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जीवन में प्रेम

 

जीवन में प्रेम 

जीवन में प्रेम ना हो, तो कभी भी अपनेपन का अहसास कर पाना मुश्किल है, प्रेम के बिना इस दुनिया की खूबसूरती का अहसास नहीं किया सकता. प्रेम किसी के जीवन का सहारा है तो किसी के लिए प्रेरणा. मनुष्य के आध्यात्मिक विकास प्रेम के बिना संभव नहीं है. जीवन में परमानन्द का अनुभव प्रेम के बिना नहीं किया जा सकता. प्रेम की व्यापकता का अनुभव जीव जंतु भी कर सकते है. अतः ज्ञान से बड़ी  भी एक दुनिया है प्रेम की दुनिया. जहां भाषा की बंदिशे नहीं है, धर्म एवं जाती की रूकावटे नहीं है, है तो केवल अपनापन.

जीवन की कई उलझनों को प्रेम चुटकी में सुलझा सकता है, आज कितने ही रिश्तो की डोर टूट सी रही है, अपने आसपास उम्मीदों की बड़ी झड़ी सी जो लगाकर रखी है.

शब्दो के अपने मायने है और अनुभूति के अपने, शब्द अकेले कुछ नहीं कर सकते जब तक की उनकी अनुभूति ना की जाए किन्तु आज प्रेम के शब्दो से साहित्य भरा पड़ा है जरूरत है तो उसके अनुभूति की.

आज हर व्यक्ति अपने प्रति प्रेम की आशा तो करता है, लेकिन दूसरो को देना नहीं चाहता. प्रेम और ज्ञान देने से ही बढ़ते है.  

जीवन में प्रेम के प्रति लोगो के नज़रिये अलग हो सकते है,  उनके  साथ होने वाले अनुभवों के आधार पर हर एक व्यक्ति प्रेम की व्याख्या करता हैलेकिन उनकी ये व्याख्या कई बार तर्क और  कुतर्क के धरातल में  फस कर रह जाती हैमोह में पड़ा हुआ कोई भी  व्यक्ति प्रेम के मौलिक आनंद को प्राप्त नहीं कर पाता हैवो अपनी ख़ुशी– गम  दूसरो पर थोपते हैफलस्वरूप निराशा के भवरजाल में फसे रहते हैऔर कुछ लोग तो मौत को भी गले लगा लेते है.

निराशा की हर शुरुआत आशा से ही होती हैकिन्तु कोई भी निराशा यह नहीं कहती की आप स्वयं  से प्रेम करना बंद कर दे . जो व्यक्ति स्वयं से प्रेम नहीं कर सकता वह दूसरो को प्रेम भी नहीं दे सकता.

प्रेम का दूजा नाम ही समर्पण हैऔर समर्पण  में व्यक्ति कुछ पाने की लालसा नहीं करता केवल देना जानता हैऔर जो देना जानता है वो कभी निराश नहीं होता.  आप की ख़ुशी और गम  एक अनुभव से अधिक कुछ भी नहीं है,  प्रेम के उन पलो को एक बार फिर से अपने पास ले आइये. अनुभव कीजिये आप प्रेम के करीब जा रहे है, आप प्रेम के इतना करीब है की आप को किसी से घृणा नहीं है, आप ऊर्जामय हैआप  प्रकृति  के करीब हैआप अपने प्रिय को बिना किसी उम्मीद के प्रेम करते है.    

प्रेम वो अनुभति है जिसे व्यक्ति बार बार अनुभव करना चाहता हैऔर वह जितनी बार इसे अनुभव करता हैउतना ही मन की मलिनता से दूर होता जाता है.  स्वयं में अहम का आना विनाश की और ले जाता है और प्रेम की शुरुआत तो ‘हम ‘से ही होती है.

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