सफल होना है तो छोडें excuse देना!
ऐसे लोगों के मुंह से आपको कुछ ऐसी बातें सुनने को मिल जायेंगी….
- मुझे मौका नहीं मिला…
- घर में पढाई का माहौल नहीं था…
- भाग्य ने साथ नहीं दिया…
- या ऐसा ही कोई और statement
पर इसके उलट कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने साथ हो रही हर अच्छी-बुरी चीज के लिए खुद को ही जिम्मेदार मानते हैं, वे fail होने पर कहते हैं-
- मैंने मौके का सही फायदा नहीं उठाया…
- मुझे और पढाई करनी चाहिए थी…
- मैं अपनी मेहनत से अपना भाग्य बदल दूंगा…
- या ऐसा ही कोई और statement.
और ऐसे लोग ही जो अपनी असफलता का कोई excuse नहीं देते आगे चलकर सफल होते हैं.
एक आदमी अँधा था पर उसने कभी अंधे होने का excuse नहीं दिया.
एक आदमी बहरा था पर उसने कभी बहरे होने का excuse नहीं दिया.
एक आदमी गरीब था पर उसने कभी गरीब होने का excuse नहीं दिया.
एक आदमी को उस कम्पनी से निकाल दिया गया जिसे उसने अपने खून पसीने से खड़ा किया था…पर उसने निकाले जाने का excuse नहीं दिया.
एक आदमी लगभग दिवालिया हो चुका था पर उसने दिवालिया होने का कभी excuse नहीं दिया.
एक आदमी जिसे बचपन ने टीचर ने मंदबुद्धि कह कर स्कूल से निकाल दिया था उसने कभी मंदबुद्धि होने का excuse नहीं दिया.
वो अँधा आदमी Erik Weihenmayer था जिसने अंधे होने के बावजूद माउंट एवेरेस्ट फ़तेह किया था.
वो बहरा आदमी Ludwig van Beethoven था जिसने दुनिया की कुछ सबसे बेहतरीन म्यूजिक कम्पोज कीं.
वो गरीब आदमी धीरुभाई अम्बानी था जिसने भारत की सबसे बड़ी कंपनी “रिलायंस” बना डाली.
अपनी ही कम्पनी से निकाले जाने वाला आदमी स्टीव जॉब्स था जिसे 1985 में Apple से निकाल दिया गया था और 11 साल बाद 1996 में उसे फिर से कंपनी का CEO बना दिया गया.
वो दिवालिया हो चुका इंसान अमिताभ बच्चन था, जिसने ABCL की नाकामयाबी के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और अपना खोया हुआ साम्राज्य फिर हासिल किया.
और वो आदमी जिसे बचपन में टीचर ने मंदबुद्धि कह कर निकाल दिया था कोई और नहीं दुनिया का महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन था….
दोस्तों, चाहते तो ये सभी super successful लोग excuse दे सकते थे और आम लोगों की तरह अपनी नाकामयाबी को justify कर सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया वे किसी बहाने के पीछे नहीं छिपे… वे डंटे रहे…उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी लगन और जी-तोड़ परिश्रम से अपने सपनो को साकार किया.
अगर मैं अपनी बात करूँ तो मैं भी अपने दिल की ना सुनने का excuse अपनी job और financial obligations को दे सकता था…पर मैंने कोई बहाना नहीं बनाया… बनाता भी तो किससे?
खुद से!
मैंने जॉब के साथ-साथ gyantapri.com found की और दिन-रात इस पर काम करके हिंदी का No. 1 ब्लॉग बना दिया.
अंत में मैं आपसे पूछना चाहता हूँ… आप कैसे इंसान हैं?
Excuse देने वाले या अपनी मेहनत से अपनी किस्मत बदलने वाले?
फैसला आपके हाथ में हैं…मैं तो चला मेहनत करने!
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