से जाता हूँ. पहाड़गंज में एक मोची बैठता है जो जब भी मुझे दखता है चप्पलें पॉलिश कराने को कहता है. मैं हर बार उसे मना कर देता हूँ. यह कर्म वर्षों से चल रहा है और वह मोची अच्छी तरह जानता है कि मैं पॉलिश के लिए मना कर दूंगा पर फिर भी वह आग्रह करना नहीं छोड़ता. वह यह समझता है कि एक दिन मैं अवश्य ही उससे पॉलिश करवाऊंगा. और एक दिन मैं भी उसका आग्रह अस्वीकार न कर सका और पॉलिश करवा ही ली.

कार्यकर्ताओं को उस मोची की तरह होना चाहिए. जो लोग हमारे साथ नहीं हैं उनके पास जाकर लगातार अपनी विचारधारा समझानी चाहिए. उनके विचार सुनने चाहिए. एक दिन निश्चित ही वे आपके साथ आयेंगे.”

पंडित जी सिर्फ ये बाते कहते नहीं थे बल्कि उनका पूरा जीवन इसी सिद्धांत पर आधारित था.

यशवंत मुले, महाराष्ट्र

प्रसंग #11: मुझे बिलकुल भूख नहीं है

स्वर्गीय पंडित दीनदयाल जी का अनेक बार नागपुर आगमन होता था. मैं एक साधारण व्यक्ति हूं. विद्यालय में रसोई बनाने का काम करता हूं.

पंडित जी के पहुंचते ही मैं उनके पास पहुंच जाया करता और उनके निकट चुपचाप खड़ा हो जाता. मेरी ओर प्रसन्नता से देखकर पंडित जी एकदम कह उठते “कहो भाई मंगल क्या समाचार है?” उनके इस प्रकार पूछते ही मन गदगद हो उठता.

मैं उनसे जब पूछता, “आपके भोजन के लिए क्या बनाऊं,” तो तुरंत कह देते,”जो रोज बनता है, वही मैं खाऊंगा. अलग से बनाने की आवश्यकता नहीं.” मेरी हमेशा यह इच्छा रहती कि पंडित जी अपनी इच्छा अनुसार कुछ चीजें बनाने को कहें, परंतु मुझे वैसा सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ. रसोई घर में सब के साथ पहुंचते ही पंडितजी पूछा करते,”कहो भाई मंगल! आज क्या भोजन बनाया है.”

कभी रात्रि में अचानक आने की उनकी सूचना पाकर मैं मन ही मन चिंतित हो उठता और भोजन समाप्त हो जाने के कारण गर्म दूध का गिलास लेकर उनके पास पहुंच जाता. मुझे देख कर वे सब समझ जाते पूछते ” क्या लाए हो भाई! मुझे बिलकुल भूख नहीं है.” मैं उनसे दूध पीने का आग्रह करता, तब वे बड़े स्नेह से कहते, “तुम कहते हो तो पी लेता हूँ.”

मेरा आग्रह पंडित जी ने स्वीकार कर लिया, इस पर मुझे कितना संतोष होता, वर्णन नहीं कर सकता.

मंगल प्रसाद मिश्र, नागपुर

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